नहीं यह मैं मानता नहीं हूं, यह मैं जानता हूं।
प्रश्नः मतलब क्या, आप मानते नहीं हैं और जानते हैं?
मानने का मतलब है कि किसी और ने कहा है। और मैं मानता हूं। जानने का मतलब है, मैंने जाना है। और मैं मानता नहीं हूँ। इतना फर्क पड़ जाता है। और बहुत बड़ा फर्क है, बहुत बड़ा फर्क है।
प्रश्न: आप यह समझा सकते हैं बात?
यह मैं समझा सकता हूं। लेकिन समझाने से आप, मानने से ज्यादा नहीं जा सकेंगे। लेकिन दिखा सकता हूं, वहां आप जानने में भी जा सकते हैं। तो उसकी सारी प्रक्रियाएं हैं। और बिल्कुल साइंटिफिक प्रक्रिया हैं कि आप अपने पिछले जन्म का स्मरण कैसे करें?
प्रश्नः यह फिजिकल साइंसेज और यह स्प्रिचुअल साइंसेज मतलब कि आप कहते हैं कि यह जन्म है और पिछला जन्म होता है और अगला जन्म भी होगा, बैठ जाएगा आपके दिमाग में?
बिल्कुल बैठ जाएगा, क्योंकि जहां साइंस है, वहां ताल-मेल बैठ ही जाता है। अगर दोनों साइंस हैं। मानने का और साइंस का मेल नहीं बैठेगा। जानने और सांइस का मेल बैठ जाएगा। उसके कारण हैं, क्योंकि चाहे कितनी भी भीतरी बात हो उसके पाने के उपाय अगर वैज्ञानिक हैं, तो बाहर का विज्ञान आज नहीं कल राजी हो जाएगा। अभी मैं एक आॅक्सफाॅर्ड यूनिवर्सिटी में एक लेबोरेट्री है, दिलावार लेबोरेट्री। उसमें वह कुछ वैज्ञानिक प्रयोग कर रहे हैं और बहुत हैरान हो गए। एक फकीर ने यह कहा कि मैं कुछ बीजों के ऊपर प्रार्थना करके पानी छिड़क देता हूं, यह बीज तुम्हारें उन बीजों से जल्दी अंकुरित हो जाएंगे, जो मेरी प्रार्थना के पानी के बिना तुमने बोए हैं। जिस पर प्रयोग किया गया है। सैकड़ों प्रयोग किये गए हैं इस बात पर, और वह फकीर हर बार सही निकला। एक ही पुड़िया के आधे बीज इस गमले में डाले गए, आधे इस गमले में। सारा खाद, सारी मिट्टी सब एक-सा और जो पानी छिड़का गया वह भी एक, पानी भी अलग नहीं। लेकिन इस गमले पर डाले गए पानी के लिए उसने प्रार्थना की और डाला, और इस पर बिना प्रार्थना के डाला गया। और हैरानी की बात है उसके हर प्रार्थना के सब बीज जल्दी अंकुरित हुए। बड़े पत्ते आए, बड़े फूल आए और उसकी गैर प्रार्थना के बीज पिछड़ गए। अब दिलावार लेबोरेट्री ने अपनी इस साल की रिसर्च रिपोर्ट में कहा कि हमें इंकार करना मुश्किल है। और इससे भी बड़ी जो घटना घटी, वह यह घटी कि उस फकीर ने एक बीज पर खड़े होकर प्रार्थना की, ईसाई फकीर है जो गले में एक क्राॅस लटकाए हुए है, और दोनों हाथ फैला कर वह आंख बंद करके खड़ा हुआ है, और इस बीज के लिए उसने प्रार्थना की। और जब उस बीज का फोटो लिया गया, तो बड़ी हैरानी की बात हुई, उस फोटो में क्राॅस का पूरा चिह्न है। तो आज नहीं, अब वह दिलावार लेबोरेट्री तो बिल्कुल वैज्ञानिक नियमों से चलती है।
अब वह बड़ी मुश्किल में पड़ गए। कि इस बीज के फोटोग्राफ में क्या इतनी संवेदनशीलता हो सकती है कि फकीर का चित्र उसमें भीतर प्रवेश कर गया। और उसकी छाती और उसके फैले हाथ, और क्राॅस उसमें पकड़ गया। लेकिन धर्म इसको बहुत दिन से कहता है। इतना जरूर है कि आम तौर से धर्म मानने वाले लोगों के हाथ में है, और इसलिए उन दोनों में ताल-मेल नहीं बैठता। मेरे जैसे आदमी के तो हाथ में तालमेल बैठने ही वाला है, उसमें कोई उपाय नहीं है। क्योंकि मैं मानता यह हूं कि धर्म जो है वह आंतरिक विज्ञान है। और विज्ञान जो है वो बाह्य धर्म है। और इन दोनों के सूत्र तो एक ही होने वाले हैं। आज देर लग सकती है, कि विज्ञान धीरे-धीरे बढ़ कर भीतर आ रहा है। अगर धर्म भी धीरे-धीरे बढ़ कर थोड़ा बाहर आए, तो किसी जगह मिलन हो सकता है। और वह मिलन आने वाली सदी में निश्चित ही हो जाएगा। और हो सकता है इसी सदी में हो जाए।
पिछले जन्म की स्मृति उतना ही वैज्ञानिक तथ्य है, जैसे इस जन्म की स्मृति। लेकिन दोनों में थोड़े से फर्क हैं, अब जैसे अगर मैं आपसे अभी पूछूं कि उन्नीस सौ पचास एक जनवरी आप थे तो, लेकिन स्मरण है आपको? नहीं है। अगर आपकी स्मृति से ही हमको मान कर चलना पड़े तो उन्नीस सौ पचास एक जनवरी हुई या नहीं हुई, और आपको कोई स्मरण नहीं और आप कहते हैं मैं था। आप किस आधार पर कहते है कि आप थे? क्योंकि आपको बिलकुल स्मरण नहीं कि एक जनवरी उन्नीस सौ पचास में क्या हुआ। आप सुबह कब उठे, कब सोए, क्या खाया, क्या पीआ? किससे क्या बात की आप कहते हैं, कुछ भी नहीं। अगर आप ही प्रमाण हैं, और कोई कैलेंडर नहीं बचे दुनिया में, तो आप सिद्ध न कर पाएंगे कि एक जनवरी, उन्नीस सौ पचास थी, क्योंकि पहली तो बात यह कि आपको स्मरण ही नहीं, जो बुनियादी चीज तो कट गई है। लेकिन एक बड़े मजे की बात है कि आपको अगर हिप्नोटाइज्ड किया जाए, तो आपको एक जनवरी, उन्नीस सौ पचास की सब स्मृतियां लौट आती हैं। तत्काल। मैं सैंकड़ो प्रयोग किया, और मैं दंग रह गया, कि आपको एक जनवरी जो आप होश में बिल्कुल नहीं बता पाते, बेहोशी में बताते हैं। वह स्मृति मिटी नहीं है। सिर्फ आपके अनकांशस में चली गई है। उसे उभारा जा सकता है। ठीक इसी भांति पिछले जन्म की स्मृतियां और गहरे अनकांशस में चली गई हैं। मां के पेट में भी जब बच्चा होता है, अगर मां गिर पड़ी हो तो उसकी चोट की स्मृति भी उसमें बनती है।
नए भारत की खोज
ओशो
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