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Thursday, October 13, 2016

जंग सूं प्रीत न कीजिए, समझि मन मेरा



ञानी सदा सरल होते हैं। शब्द उनके सीधे होते हैं; गोल—गोल नहीं, सीधे हृदय पर चोट करते हैं। उनका तीर सीधा है। और इसलिए कई बार ऐसा होता है कि लोग पंडितों के जाल में पड़ जाते हैं और ज्ञानियों से वंचित रह जाते हैं। क्योंकि, लोगों को लगता है कि इतनी सरल बात है, इसमें है ही क्या समझने जैसा?


ध्यान रखना, जहां सरल हो वहीं समझने जैसा है; और जहां कठिन हो वहां सब कचरा है। वह कठिनाई इसीलिए पैदा की गई है ताकि कचरा दिखाई न पड़े।


तुम डाक्टर के पास जाते हो तो डाक्टर इस ढंग से लिखता है कि तुम्हारी समझ में न आए कि क्या लिखा है।


मुल्ला नसरुद्दीन ने तय कर लिया कि अपने लड़के को डाक्टर बनाना है। मैंने पूछा, आखिर कारण क्या है? उसने कहा, आधा तो यह अभी से है; क्या लिखता है, कुछ पता नहीं चलता। आधी योग्यता तो उसमें है ही। अब थोड़ा—सा और, सो पढ़ लेगा कालेज में।


पता नहीं चलना चाहिए। क्योंकि जो लिखा है वह दो पैसे में बाजार में मिल सकता है। और डाक्टर लेटिन भाषा का उपयोग करता है, जो किसी की समझ में न आए। क्योंकि अगर वे उस भाषा का उपयोग करें तो तुम्हारी समझ में आती है तो तुम मुश्किल में पड़ोगे। क्योंकि तुम कहोगे कि यह चीज तो बाजार में दो पैसों में मिल सकती है, इसका बीस रुपया! तुम कैसे दोगे? बीस रुपया लेटिन भाषा की वजह से दे रहे हो।


जो डाक्टर का ढंग है, वह पंडित का ढंग है। वह संस्कृत में प्रार्थना करता है, या लेटिन में, या रोमन में, या अरबी में, कभी लोकभाषा में नहीं। लोगों की समझ में आ जाए तो प्रार्थना में कुछ है ही नहीं। समझ में न आए तो लोग सोचते हैं, कुछ होगा। बड़ा रहस्यपूर्ण है। पंडित की पूरी कोशिश है कि तुम्हारी समझ में न आए, तो ही पंडित का धंधा चलता है। ज्ञानी की पूरी कोशिश है कि तुम्हें समझ में आए, क्योंकि ज्ञानी का कोई धंधा नहीं है।


कबीर के शब्द बड़े सीधे—सादे हैं; एक बेपढ़े—लिखे आदमी के शब्द हैं। पर बड़े गहरे हैं। वेद फीके हैं। उपनिषद थोड़े ज्यादा सजाए—संवारे मालूम पड़ते हैं। कबीर के वचन बिलकुल नग्न हैं, सीधे! रत्तीभर ज्यादा नहीं हैं; जितना होना चाहिए उतना ही हैं।


"जंग सूं प्रीत न कीजिए, समझि मन मेरा।
स्वाद हेत लपटाइए, को निकसै सूरा।'


संसार से प्रेम न कर मेरे मन; समझ! क्योंकि संसार से जिसने प्रेम किया—और संसार से अर्थ है तुम्हारे ही खड़े किए संसार से—वह भटका। भटका क्यों? क्योंकि वह सत्य को कभी जान न सका। उसके अपने ही मन ने रंग इतने डाल दिए सत्य में, कि सत्य का रंग ही खो गया। वह कभी स्त्री को सीधा न देख पाया; देख लेता तो मुक्त हो जाता।

सुनो भई साधो 

ओशो 



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