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Monday, April 8, 2019

नारीवाद


यह ध्यान रहे कि पुरुष के लिए प्रेम 24 घंटे में आधी घड़ी, घड़ी भर की बात है। उसके लिए और बहुत काम हैं। प्रेम भी एक काम है। प्रेम से भी निपटकर दूसरे कामों में वह लग जाता है। स्‍त्री के लिए प्रेम ही एकमात्र काम है। और सारे काम उसी प्रेम से निकलते हैं और पैदा होते हैं।

तो अगर पुरुष को विधुर रखा जाये तो उतना टार्चर नहीं है, जितना स्‍त्री को विधवा रखना अत्याचार है। उसे 24 घंटे प्रेम की जंजीर है। प्रेम गयाउस जंजीर के सिवाय कुछ नहीं रह गया। और दूसरे प्रेम की संभावना समाज छोड़ता नहीं। लेकिन हजारों साल तक हम उसे जलाते रहे और कभी किसी ने न सोचा!

अगर कोई पूछता था कि स्रियों को क्यों जलना चाहिए आग में? तो पुरुष कहते, उसका प्रेम है, वही जी नहीं सकती पुरुष के बिना। लेकिन किसी पुरुष को प्रेम नहीं था इस मुल्क में कि वह किसी स्‍त्री के लिए सती हो जाते? वह सवाल ही नहीं है। वह सवाल ही नहीं उठाना चाहिए। क्योंकि सारे धर्मग्रंथ पुरुष लिखते हैं, अपने हिसाब से लिखते हैं, अपने स्वार्थ से लिखते हैं। स्त्रियों का लिखा हुआ न ग्रंथ है, न स्त्रियों का मनु है, न स्रियों का याज्ञवल्ल है! स्त्रियों का कोई स्मृतिकार नहीं, स्रियों का कोई धर्मग्रंथ नहीं! स्रियों का कोई सूत्र नहीं! उनकी कोई आवाज नहीं! पूरब की स्‍त्री तो एक गुलाम छाया है, जो पति के आगे पीछे घूमती रहती है।

पश्चिम की स्‍त्री ने विद्रोह किया है। और मैं कहता हूं कि अगर छाया की तरह रहना है तो उससे बेहतर है वह विद्रोह। लेकिन वह विद्रोह बिलकुल गलत रास्ते पर चला गया। वह गलत रास्ता यह है कि पश्‍चिम की स्‍त्री ने विद्रोह का मतलब यह लिया है कि ठीक पुरुष जैसी वह भी खड़ी हो जाये! पुरुष जैसी वह हो जाये!

पश्‍चिम की स्‍त्री पुरुष होने की दौड़ में पड़ गयी। वह पुरुष जैसे वस्त्र पहनेगी, पुरुष जैसा बाल कटायेगी, पुरुष जैसा सिगरेट पीना चाहेगी, पुरुष जैसा सड्कों पर चलना चाहेगी, पुरुष जैसा अभद्र शब्दों का उपयोग करना चाहेगी। वह पुरुष के मुकाबले खड़ा हो जाना चाहती है।

एक लिहाज से फिर भी अच्छी बात है। कम से कम बगावत तो है। कम से कम हजारों साल की गुलामी को तोड़ने का तो खयाल है। लेकिन गुलामी ही नहीं तोड़नी है। क्योंकि गुलामी तोड़कर भी कोई कुएं में से खाई में गिर सकता है।

पश्‍चिम की स्‍त्री इसी हालत में खड़ी हो गई। वह जितना अपने को पुरुष जैसा बनाती जा रही है, उतना ही उसका व्यक्तित्व फिर खोता चला जा रहा है। भारत में वह छाया बनकर खतम हो गई। पश्चिम में वह नंबर 2 का पुरुष बनकर खतम होती जा रही है। उनका अपना व्यक्तित्व वहां भी नहीं रह जायेगा!

सम्भोग से समाधि की ओर 

ओशो

 

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