अचेतन को रूपांतरित केवल सजगता से ही किया जा सकता है। यह कठिन है,
किंतु दूसरा कोई मार्ग नहीं है। सजग होने के लिए कितनी ही विधियां
हैं। परंतु सजगता अनिवार्य है। आप विधियां का उपयोग जागरण के लिए कर सकते हैं;
किंतु आपको जागना तो पड़ेगा ही।
यदि कोई पूछता है कि क्या कोई विधि है अंधकार को मिटाने की सिवा प्रकाश के, तो वह चाहे कितना ही कठिन हो, किंतु वही एकमात्र उपाय है, क्योंकि अंधकार केवल अभाव है, प्रकाश का। इसलिए आपकोप्रकाश का उपस्थित करना होगा और तब अंधकार वहां नहीं होगा।
अचेतना, मूर्च्छा-कुछ और नहीं है बल्कि चेतना का अभाव है। वह अपने में कोई विधायक वस्तु नहीं है, इसलिए आप कुछ और नहीं कर सकते सिवाय जागने के। यदि मूर्च्छा अपने ही आप में कुछ होती, तो फिर बात ही दूसरी होती। परंतु वह अपने आप में कुछ भी नहीं है। अचेतना-मूर्च्छा-इसका मतलब कुछ विधायक होना नहीं होता। इसका मतलब है सिर्फ चैतन्य का अभाव। यह सिर्फ अभाव है। इसकी अपनी कोई सत्ता नहीं है। इसका अपना कोई अस्तित्व नहीं है। अचेतन शब्द केवल चैतन्य का अभाव दर्शाता है, इससे अधिक कुछ भी नहीं। जब हम कहते हैं-अंधकार, तो यह शब्द एक गलतफहमी की ओर ले जाता है, क्योंकि जैसी ही हम कहते हैं, अंधकार तो ऐसा प्रतीत होता है कि अंधकार कुछ ऐसी चीज है जो कि है। वस्तुतः वह है नहीं। इसलिए सीधे अंधकार के साथ आप कुछ भी नहीं कर सकते। कैसे कर सकते हैं आप?
आपने चाहे इस तथ्य को कभी न देखा हो, परंतु अंधकार के साथ सीधे आप कुछ भी नहीं कर सकते। जो कुछ भी आप अंधकार के साथ करना चाहते हैं, उसके लिए आपकी प्रकाश के ही साथ कुछ करना पड़ेगा, न कि अंधकार के साथ। यदि आप चाहते हैं कि अंधेरा हो जाए, तोप्रकाश बुझा दें। यदि आप अंधकार को नहीं चाहते, तोप्रकाश जला दें। परंतु सीधे अंधकार के साथ आप कुछ भी नहीं कर सकते। आपकोप्रकाश के मार्फत ही कुछ करना पड़ेगा।
क्यों? आप सीधे कुछ नहीं कर सकते? आप सीधे कुछ नहीं कर सकते, क्योंकि अंधकार जैसी कोई चीज है ही नहीं, इसलिए प्रत्यक्ष आप उसे नहीं छू सकते। आपको कुछ प्रकाश के साथ ही करना पड़ेगा। और तब अंधकार के साथ भी कुछ किया जा सकेगा।
यदिप्रकाश है, तो अंधेरा नहीं है। यदि प्रकाश नहीं है, तो अंधेरा है। आप इस कमरे में प्रकाश ला सकते हैं, किंतु आप अंधेरा नहीं ला सकते। आप यहां से प्रकाश ले जा सकते हैं, अंधेरा नहीं। आप में और अंधकार में कोई संबंध नहीं है। क्यों? यदि अंधकार हो तभी न आदमी उससे संबंधित हो सकता है? परंतु अंधेरा तो है ही नहीं।
भाषा से यह भ्रम पैदा होता है, कि अंधकार जैसी कोई वस्तु है। अंधकार एक नकारात्मक शब्द है। वह इतना ही बतलाता है कि प्रकाश नहीं है, इससे यादा कुछ नहीं; और वही बात के अलावा और क्या करें, तो आप एक असंगत प्रश्न पूछते हैं। आपको सजग होना पड़ेगा, आप इसके अलावा कुछ और नहीं कर सकते।
सचमुच, बहुत सी विधियां हैं, सजग होने के लिए; यह एक दूसरी बात है। प्रकाश को पैदा करने की कितनी ही विधियां हैं, परंतु प्रकाश को ही पैदा करना पड़ेगा। आप आग जला सकते हैं और अंधकार नहीं होगा; आप एक मिट्टी के तेल का दिया जला सकते हैं। और तब भी कोई अंधकार नहीं होगा। और बिजली का उपयोग कर सकते हैं और तब भी कोई अंधेरा नहीं होगा। परंतु कुछ भी किया जाए, कोई भी विधिप्रकाश को उत्पन्न करने की काम में लाई जाए पैदा प्रकाश ही करना होगा।
आत्मपूजा उपनिषद
ओशो
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