Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Tuesday, April 2, 2019

जो सिर्फ जिंदगी का इंतजाम कर रहा है वह गृहस्थ है। और जो जिंदगी को जी रहा है वह संन्यासी है।


एक ब्राह्मण एक गांव से एक बकरी खरीद कर वापस लौट रहा है। बड़ी प्रसिद्ध है कहानी, लेकिन आधी सुनी होगी। मैं पूरी ही सुनाना चाहता हूं। वह बकरी को रख कर कंधे पर वापस लौट रहा है। सांझ हो गई है, दो-चार गुंडों ने उसे देखा है। उन्होंने कहा: अरे, यह बकरी तो बड़ी स्वादिष्ट मालूम पड़ती है। इस नासमझ ब्राह्मण के साथ जा रही है, इसको मजा भी क्या आएगा, ब्राह्मण को भी क्या, बकरी को भी क्या। इस बकरी को छीन लेना चाहिए। एक गुंडे ने आकर उसके सामने उस ब्राह्मण से कहा: नमस्कार पंडित जी! बड़ा अच्छा कुत्ता खरीद लाए। उसने कहा: कुत्ता! बकरी है महाशय! आंखें कमजोर हैं आपकी? उसने कहा: बकरी कहते हैं इसे आप? आश्चर्य है। हम भी बकरी को जानते हैं। लेकिन आपकी मर्जी, अपनी-अपनी मर्जी, कोई कुत्ते को बकरी कहना चाहे तो कहे। वह आदमी चल पड़ा। उस ब्राह्मण ने सोचा, अजीब पागल हैं इस गांव के, बकरी को कुत्ता कहते हैं। लेकिन फिर भी एक दफे टटोल कर देखा, शक तो थोड़ा आया ही। लेकिन उसने पाया कि बकरी है, बिल्कुल फिजूल की बात है। अभी दस कदम आगे बढ़ा था। शक मिटा कर किसी तरह आश्वस्त हुआ था कि दूसरा उनका साथी मिला, उसने कहा: नमस्कार पंडित जी! लेकिन, आश्चर्य, ब्राह्मण होकर कुत्ता सिर पर रखें! जाति से बाहर होना है? उसने कहा: कुत्ता! लेकिन अब वह उतनी हिम्मत से न कह सका कि यह बकरी है। हिम्मत कमजोर पड़ गई। उसने कहा: आपको कुत्ता दिखाई पड़ता है? उसने कहा: दिखाई पड़ता है, है! नीचे उतारिए, गांव का कोई आदमी देख लेगा पड़ोस का तो मुश्किल में पड़ जाएंगे।

वह आदमी गया तो उस ब्राह्मण ने उस बकरी को नीचे उतार कर गौर से देखा। वह बिल्कुल बकरी थी। यह तो बिल्कुल बकरी है, लेकिन दो-दो आदमी भूल कर जाएं, यह जरा मुश्किल है। फिर भी सोचा, मजाक भी कर सकते हैं। चला फिर कंधे पर रख कर, लेकिन अब वह डर कर चल रहा है, अब वह जरा अंधेरे में से बच कर निकल रहा है। अब वह गलियों में से चलने लगा है, अब वह रास्ते पर नहीं चल रहा है। तीसरा आदमी उसे एक गली के किनारे पर मिला। उसने कहा: पंडित जी हद्द कर दी। कुत्ता कहां मिल गया? कुत्ते की तलाश मुझे भी है। कहां से ले आए हैं यह कुत्ता, ऐसा मैं भी चाहता हूं। तब तो वह यह भी न कह सका कि क्या कह रहे हैं। उसने कहा कि जी हां, खरीद कर ला रहा हूं। वह आदमी गया कि फिर उसने उतार कर भी नहीं देखा, उसे छोड़ा एक कोने में और भागा। उसने कहा कि अब इससे भाग ही जाना उचित है। झंझट हो जाएगी, गांव के लोग देख लेंगे। पैसे तो मुफ्त गए ही गए, जाति और चली जाएगी।


यह जो तीन आदमी कह गए हैं एक बात को तो बड़ी सच मालूम पड़ने लगती है। यह तो आधी कहानी है।

दूसरे जन्म में ब्राह्मण फिर बकरी लेकर चलता था। बकरी लेकर लौट रहा है लेकिन पिछले जन्म की याद है। वह जिसको याद रह जाए उसी को तो ब्राह्मण कहना चाहिए, किसी और को ब्राह्मण कहना नहीं चाहिए। बकरी लेकर लौट रहा है, वही गुंडे। असल में हम भूल जाते हैं इसलिए ख्याल नहीं रहता है कि वही-वही बार-बार हमको कई बार मिलते हैं, कई जन्मों में वही लोग बार-बार मिल जाते हैं। वही तीन गुंडे, उन्होंने देखा, अरे, ब्राह्मण बकरी को लिए चला जा रहा है! छीन लो, उन्हें कुछ पता नहीं है कि पहले भी छीन चुके हैं। किसको पता है? अगर हमें पता हो कि हम पहले भी यही कर चुके हैं तो शायद फिर दुबारा करना मुश्किल हो जाए। फिर उन्होंने शडयंत्र रच लिया है, फिर एक गुंडा उसे रास्ते पर मिला है। उसने कहा: नमस्कार पंडित जी! बड़ा अच्छा कुत्ता, कहां ले जा रहे हैं? पंडित जी ने कहा: कुत्ता सच में बड़ा अच्छा है। उसने गौर से देखा, गुंडे ने सोचा, हमको तो बकरी दिखाई पड़ती थी, हम तो धोखा देने के लिए कुत्ता कहते थे। और उस पंडित ने कहा: कुत्ता सच में बड़ा अच्छा है, बड़ी मुश्किल से मिला, बहुत मांग कर लाया, बड़ी मेहनत की, खुशामद की किसी आदमी की, तब मिला। उस गुंडे ने बहुत गौर से फिर से देखा कि मामला क्या है, भूल हो गई है? लेकिन उसने कहा: नहीं पंडित जी, कुत्ता ही है न! उसने कहा: कैसी बात कर रहे हैं आप, कुत्ता ही है। अब वह गुंडा मुश्किल में पड़ गया है, वह यह भी नहीं कह सकता कि बकरी है, क्योंकि खुद उसने कुत्ता कहा था। दूसरे कोने पर दूसरा गुंडा मिला। उसने कहा कि धन्य हैं, धन्य महाराज, आप कुत्ता सिर पर लिए हुए हैं?


ब्राह्मण ने कहा: कुत्ते से मुझे बड़ा प्रेम है। आपको पसंद नहीं आया कुत्ता? उस आदमी ने गौर से देखा, उसने कहा: कुत्ता! तीसरे चैरस्ते पर मिला है तीसरा आदमी, लेकिन उन दोनों ने उसको खबर दे दी कि मालूम होता है, हम ही गलती में हैं। हमें बकरी दिखाई पड़ रही है। उस तीसरे आदमी ने गौर से देखा। और उस पंडित ने कहा: क्या देख रहे हैं गौर से? उसने कहा: कुछ नहीं, आपका कुत्ता देख रहा हूं। काफी अच्छा है।

हम भीड़ से जी रहे हैं और चल रहे हैं और पुनरुक्ति हमारा आधार बन गया है। चारों तरफ जो हो वह हमें स्वीकार हो जाता है। और अगर पुनरुक्ति की जाए बार-बार असत्य की भी तो वह सत्य मालूम पड़ने लगता है। यह बात बहुत बार दोहराई गई है कि संन्यासी वह है जो भाग रहा है जिंदगी से। जो भाग रहा है वह संन्यासी तो क्या, गृहस्थ भी नहीं है। संन्यासी होना तो बहुत मुश्किल है। जो जिंदगी को जी रहा है वह संन्यासी है। और जो सिर्फ जिंदगी जीने का इंतजाम कर रहा है, और जी नहीं रहा है, वह गृहस्थ है। जो सिर्फ जिंदगी का इंतजाम कर रहा है और जी नहीं रहा है वह गृहस्थ है। और जो जिंदगी को जी रहा है वह संन्यासी है।

जीवन ही है प्रभु 

ओशो


No comments:

Post a Comment

Popular Posts