मेरे साथ जो आज संन्यासी हैं, उनको सब तरह की आग से गुजरना पड़ रहा है, गुजरना पड़ेगा। इसी आग से गुजरकर वे कुंदन बनेंगे।
हर छोटी मोटी बात पर उपद्रव है! हर छोटी मोटी बात पर बाधा है! और कितना शोर शराबा मचता है! अब मैं कच्छ के रेगिस्तान में बस जाना चाहता था, ताकि लोगों को मुझ से परेशानी न हो। तो कच्छ के रेगिस्तान में भी बसने देना कठिन है! भारी शोरगुल मचा हुआ है! कच्छियों के प्राण निकले जा रहे हैं! जैसे मैं कच्छ पहुंच जाऊंगा, तो कच्छ एकदम लुट जायेगा! जैसे मेरे बिना कच्छ में बहुत कुछ है, जो एकदम बरबाद ही हो जायेगा! एकदम प्राणों पर बन आयी है!
जैन मुनि इकट्ठे हो रहे हैं। जैनियों से आह्वान किया जा रहा है। भद्रगुप्त मुनि ने किस तरह की भद्रता है, पता नही और किस तरह का जैन धर्म है, पता नहीं आह्वान किया है सारे जैनों का, कि अब सब कुछ बलिदान करना पड़े, तो भी करने की तैयारी रखो। मगर इस व्यक्ति को कच्छ में प्रवेश नहीं करने देना है।
मैं कच्छ का क्या बिगाडूगा!
कल खबर थी कि बंबई के सारे कच्छियों की सभा होने वाली है। सभा का निमंत्रण छापा गया है, उसमें यह साफ लिखा हुआ है कि जो लोग विरोध करना चाहते हों, केवल वे ही आयें! तो मतलब, जो विरोध नहीं करना चाहता है, उसको तो आने भी नहीं देना है! सभा में भी नहीं आने देना है, ताकि विरोध नहीं करने की तो बात ही न उठे! जो लोग विरोध करना चाहते हैं, केवल उनके लिए निमंत्रण है। और फिर घोषणा मचाएंगे कि देखो, जितने लोग आये, सब ने विरोध किया। एक भी तो पक्ष में होता! एक भी आदमी पक्ष में नहीं है। और निमंत्रण में ही जाहिर है, कि सिर्फ निमंत्रण ही उनके लिए दिया गया है, जो विरोध में हैं।
अब बंबई के कच्छियों के प्राण क्यों संकट में पड़े हैं! मैं कच्छ जा रहा हूं तुम कच्छ छोड़कर बंबई बस गये हो! तुम कच्छ कब का छोड़ चुके। कच्छ में है कौन अब? मैं भी एक दीवाना हूं कि कच्छ को चुना हूं जहां से सब भाग गये! मैं इस लिहाज से चुना कि अब यहां किसी को परेशानी न होगी। यहां है ही कौन! पूरे कच्छ की आबादी सात लाख है। सैकड़ों मील खाली पड़े हैं।
कभी डेढ़ सौ साल पहले कच्छ आबाद हुआ करता था, तब सिंध नदी कच्छ के पास
से गुजरती थी। फिर सिंध ने अपना रास्ता बदल लिया। सिंध भी भाग खडी हुई! उसने भी कच्छ छोड दिया! डेढ़ सौ साल पहले सिंध ने भी कहा कि 'क्षमा करो। हे कच्छ महाराज, आप ऐसे ही रहो!' सिंध ने जब से छोड़ दिया, कच्छ रेगिस्तान है। और जिस दिन से सिंध ने छोड़ा, कच्छ का व्यवसाय मर गया, कच्छ का उत्पादन मर गया। कच्छ के लोगों को हट जाना पड़ा। कच्छ बर्बाद हो गया। कच्छ में कुछ भी न बचा।
लेकिन कच्छ पर भारी संकट आ गया है; उससे भी बड़ा संकट जो सिंध को हटने से आया था; उससे भी बड़ा संकट आ रहा है मेरे वहां जाने से! मैं कभी कभी चकित होता हूं कि कैसे कैसो की जमात है! कैसे अजीब लोग हैं! इनको क्या इतनी बेचैनी हो रही है! आखिर जैन धर्म को क्या खतरा आ गया होगा, कि सातों जैन धर्मों के अलग अलग पंथ इकट्ठे हो गये और सातों ने मिलकर निर्णय किया। इनको क्या खतरा आ गया होगा! इनको क्या बेचैनी हो रही है!
बंबई के
सारे उद्योगपति इकट्ठे हो गये, जैसे इनके उद्योग को भी कोई खतरा पहुंचा रहा हूं! कि कच्छ मैं चला जाऊंगा तो इनके उद्योग खत्म हो जायेंगे, या इनके कारखाने बंद हो जायेंगे। कच्छ में तो कोई कारखाने हैं नहीं। इनको क्या बेचैनी आ रही है!
एक से एक घबडाहटें! अब उन्होंने एक नया शिगूफा खड़ा किया कि मेरे कच्छ में पहुंचने से देश की सुरक्षा को खतरा हो जायेगा! उस रेगिस्तान में मैं अपने मित्रों को लेकर बैठ जाऊंगा देश को खतरा देश की सुरक्षा को खतरा हो जायेगा! देश फिर बच नहीं सकता! फिर देश का बचना मुश्किल है!
अजीब बातें लोग उठाते
हैं! लेकिन ये सारे बहाने हैं। ये सब बहाने ऊपर ऊपर भीतर बात कुछ और है। भीतरी डर! डर एक बात का कि तुम जिस धर्म को पकड़े बैठे हो, मेरी मौजूदगी में तुम उसे पकड़े न रह सकोगे।
मेरा स्वर्णिम भारत
ओशो
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