नारायण देव, प्रार्थना अपना उत्तर स्वयं है। किसी और उत्तर
की अपेक्षा में ही भूल है। प्रार्थना साधन नहीं है, स्वयं
साध्य है। अपने—आप में परिपूर्ण है। तुमने अपने हृदय को निवेदित किया, तुमने अपने आंसू के फूल चढ़ाए, तुमने प्राणों का
गीत गाया, उस गीत में रस है, उन आंसुओं
में उल्लास है। उस समर्पण में ही उत्सव है। उसके पार किसी उत्तर की अपेक्षा कि आकाश
कुछ बोले, कि उस पार से कोई उत्तर आए—वहीं भूल हो रही है।
वैसी अपेक्षा ही तुम्हारी प्रार्थना को पूर्ण नहीं होने दे रही।
अपेक्षा वासना का ही रूप है। और जहां वासना है, वहां प्रार्थना मृत। जहां
वासना नहीं है, वहां प्रार्थना जीवंत। अपेक्षा है,
तो विषाद से भरोगे। क्योंकि कोई अपेक्षा कभी पूरी नहीं होती। प्रार्थना
तो मौलिक रूप से निरपेक्ष होती है। प्रार्थना तो भाव की निरपेक्ष दशा है।
फूल खिले हैं। किस अपेक्षा में? कोई उत्तर मिलेगा?
तारों से आकाश भरता है। किसी अपेक्षा में? कोई उत्तर मिलेगा? नहीं, यह महोत्सव अपना उत्तर स्वयं है। इस सत्य को जितना गहरा हृदय में बैठ जाने
दो उतना अच्छा। नहीं तो वर्षों से चूक रहे हो, जन्मों तक चूकते
रहोगे।
तुम सोचते हो कि प्रार्थना करने में कोई भूल
हो रही है। नहीं, प्रार्थना की पृष्ठभूमि में भूल है। तुम प्रार्थना ही कर रहे हो आंखों की
कोर से प्रतीक्षा करते हुए कि अब आया उत्तर, अब आया उत्तर,
अब प्रभु प्रकट होंगे, कि अब आकाश से वाणी
झरेगी। अभी तक नहीं उत्तर आया! अभी तक परमात्मा प्रकट नहीं हुआ! तुम्हारी प्रार्थना
कैसे पूर्ण हो पाएगी? तुम तो बंटे—बंटे हो! आधा मन प्रार्थना
कर रहा है, आधा मन किनारे खड़ा राह देख रहा है। आधा मन प्रार्थना
कर रहा है, आधा मन शिकायत से भरा है—अब तक नहीं हुआ! वह जो
शिकायत है, वह प्रार्थना पर पत्थर की तरह बंधी है। उड़ने न
देगी प्रार्थना को; पंख न लगने देगी प्रार्थना को।
जीवन में कुछ तो चाहिए ऐसा जो बस अपना साध्य
स्वयं हो। उस कुछ को ही मैं धर्म कहता हूं। फिर चाहे तुम गाओ, चाहे नाचो, चाहे मौन बैठ जाओ, लेकिन एक सूत्र को सदा स्मरण
रखो: तुम्हारे जीवन में ऐसी कोई चीज, जिसके पार कोई अपेक्षा
नहीं है, वही धर्म है।
अगर पार कोई अपेक्षा है, तो संसार जारी है। जहां वासना,
वहां संसार। जहां वासना, वहां भविष्य। आज
करेंगे प्रार्थना, कल उत्तर आएगा। अभी करेंगे प्रार्थना,
थोड़ी देर के बाद उत्तर आएगा। तुम्हारी प्रार्थना में और उत्तर में
थोड़ा तो अंतराल होगा; साधन और साध्य में थोड़ा तो भेद होगा।
जहां वासना है, वहां तुम चूक गए इस क्षण
से। वर्तमान का यह अपूर्व क्षण खाली चला गया। तुम्हारी आंखें भविष्य में अटक गईं। भविष्य
तो रिक्त है, शून्य है। भविष्य कभी आया है कि आएगा! जो आता
है, उसका नाम वर्तमान है। और वर्तमान आया ही हुआ है। आता है,
ऐसा कहना भी ठीक नहीं।
जब मैं कहता हूं प्रार्थना अपना लक्ष्य स्वयं
है, तो इशारा
कर रहा हूं, इस बात की तरफ कि कुछ क्षण तो तुम्हारे जीवन में
ऐसे हों जब तुम बस अभी और यहीं जीओ। इस क्षण के न तो पीछे कुछ हो, न आगे कुछ हो। यह क्षण अपने में पूरा हो। इसकी पूर्णता में जरा भी,
रत्ती भर भरने को कुछ शेष न रहे। और तब तुम चकित हो जाओगे,
प्रार्थना ही अपना उत्तर है, प्रेम ही अपना
उत्तर है। तुम झुक सके, यही पर्याप्त है अनुगृहीत होने को।
चिंता क्या है? परमात्मा कुछ बोले, तब तुम तृप्त होओगे!
सपना यह संसार
ओशो
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