सोरेन कीकेंगार्ड ने, जो पश्चिम के महानतम,
महततम प्रतिभाशाली लोगों में एक हुआ—उसनें कहां है कि 'मनुष्य की सबसे बड़ी समस्या ऊब है, बोर्डम है।’
क्यों? इसीलिए मनुष्य की सबसे बडी समस्या
ऊब है, कि जो जान लिया, उससे ही ऊब
पैदा हो जाती है। पति पत्नियों से ऊबे हुए हैं, पत्नियां पतियों
से ऊबी हुई हैं! क्यों? —जान लिया। अब जानने को कुछ बचा नहीं।
पहचान ली एक दूसरे की भूगोल, झांक लिया एक दूसरे के इतिहास
में, सब परिचित हो गया। अब फिर वही—वही है।
क्यों लोग एक धर्म से दूसरे धर्म में प्रविष्ट
हो जाते हैं? क्यों हिन्दू ईसाई बन जाते हैं? क्यों ईसाई हिन्दू
बन जाते हैं? ऊब गये पढ़—पढ़कर गीता, दोहरा—दोहराकर गीता—बाइबिल थोड़ी नयी लगती है! बाइबिल से ऊब गये—गीता थोड़ी
नयी लगती है। लोग बदलते रहते हैं!
मन हमेशा बदलाहट की मांग करता है। मकान बदल लो; काम बदल लो; पत्नी बदल लो; कपड़े बदल लो फैशन बदल लो। बदलते
रहो, ताकि ऊब न पकड़ ले। न बदलो, तो
ऊब पकड़ती है। लेकिन ये सब बदलाहटें ऊब को मिटा नहीं पातीं, ढांक भला देती हों।
धर्म ही एक मात्र कीमिया है, जिससे ऊब सदा के लिए समाप्त
हो जाती है। किसी ने बुद्ध को ऊबा नहीं देखा! किसी ने महावीर के चेहरे पर ऊब नहीं देखी,
उदासी नहीं देखी, हारापन नहीं देखा,
थकापन नहीं देखा।
तुम्हारे तथाकथित धार्मिक धार्मिक नहीं हैं।
उनके लिए तो धर्म भी एक ऊब है। इसलिए तुम मंदिरों में, धर्म—सभाओं में लोगों को
सोते देखोगे। क्या है वहां जानने को? रामलीला लोग देखने जाते
हैं, तो सोते हैं। रामलीला तो पता ही है! सब वही—वही?
बार—बार देख चुके हैं।
एक स्कुल में ऐसा हुआ... गांव में रामलीला चल
रही थी। सारे बच्चे रामलीला देखने जाते थे। अध्यापक उनको दिखाने ले जाता था। धर्म की
शिक्षा हो रही थी। और तभी स्कूल का इंस्पेक्टर जांच करने आ गया। अध्यापक ने सोचा कि
अभी सब बच्चे रामलीला देख रहे हैं,
ऐसे अवसर पर अगर यह रामलीला के संबंध में ही कुछ प्रश्न पूछ ले,
तो अच्छा होगा।
इंस्पेक्टर ने पूछा कि किस संबंध में बच्चों
से पूछूं? उसने
कहां कि अभी ये रोज रामलीला देखते हैं; मैं भी देखने जाता
हूं इनको दिखाने ले जाता हूं। अभी रामलीला के ही संबंध में कुछ पूछ लें।
तो इंस्पेक्टर ने कहां, 'यही ठीक।’ तो उसने पूछा कि 'बताओ बच्चो, शिवजी का धनुष किसने तोड़ा?'
एक लड़का एकदम से हाथ हिलाने लगा ऊपर उठकर। शिक्षक
भी बहुत हैरान हुआ, क्योंकि वह नम्बर एक का गधा था! इसने कभी हाथ हिलाया ही नहीं था जिंदगी
में! यह पहला ही मौका था। शिक्षक भी चौंका। मगर अब क्या कर सकता था। कहीं यह भद्द न
खुलवा दे और!
अध्यापक तो चुपचाप रहा। इंस्पेक्टर ने कहां, 'ही बेटा, बोलो। किसने शिवजी का धनुष तोड़ा—तुम्हें मालूम है?'
उसने कहां कि 'मुझे मालूम नहीं कि किसने
तोड़ा। मैं तो इसलिए सबसे पहले हाथ हिला रहा हूं कि पहले आपको बता दूं कि मैंने नहीं
तोड़ा! नहीं तो कोई भी चीज टूटती है कहीं—घर में कि बाहर, कि
स्कूल में—मैं ही फंसता हूं। अब यह पता नहीं, किसने तोड़ा है!'
इंस्पेक्टर तो अवाक रहा कि यह कैसी रामलीला देखी
जा रही है! इसके पहले कि कुछ बोले,
सम्हले कि शिक्षक बोला कि 'इंस्पेक्टर साहब,
इसकी बातों में मत आना। इसी हरामजादे ने तोड़ा होगा! यह सामने देख
रहे हैं आप गुलमोहर का झाड़, इसकी डाल इसी ने तोड़ी। यह खिड़की
देख रहे हैं, काच टूटा हुआ—इसी ने तोड़ा! यह मेरी कुर्सी का
हत्था देख रहे हैं—इसी ने तोड़ा। यह देखने में भोला— भाला लगता है; शैतान है शैतान! मैं तो कसम खाकर कह सकता हूं कि मैं इसकी नस—नस पहचानता
हूं। इसी हरामजादे ने तोड़ा है!'
इंस्पेक्टर तो बिलकुल भौंचक्का रह गया कि अब
करना क्या है! अब कहने को भी कुछ नहीं बचा।
‘और', शिक्षक ने कहां, 'आप अगर मेरी न मानते हों, तो और लड़कों से पूछ लो?'
लड़कों ने कहां कि 'जो गुरु जी कह रहे हैं,
ठीक कह रहे हैं!'
एक लड़के ने अपनी टांग बतायी कि यह जो पलस्तर
बंधा है; 'इसी
ने मेरी टल तोड़ी! शिवजी का धनुष अगर कोई तोड़ सकता है, तो यही
लड़का है। यह जो चीज न तोड़ दे...!'
इंस्पेक्टर तो वहां से भागा। प्रधान अध्यापकसे
जाकर उसने कहां कि 'यह क्या माजरा है?'
लेकिन प्रधान अध्यापक बोला कि 'अब आप ज्यादा खयाल न करें।
अरे, ये तो लड़के हैं ,चीजें तोड़ते
ही रहते हैं। लड़के ही ठहरे। आप इतने व्यथित न हों। अब यह तो स्कूल है। हजार लड़के पढ़ते
हैं। अब तोड़ दिया होगा किसी ने शिवजी का धनुष! और जरूरत भी क्या है शिवजी के धनुष की!
अरे टूट गया—तो टूट गया! भाड़ में जाये शिवजी का धनुष। आप क्यों चिंता कर रहे हैं।’
उसकी तो सांसें रुकने लगीं कि क्या रामलीला हो रही है गांव में! और
सारा स्कूल जा रहा है। अध्यापक, प्रधान अध्यापक—सब रामलीला
देखने जा रहे हैं। वह वहां से भागा, सीधा म्युनिसिपल कमेटी
के दफ्तर में पहुंचा, जिसका कि स्कूल था। और उसने कहां...
कि उसको कहूं कि शिक्षा समिति का जो अध्यक्ष है..., 'उससे
मिलना चाहता हूं।’ उसने कहां कि उसको कहूं कि यह क्या माजरा—यह
क्या शिक्षा हो रही है।
मगर इसके पहले... वह पूरी बात कर भी नहीं पाया
था.. .उसने कहां कि 'आप फिक्र न करो। अरे, जुड़वा देंगे। टूट गया,
तो जुड़वा देंगे! ऐसा कौन करोड़ों का दिवाला निकल गया है। अब यह तो
टूटती—फूटती रहती हैं चीजें; जुड़ती रहती हैं! और हम किसलिए
बैठे हैं? कहां है धनुष? एक बढ़ई को
तो हमें लगाये ही रखना पड़ता है। स्कूल में कहीं कुर्सी टूटी, कहीं टेबल टूटी, कहीं कुछ टूटा, कहीं कुछ टूटा। जोड़ देगा धनुष को। इसमें इतने क्यों आप पसीना—पसीना हो रहे
हैं!'
रामलीला सब देख रहे हैं। मगर यह बात... यह कहांवत
सच है कि लोग रातभर रामलीला देखते हैं'
और सुबह पूछते हैं कि सीतामैया रामजी की कौन थीं।.. —क्योंकि देखता
कौन है? लोग सोते हैं। इतनी बार देख चुके हैं कि अब ऊब पैदा
हो गयी है। कोई नयी घटना घट जाये, तो भला देख लें।
जैसे एक रामलीला में यह हुआ कि हनुमानजी गये
तो थे लंका जलाने, अयोध्या को जला दिया! तो सारी सभा आंख खोलकर बैठ गयी! लोग खड़े हो गये। कि
भैया, क्या हो रहा है?
रामजी बोले कि 'अरे हनुमानजी, तुम बंदर के बंदर ही रहे! तुमसे किसने कहां, अयोध्या
जलाने को?'
हनुमानजी भी गुस्से में आ गये! उन्होंने कहां
कि 'तुम भी समझ
लो साफ कि मुझे दूसरी रामलीला में ज्यादा तनखाह पर नौकरी मिल रही है। मैं कुछ डरता
नहीं। जला दी। कर लो, जो कुछ करना हो। बहुत दिन जला चुका लंका।
बार—बार लंका ही लंका जलाओ! मैं भी ऊब गया। कर ले जिसको जो कुछ करना है।’
वह था गांव का पहलवान, उसको कोई क्या करे! रामजी
तो छोटे—से लड़के थे। उसने कहां, 'वह धौल दूंगा कि छठी का दूध
याद आ जायेगा! है कोई माई का लाल, जो मुझे रोक ले! जला दिया
अयोध्या—कर ले कोई कुछ!'
बामुश्किल परदा गिराकर, समझा—बुझाकर उसको कहां कि
' भैया, अब तू घर जा। तुझे दूसरी
रामलीला में जगह मिल गयी है, वहां काम कर!'
उस रात गांव में जरा चर्चा रही! लोगों ने आंख
खोलकर देखा। नहीं तो किसको पड़ी है—अब लंका जलती ही रहती है!
आदमी का मन नये की तलाश करता है। विज्ञान के
हिसाब से तो नया बहुत दिन बचेगा नहीं। कब तक नया बचेगा! इसलिए विज्ञान उबा ही देगा।
इसलिए पश्चिम में जितनी ऊब है,
पूरब में नहीं है। क्योंकि पूरब विज्ञान में पिछड़ा हुआ है। पश्चिम
में जैसी उदासी छायी जा रही है, लोगों को जीवन का अर्थ नहीं
दिखायी पड़ रहा है। सब अर्थ खो गये हैं। वैसा पूरब में नहीं हुआ है अभी। लेकिन होगा—आज
नहीं कल। पूरब जरा घसीटता है, धीरे—धीरे घसीटता है;
पहुंचता वहीं है, जहां पश्चिम। मगर वे जरा
तेज गति से जाते हैं; यह बैलगाड़ी में चलते हैं। पहुंच रहे
हैं वहीं। हम भी विज्ञान की शिक्षा दे रहे हैं।
मैं कोई विज्ञान के विरोध में नहीं हूं। मैं
चाहता हूं विज्ञान की शिक्षा होनी चाहिए। लेकिन यह भ्रांति होगी कि विज्ञान धर्म का
स्थान भरने लगे।
जो बोले तो हरिकथा
ओशो
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