बुद्ध ने कहा है कि जब आप चलें, तो सजगता से चलें। जब आप श्वास लें, तो होशपूर्वक श्वास लें। बौद्धों की जो पद्धति है वह है-अनापानासती
योग-बाहर आती और भीतर जाती श्वास का योग, बाहर आती, भीतर जाती श्वास के प्रति सजगता। श्वास भीतर आती है, तो श्वास के साथ भीतर चले जाए। जानें, होश रखें,
कि श्वास भीतर आ रही है। जब श्वास बाहर जा रही है, तो उसके साथ बाहर चले आए। भीतर आए, बाहर आए श्वास के
साथ।
क्रोध मुश्किल है, काम भी मुश्किल है, श्वास इतनी कठिन नहीं है। श्वास के साथ-साथ चलें। एक भी श्वास बिना होश रखे भीतर या बाहर नहीं आने या जाने दें। यही ध्यान है। अब आप का ध्यान श्वास केंद्रित होगा, और जब आपका ध्यान श्वास पर केंद्रित होगा, तो विचार अपने आप रुक जाएंगे। अब आप विचार नहीं कर सकते, क्योंकि जैसे ही आप विचार करते हैं आपकी चेतना श्वास पर से विचार पर चली जाती है। आप श्वास को चूक जाएंगे।
इसका प्रयत्न करें, और आपको मालूम पड़ जाएगा। जब आप श्वास के प्रति सजग हैं, तो विचार रुक जाएंगे। वही ऊर्जा जो कि विचार के उपयोग में आ रही थी, अब श्वास के प्रति जागने के काम आ रही है। यदि आप विचार करना शुरू करें, तो आप श्वास की राह चूक जाएंगे। आप भूल जाएंगे, और आप सोचने लग जाएंगे। आप दोनों काम एक साथ नहीं कर सकते।
यदि आप श्वास का अनुगमन कर रहे हैं, तो यह एक लंबी प्रक्रिया है। किसी को भी इसमें बहुत गहरे जाना पड़ेगा। इसमें किसी को कम से कम तीन महीने लगेंगे, और यादा से यादा तीन वर्ष, यदि इसे कोई चौबीस घंटे करे। यह पद्धति भिक्षुओं के लिए है-उसके लिए जिन्होंने कि सब कुछ छोड़ दिया है। केवल वही चौबीस घंटे अपनी श्वास पर ध्यान कर सकते हैं। इसीलिए बौद्ध भिक्षु और भिक्षुओं की दूसरी परंपराओं ने अपने निर्वाह को कम से कम पर आधारित कर लिया, ताकि कोईप्रकार की अड़चन न आए। वे भोजन के लिए भिक्षा मांग लेते हैं और पेड़ के नीचे सो जाते हैं, बस, इतना काफी है। उसका सारा समय सजगता के आंतरिक अभ्यास के लिए हैं, जैसे कि श्वास पर ध्यान।
एक बौद्ध भिक्षु घूमता है। उसे अपनी श्वास के प्रति सतत ध्यान रखना पड़ता है। बौद्ध भिक्षुओं के चेहरे पर जो शांति आप देखते हैं, वह कुछ और नहीं बल्कि श्वास पर ध्यान करने की शांति है। यदि आप भी सजग हो जाएं, तो आपका चेहरा भी शांति प्रकट करेगा, क्योंकि यदि विचार नहीं है, तो आपको चेहरा चिंता, विचार नहींप्रकट कर सकता। आपका चेहरा विश्राम को उपलब्ध हो जाता है। सतत श्वास के प्रति सजगता मन को बिल्कुल ही रोक देगी। वह जो लगातार चिंता में पड़ा मन था, वह रुक जाएगा। और जब मन जाता है और सांप सिर्फ श्वास के प्रति सजग हैं, यदि मन काम नहीं कर रहा है, तो आप क्रोधित नहीं हो सकते, आप कामवासना में नहीं पड़ सकते।
काम या क्रोध या लोभ या ईर्ष्या या जलन कोई भी चीज हो, उसे मन की यांत्रिकता की आवश्यकता होती है। और यदि यांत्रिकता रुक जाती है, तो आप कुछ भी नहीं कर सकते। यह फिर उसी बात पर ले जाते है। अब जो ऊर्जा काम में, क्रोध में, या लोभ में, महत्वाकांक्षा में काम में आती है, उसे कोई रास्ता नहीं मिलता। और आप लगातार श्वास पर ध्यान कर रहे हैं, रात और दिन। बुद्ध ने कहा है-नींद में भी, श्वास के प्रति सजग रहने की कोशिश करो। यह शुरू में कठिन होगा, परंतु यदि आप दिन में होश रख सकें, तोधीरे-धीरे यह आपकी नींद में भी प्रवेश कर जाएगा।
कोई भी चीज नींद में भी प्रवेश कर जाती है, यदि वह दिन के समय आपके मन में गहरे चली गई हो। यदि दिन में आप किसी चीज के प्रति चिंतित रहे हैं, तो यह आपको नींद में भी प्रवेश कर जाती है। यदि आप लगातार सेक्स के बारे में सोचते रहते हैं, तो वह आपकी नींद में प्रवेश कर जाता है। यदि आप सारे दिन क्रोध में रहते हैं, तो क्रोध आपकी नींद में प्रवेश कर जाता है। इसलिए बुद्ध कहते हैं कि कोई कठिनाई नहीं है। यदि कोई आदमी लगातार श्वास पर ध्यान करता रहे, और श्वास के प्रति सजग रहे, तो अतः वह भी नींद में प्रवेश कर जाता है। आप तब स्वप्न नहीं देख सकते। यदि भीतर आती और बाहर जाती श्वास के प्रति आपकी सजगता है, तो नींद में आप स्वप्न नहीं देख सकते।
आत्मपूजा उपनिषद
ओशो
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