Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Wednesday, May 5, 2021

मनुष्य अल्पबुद्धि है

 

कामनाओं से प्रेरित होकर की गई प्रार्थनाएं जरूर ही फल लाती हैं। लेकिन वे फल क्षणिक ही होने वाले हैं; वे फल थोड़ी देर ही टिकने वाले हैं। कोई भी सुख सदा नहीं टिक सकता, ही कोई दु:ख सदा टिकता है। सुख और दु:ख लहर की तरह आते हैं और चले जाते हैं।

 

 

देवताओं की पूजा से जो मिल सकता है, वह क्षणिक सुख का आभास ही हो सकता है। वासनाओं के मार्ग से कुछ और ज्यादा पाने का उपाय ही नहीं है।

 

 

 

इसलिए कृष्ण कहते हैं, लेकिन जो मेरे निकट आता है--और उनके निकट आने की शर्त है, वासनाओं को छोड़कर, विषयासक्ति को छोड़कर--वह उसे पाता है, जो नष्ट नहीं होता, जो खोता नहीं, जो शाश्वत है। इसलिए उन्होंने दो बातें इस सूत्र में कही हैं।

 

अल्पबुद्धि वाले लोग!

 

अल्पबुद्धि वाले लोग कौन हैं? अल्पबुद्धि वाले लोग वे हैं, जो कि अपने ही हाथों, बहुत बड़े मूल्य पर बहुत छोटी चीज खरीदने को राजी हो जाते हैं। बहुत बड़े मूल्य पर बहुत छोटी चीज खरीदने को राजी हो जाते हैं। प्रार्थना से तो मिल सकता है परम सत्य, लेकिन वे मांग लेते हैं कुछ क्षुद्र वस्तुएं। प्रार्थना से मिल सकता है परम जीवन, लेकिन वे मांग लेते हैं शरीर की कुछ जरूरतें।

 

 

निश्चित ही, अल्पबुद्धि हैं इस कारण। और इसलिए भी अल्पबुद्धि हैं कि जो भी वे मांगते हैं, वह मिल भी जाए, तो भी मांग का कोई अंत नहीं होता। जो वे पाना चाहते हैं, पा लें, तब भी वे उतने ही अतृप्त, उतने ही दीन और उतने ही अधूरे होते हैं, जितना मिलने के पहले थे।

 

 

मांगना ही हो, तो उसे मांग लेना चाहिए, जिसे मांगकर फिर और कोई मांग शेष रह जाए। पाना ही हो, तो उसे पा लेना चाहिए, जिसे पाकर तृप्ति हो जाती है, और पाने की दौड़ समाप्त हो जाती है। लेकिन अल्पबुद्धि लोग दूर तक नहीं देख पाते। विस्तीर्ण, जीवन के पूरे पहलू को नहीं समझ पाते। क्षणिक उनकी बुद्धि होती है। अभी जो लगता है जरूरी, वह मांग लेते हैं।

 

 

बुद्धिमान वही है, जो जीवन की परम आवश्यकता को मांगता है।

 

 

सुनी है हम सबने कथा, बहुत प्यारी और मधुर है। नचिकेता अपने पिता के पास बैठा है। पिता ने किया है बड़ा यज्ञ। ब्राह्मणों को दान कर रहे हैं वे। पिता ने नचिकेता से कहा है, मैं अपना सब दान कर दूंगा। छोटा बच्चा है, और छोटे बच्चों से कभी-कभी जो सवाल उठते हैं, वे बड़े गहरे और आत्यंतिक होते हैं। वह बैठा हुआ है पास में, जब ब्राह्मणों को दान दिया जा रहा है। और नचिकेता का पिता पुरानी बूढ़ी गाएं दे रहा है, जिनसे दूध मिलने को नहीं। इस तरह की चीजें दे रहा है, जिनकी अब कोई जरूरत नहीं रही। तो नचिकेता बार-बार पूछता है कि मैं भी तो आपका हूं , तो मुझे कब दान देंगे? मुझे किसे दान देंगे? क्योंकि कहा आपने कि मैं अपना सब कुछ दे डालूंगा। मैं भी तुम्हारा बेटा हूं !


 

पिता को क्रोध जाता है। वह क्रोध में कहता है कि तुझे भी दे दूंगा; घबड़ा मत। लेकिन तुझे मृत्यु को, यम को दे दूंगा।

 

 

नचिकेता, मानकर कि यम को दान कर दिया गया, यम के द्वार पर पहुंच जाता है। लेकिन यम घर के बाहर है। तो वह तीन दिन भूखा बैठा रहता है, फिर यम आते हैं। उसका तीन दिन भूखा बैठा रहना, उस छोटे-से बच्चे का, और इतनी सरलता से मृत्यु के द्वार पर स्वयं जाना! क्योंकि यम का अनुभव तो यही है कि वह जिसके द्वार पर जाता है, वही घर छोड़कर भागता है। यम के द्वार पर आने वाला यह पहला ही व्यक्ति है, जो खुद खोजबीन करके आया। और फिर यह देखकर कि यम घर पर नहीं है, भूखा-प्यासा बैठा है। तो यम कहते हैं कि तू कुछ मांग ले, तू वरदान ले ले। मैं तुझ पर प्रसन्न हुआ हूं। मैं तुझे हाथी-घोड़े, धन-दौलत, सुंदर स्त्रियां, राज्य--सब तुझे दूंगा।

 

 

नचिकेता कहता है, लेकिन जो धन आप देंगे, उससे मुझे तृप्ति मिल पाएगी, ऐसी, जो कभी नष्ट हो? वह यम उदास होकर कहता है, ऐसी तो कोई तृप्ति धन से कभी नहीं मिलती, जो समाप्त हो। वे जो स्त्रियां आप मुझे देंगे, उनका सौंदर्य सदा ठहरेगा? यम कहता है कि कुछ भी इस जगत में सदा ठहरने वाला नहीं है। वह जो आप मुझे लंबी उम्र देंगे, क्या उसके बाद फिर आप मुझे लेने आएंगे? तो यम कहता है, यह तो असंभव है। कितनी ही हो लंबी उम्र, अंत में तो मैं आऊंगा ही। वह जो बड़ा राज्य आप मुझे देंगे, क्या उसे पाकर मैं वह पा लूंगा, ऋषियों ने जो कहा है कि जिसे पा लेने से सब पा लिया जाता है? यम कहता है, उससे तो कुछ भी नहीं मिलेगा, क्योंकि बड़े-बड़े सम्राट वह सब पा चुके हैं और फिर भी दीन-हीन मरे हैं। तो नचिकेता कहता है, ये चीजें फिर मैं लूंगा। मुझे तो इतना ही बता दें कि मृत्यु का राज क्या है, ताकि मैं अमृत को जान सकूं।

 

 

नचिकेता को बहुत समझाता है यम। यम बहुत बुद्धिमान है। मृत्यु से ज्यादा बुद्धिमान शायद ही कोई हो। अनंत उसका अनुभव है जीवन का। हर आदमी की नासमझी का भी मृत्यु को जितना पता है, उतना किसी और को नहीं होगा। क्योंकि जिंदगीभर दौड़-धूप करके हम जो इकट्ठा करते हैं, मृत्यु उसे बिखेर जाती है। और एक बार नहीं, हजार बार हमारा इकट्ठा किया हुआ मौत बिखेर देती है। हम फिर दुबारा मौका पाकर, फिर वही इकट्ठा करना शुरू कर देते हैं।

 

 

आदमी की नासमझी का जितना पता मौत को होगा, उतना किसी और को नहीं है। इतने लोगों की नासमझी से गुजरकर मौत समझदार हो गई हो, तो आश्चर्य नहीं। लेकिन यह बच्चा बहुत अडिग है। वह कहता है कि मुझे तो वही बता दें, जिससे अमृत को जान लूं। मृत्यु को समझा दें मुझे। और आप तो मृत्यु को जानते ही हैं, आप मृत्यु के देव हैं। आप नहीं बताएंगे, तो मुझे कौन बताएगा!

 

 

बुद्धिमान होगा नचिकेता, कृष्ण के अर्थों में। हम बुद्धिमान नहीं हो सकते; हम अल्पबुद्धि हैं। खयाल रखें, कृष्ण कह रहे हैं, अल्पबुद्धि; बुद्धिहीन भी नहीं कह रहे हैं। बुद्धिहीन भी नहीं कह रहे हैं, अल्पबुद्धि।

 

 

अगर मनुष्य बिलकुल बुद्धिहीन हो, तब तो कोई संभावना नहीं रह जाती। बुद्धि तो है; बहुत छोटी है। बड़ी हो सकती है, विकसित हो सकती है। जो बीज की तरह है, वह वृक्ष की तरह हो सकती है। जो आज बहुत छोटी है, वह कल विराट बन सकती है।

 

 

कहते हैं, अल्पबुद्धि है आदमी। दु:ख तो नहीं चाहता आदमी, नहीं तो बुद्धिहीन होता। सुख चाहता है, लेकिन अल्पबुद्धि है। क्योंकि ऐसा सुख चाहता है, जो अंत में दु:ख ही लाता है, और कुछ लाता नहीं।


गीता दर्शन 


ओशो  




No comments:

Post a Comment

Popular Posts