प्रेम की यह मूलभूत जरूरत है कि, ‘मैं दूसरे व्यक्ति को जैसा वह है वैसा ही
स्वीकार करता हूं।’ और प्रेम कभी भी व्यक्ति को अपने ख्यालों
के अनुरूप ढालने की कोशिश नहीं करता। तुम व्यक्ति को नाप-तौल का बनाने के लिये
काटते-छांटते नहीं- जो कि सारी दुनियां में सब और किया जा रहा है।
यदि तुम प्रेम करते हो,
तो कोई शर्त नहीं लगायी जानी हैं।
यदि तुम प्रेम नहीं करते हो, तो तुम शर्त लगाने वाले होते कौन हो?
दोनों ढंग से बात स्पष्ट है। यदि तुम प्रेम करते हो तो शर्तों
का कोई सवाल ही नहीं है। तुम उसे जैसा वह है वैसा ही प्रेम करते हो। यदि तुम प्रेम
नहीं करते हो, तब
भी कोई समस्या नहीं। वह तुम्हारा कोई नहीं; शर्त रखने का कोई
प्रश्न ही नहीं। वह जो कुछ भी करना चाहता है, कर सकता है।
यदि ईर्ष्या खतम हो जाये और फिर भी प्रेम बचे, तभी तुम्हारे जीवन में कुछ
अर्थपूर्ण है जो बचाने योग्य है।
जीयो और प्रेम करो,
और पूर्णता से, पूरी त्वरा से प्रेम करो लेकिन
कभी भी स्वतंत्रता के खिलाफ नहीं।
स्वतंत्रता आत्यांतिक मूल्य रहना चाहिए।
हमें लगातार सिखाया गया है कि प्रेम एक संबंध है, तो वही धारणा हमारी आदत बन
गई है। लेकिन यह सच नहीं है। वह निम्नतम प्रकार का है- बड़ा प्रदूषित।
प्रेम तो हमारे होने का ढंग है।
इस धारणा को छोड़ दो कि आसक्ति और प्रेम एक बात है। वे एक-दूसरे
के शत्रु हैं। यह आसक्ति है जो समस्त प्रेम को नष्ट करती है। यदि तुम आसक्ति को बढ़ावा दो, पोषण दो, तो प्रेम नष्ट
हो जायेगा; यदि तुम प्रेम को बढ़ावा दो, पोषण दो तो आसक्ति अपने-आप गिर जायेगी। प्रेम और आसक्ति एक नहीं हैं; वे दो अलग-अलग सत्ताएं हैं, और एक-दूसरे की विरोधी।
प्रेम देना सुंदर और वास्तविक अनुभव है, क्योंकि तब तुम एक सम्राट
हो। प्रेम पाना एक बहुत छोटा अनुभव है, और वह भिखारी का
अनुभव है। भिखारी मत बनो। कम से कम जहां तक प्रेम का सवाल है, सम्राट बनो, क्योंकि प्रेम तुम्हारे भीतर का कभी न चुकने वाला गुण है; तुम जितना चाहो, देते जा सकते हो। चिंता मत करो कि
वह खतम हो जायेगा, कि एक दिन अचानक तुम पाओगे, ‘हे ईश्वर! अब मेरे पास देने के लिये जरा भी प्रेम न बचा।’
प्रेम मात्रा (क्वांटिटी) नहीं है, वह गुण (क्वालिटी) है,
और गुण भी ऐसी कोटि का जो देने से बढ़ता है, और
यदि तुम पकड़कर रखो तो मर जाता है। यदि तुम देने में कंजूस रहे, तो वह मर जाता है। तो सचमुच खुले हाथों लुटाओ! इसकी चिंता मत करो कि किसे।
वह सही अर्थों में कंजूस मन का ख्याल है- कि ‘मैं अपना प्रेम
निश्चित गुणों वाले निश्चित व्यक्तियों को ही दूंगा।’
तुम समझते नहीं कि तुम्हारे पास इतना अधिक है- तुम वर्षा के
बादल हो। वर्षा के बादलों को चिंता नहीं होती कि वे कहां बरस रहे हैं- चट्टानों पर, बगीचों में, सागरों में- उससे फर्क नहीं पड़ता। वह भारहीन होना चाहता है, और भारहीन होना बड़ी राहत है।
तो पहला रहस्य हैः कि प्रेम मांगो मत। प्रतीक्षा मत करो, यह सोचते हुये कि जब कोई
मांगेगा तभी उसे दूंगा- दो!
जीवन के विभिन्न आयाम
ओशो
No comments:
Post a Comment