एक व्यर्थ की धारणा हमें सिखा दी गई है कि तुम्हें दु:खी होना ही पड़ेगा, क्योंकि पिछले जन्मों का कर्म तुम्हें भोगना है। यह धारणा अगर मन में बैठ गई कि मैं पिछले जन्मों के कर्मों को भोग रहा हूं, तो सुख का उपाय कहां है? इतने—इतने जन्म! कितने—कितने जन्म! चौरासी कोटि योनियां! इनमें कितने पाप किए होंगे, थोड़ा हिसाब तो लगाओ! इन सारे पापों का फल भोगना है। सुख हो कैसे सकता है! दुख स्वाभाविक मालूम होने लगेगा। ये आदमी को दु:खी रखने की ईजादें हैं।
मैं तुमसे कहता हूं: कोई पाप नहीं किए हैं, कोई कर्म का फल नहीं भोगना है। तुम अभी जागे ही नहीं, तुम अभी हो ही नहीं, पाप क्या खाक करोगे! पाप बुद्ध कर सकते हैं। लेकिन बुद्ध पाप करते नहीं।
अकबर की सवारी निकलती थी और एक आदमी अपने मकान की मुंडेर पर चढ़ गया और गालियां बकने लगा। सम्राट को गालियां! तत्क्षण पकड़ लिया गया। दूसरे दिन दरबार में मौजूद किया गया। अकबर ने पूछा: तू पागल है! क्या कह रहा था? क्यों कह रहा था? उसने कहा मुझे क्षमा करें, मैंने कुछ कहा ही नहीं। मैंने शराब पी ली थी। मैं बेहोश था। मैं था ही नहीं! अगर आप मुझे दंड देंगे, तो ठीक नहीं होगा, अन्याय हो जाएगा। मैं शराब पीए था।
अकबर ने सोचा और उसने कहा: यह बात ठीक है; दोष शराब का था, दोष तेरा नहीं था। तू जा सकता है। मगर अब शराब मत पीना। शराब पीने का दोष तेरा था। शराब पीने के बाद जो कुछ तेरे मुंह से निकला, उसमें तेरा हाथ नहीं, यह बात सच है।
आज भी अदालत पागल आदमी को छोड़ देती है, अगर पागल सिद्ध हो जाए। क्यों? क्योंकि पागल आदमी का क्या दायित्व? किसी पागल ने किसी को गोली मार दी। अदालत क्षमा कर देती है, अगर सिद्ध हो जाए कि पागल है। क्योंकि पागल आदमी को क्या दोष देना, उसे होश ही नहीं है!
तुम होश में रहे हो? ये जो चौरासी कोटि योनियां जिनके संबंध में तुम शास्त्रों में पढ़ते हो, तुम होश में थे? तुम्हें एकाध की भी याद है? अगर तुम होश में थे, तो याद कहां है? तुम्हें एक बार भी तो याद नहीं आती कि तुम कभी वृक्ष थे, कि तुम कभी एक पक्षी थे, कि तुम कभी जंगल के सिंह थे। तुम्हें याद आती है कुछ? शास्त्र कहते हैं; तुम्हें याद नहीं। और तुम गुजरे हो चौरासी कोटि योनियों से।
तुम बेहोश थे, तुम मूर्च्छित थे। मूर्च्छा में जो भी किया गया, उसका क्या मूल्य है? परमात्मा अन्याय नहीं कर सकता। इस दुनिया की अदालतें भी इतना अन्याय नहीं करतीं, तो परमात्मा तो परम कृपालु है, वह तो महाकरुणावान है। सूफी कहते हैं—रहीम है, रहमान है, करुणा का स्रोत है। इस जगत की अदालतें, जिनको हम करुणा का स्रोत कह नहीं सकते, वे भी क्षमा कर देती हैं मूर्च्छित आदमी को।
मैं तुमसे कहता हूं बार—बार: तुम जागो, उसके बाद ही तुम्हारे कृत्यों का लेखा—जोखा हो सकता है। यह मैं एक अनूठी बात कह रहा हूं, जो तुमसे कभी नहीं कही गई है। मैं अपने अनुभव से कह रहा हूं। मुझे चौरासी कोटि योनियों के पाप नहीं काटने पड़े और मैं उनके बाहर हो गया हूं। तुम भी हो सकते हो। तुम्हें भी काटने की झंझट में पड़ने की कोई जरूरत नहीं है। और काट तुम पाओगे नहीं, वह तो सिर्फ दु:खी रहने का ढंग है। वह तो दुख को एक व्याख्या देने का ढंग है। वह तो दुख में भी अपने को राजी कर लेने की व्यवस्था, आयोजन है। क्या करें, अगर दुख है तो जन्मों—जन्मों के पापों के कारण है। जब कटेंगे पाप, जब फल मिलेगा, तब कभी सुख होगा—होगा आगे कभी।
ऐसा ही तुम पहले भी सोचते रहे, ऐसा ही तुम आज भी सोच रहे हो, ऐसा ही तुम कल भी सोचोगे, अगले जन्म में भी सोचोगे। जरा सोचो, फर्क क्या पड़ेगा? अगले जन्म में तुम कहोगे कि पिछले जन्मों के पापों का फल भोग रहा हूं। और अगले जन्म में भी तुम यही कहोगे। तुम सदा यही कहते रहोगे, तुम सदा यही कहते रहे हो। तुम दुख से बाहर कब होओगे? और तुम्हें किसी एक जन्म की याद नहीं है। तुम्हें—पिछले जन्मों की तो फिक्र छोड़ो—तुम्हें अभी भी याद नहीं है कि तुम क्या कर रहे हो। तुम अभी भी होश में कहां हो? तुम्हारे पास होश का दीया कहां है?
सिर्फ बुद्ध—पुरुष अगर पाप करें, तो उत्तरदायी हो सकते हैं। मगर वे पाप करते नहीं, क्योंकि जाग्रत व्यक्ति कैसे पाप करे? अब तुम मेरी बात समझो। जाग्रत व्यक्ति कैसे पाप करे? और सोया व्यक्ति, मैं कहता हूं, कैसे पुण्य करे? जैसे अंधा आदमी तो टटोलेगा ही, ऐसा मूर्च्छित आदमी तो गलत करेगा ही। जैसे अंधा आदमी टेबल—कुर्सी से टकराएगा ही। दरवाजे से निकलने के पहले हजार बार उसका सिर दीवारों से टकराएगा; स्वाभाविक है। आंख वाला आदमी क्यों टकराए? आंख वाला आदमी दरवाजे से निकल जाता है। आंख वाले आदमी को दीवारें बीच में आती ही नहीं, न कुर्सियां, न टेबलें, कुछ भी बीच में नहीं आता। न वह टटोलता है, न वह पूछता है कि दरवाजा कहां है? सिर्फ दरवाजे से निकल जाता है। हां, आंख वाला आदमी अगर दीवार से टकराए, तो हम दोष दे सकते हैं, कि यह तुम क्या कर रहे हो? मगर आंख वाला टकराता नहीं, और जिसको हम दोष देते हैं, वह अंधा है।
कहे वाजिद पुकार
ओशो
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