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Sunday, November 11, 2018

ओशो, क्या तृष्णा-रहित जीवन ही भगवत्ता है?




किरण सत्यार्थी! तृष्णा-रहित जीवन ही भगवत्ता है। भगवान कहीं भी नहीं हैं..व्यक्ति की तरह। भगवान को व्यक्ति की तरह देख कर ही हमारी भ्रांतियों का जाल फैल गया। मंदिर उठे, मस्जिद बने। गिरजे उठे, गुरुद्वारे बने। परमात्मा को व्यक्ति मान कर ही पूजा, अर्चना के जाल फैले। यज्ञ-हवन, पंडित-पुरोहित, मौलवी, पादरी...एक जाल खड़ा हो गया, एक अनंत जाल खड़ा हो गया! बजाय इसके कि धर्म मनुष्य की मुक्ति बनता; धर्म मनुष्य के लिए बेड़ियां और जंजीरें बन गया; धर्म मनुष्य के लिए कारागृह बन गया। और इस सबके पीछे जो बुनियादी भ्रांति हो गई, वह यहां से हुई कि भगवान को हमने व्यक्ति मान लिया। भगवान व्यक्ति नहीं है।


भगवान नहीं है..भगवत्ता है! भगवत्ता गुण है; व्यक्ति नहीं। इसलिए पूजा का सवाल नहीं है; अनुभव का सवाल है। इसलिए प्रार्थना काम नहीं आएगी; ध्यान काम आएगा। प्रार्थना तो परमात्मा व्यक्ति हो तो कुछ अर्थ रखती है। लेकिन परमात्मा अगर व्यक्ति नहीं है; अस्तित्व पर फैले हुए जीवन का नाम है; अस्तित्व के सौंदर्य का नाम है; अस्तित्व की गरिमा और गौरव का नाम है; अस्तित्व का ही नाम परमात्मा है..अगर ऐसा है तो फिर प्रार्थना काम नहीं आएगी; फिर प्रार्थना व्यर्थ हो गई, फिर ध्यान काम आएगा।

 
यही भेद है वास्तविक धर्म में और थोथे धर्म में। थोथा धर्म हाथ जोड़ कर परमात्मा की प्रतिमा बनाता है। खुद की ही बनाई हुई प्रतिमाएं हैं और उनकी ही पूजा करता है। जरा खेल तो देखो, बूढ़ों के खेल, बच्चों से गए-बीते! अपने ही हाथ से बना लिए गणेश जी और होने लगी पूजा, सज गया थाल, दीये जल गए, फूल की मालाएं चढ़ गईं, भजन होने लगे। तुम कभी सोचते भी नहीं कि अपने ही हाथ से बना कर रख ली है यह प्रतिमा। अपने ही खिलौनों की पूजा कर रहे हो! अपने ही द्वारा बनाए गए खिलौनों के सामने घुटने टेक कर खड़े हो!


परमात्मा को तुम कैसे बना सकते हो? अगर बनाया भी हो किसी ने किसी को, तो परमात्मा ने तुम्हें बनाया होगा, तुम परमात्मा को नहीं बना सकते हो। फिर, परमात्मा को अगर व्यक्ति की तरह देखो, तो सवाल उठता है: कितने उसके हाथ, कितने उसके चेहरे, कितनी ऊंचाई, क्या रंग, क्या रूप? फिर सब उपद्रव खड़े हुए। फिर कवि की कल्पनाओं को विस्तार मिला। फिर कोई कहता है उसके हजार हाथ, क्योंकि दो हाथ से इतनी बड़ी पृथ्वी को, इतने बड़े विस्तार को, इतने चांद-तारों को कैसे सम्हालेगा? क्या तुम सोचते हो, हजार हाथों से सम्हल जाएंगे? हजार हाथ भी छोटे पड़ जाएंगे। फिर उसके तीन चेहरे बनाने पड़े। क्योंकि अगर एक ही चेहरा हो तो एक ही तरफ देख सके, तो सर्वज्ञाता न रह जाए। तीनों आयाम में देख सके। तो तीन चेहरे बनाए। किसी ने चार चेहरे बनाए, ताकि चारों दिशाओं में देख सके। किसी ने चार हाथ बनाए, ताकि चारों दिशाओं को सम्हाल सके। मगर ये सब मनुष्य की ही कल्पनाएं हैं; तुम्हारे ही विश्वास और फिर उनको रूप देने की चेष्टाएं। सब बचकानी हैं।
भगवान कोई व्यक्ति नहीं है। भगवत्ता! जितनी भी धर्म के जगत में गहन अनुभूतियां हुई हैं, उन सबका प्रमाण यही है, उन सबकी साक्षी यही है।



शब्द की तरह उपयोग करते हो भगवान, ठीक है; मगर स्मरण रहे कि वस्तुतः स्थिति भगवत्ता की है, भगवान गुण है, व्यक्ति नहीं; दशा है, व्यक्ति नहीं।


होनी होय सो होय 


ओशो

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