बुद्धत्व का अर्थ तो साधा—साधा है। बुद्धत्व का अर्थ होता है, जागा हुआ चित्त। बुद्धत्व का अर्थ होता है, होश।
बुद्धत्व का अर्थ होता है, जो उठ खड़ा हुआ। जो अब सोया नहीं
है, जिसकी मूर्च्छा टूट गयी।
जैसे एक आदमी शराब पीकर रात गिर गया हो रास्ते पर और नाली में
पड़ा रहा हो और रातभर वहीं सपने देखता रहा हो,
और सुबह आंख खुले और उठकर खड़ा हो जाए और घर की तरफ चलने लगे। ऐसा
अर्थ है बुद्धत्व का। जन्मों—जन्मों से हम न मालूम कितनी तरह
की शराबें पीकर—धन की, पद की, प्रतिष्ठा की, अहंकार की—पड़े
हैं मूर्च्छित। गंदी नालियों में पड़े —हैं। सपने देख .रहे
हैं। जिस दिन हम जाग जाते हैं, उठकर खड़े हो जोते हैं,
याद आती है कि हम कहा पड़े है और हम घर की तरफ चलने लगते हैं—बुद्धत्व। बुद्धत्व का अर्थ है, जो जागा, जो उठा, जो अपने घर की तरफ चला।
बुद्धत्व का गौतम बुद्ध से कुछ लेना—देना नहीं है, वह उनका नाम नहीं है। जीसस उतने ही बुद्ध हैं, जितने
बुद्ध। मोहम्मद उतने ही बुद्ध हैं, जितने बुद्ध। कबीर और
नानक उतने ही बुद्ध हैं, जितने बुद्ध। मीरा, सहजो और दया उतनी ही बुद्ध हैं जितने कि बुद्ध। बुद्धत्व का कोई संबंध
किसी व्यक्ति से नहीं है, यह तो चैतन्य की प्रकाशमान दशा का
नाम है।
इस छोटी सी कहानी को समझो—
एक बार ब्राह्मण द्रोण भगवान बुद्ध के पास आया और उसने तथागत से
पूछा, क्या आप
देव हैं? भगवान ने कहा, नहीं, मैं देव नहीं। तो उसने पूछा, क्या आप —गंधर्व हैं? तो भगवान ने कहा, नहीं,
गंधर्व मैं नहीं। तो उसने पूछा, आप यक्ष हैं?
तो भगवान ने कहा, नहीं, न
ही मैं यक्ष ही हूं। तब क्या आप आदमी ही हैं? और बुद्ध ने
कहा, नहीं, मैं मनुष्य भी नहीं हूं।
ब्राह्मण तो हैरान हुआ। उसने पूछा, गुस्ताखी माफ हो, तो क्या आप पश—पक्षी हैं? बुद्ध
ने कहा, नहीं। तो उसने कहा, आप मुझे
मजबूर किए दे रहे हैं यह पूछने को तो क्या आप पत्थर—पहाड़ हैं? पौधा—वनएकति हैं?
बुद्ध ने कहा, नहीं। तो उसने कहा, फिर आप ही बतलाए, आप कौन हैं? क्या
हैं?
उत्तर में तथागत ने कहा,
वे वासनाएं, वे इच्छाएं, वे दुष्कर्म, वे सत्कर्म जिनका अस्तित्व मुझे देव,
गंधर्व, यक्ष, आदमी,
वनएकति या पत्थर बना सकता था, समाप्त हो गयी
हैं। वे वासनाएं तिरोहित हो गयी हैं, जिनके कारण मैं किसी
रूप में ढलता था, किसी आकार में जकड़ जाता था। इसलिए ब्राह्मण,
जानो कि मैं इनमें से कुछ भी नहीं हूं मैं जाग गया हूं मैं बुद्ध
हूं।
वे सब सोए होने की अवस्थाएं थीं। कोई सोया है वनएकति की तरह—देखते हैँ, ये जो अशोक के वृक्ष खड़े हैं, ये अशोक के वृक्ष की
तरह सोए हैं। बस इतना ही फर्क है तुममें और इनमें, तुम आदमी
की तरह सोए हो, ये अशोक के वृक्षों की तरह सोए हैं। कोई पहाड़—पत्थर की तरह सोया है। कोई स्त्री की तरह सोया है, कोई
पुरुष की तरह सोया है। ये सब सोने की ही दशाएं हैं। सब दशाएं सोने की दशाएं हैं।
सब स्थितियां निद्रा की स्थितियां हैं। बुद्धत्व कोई स्थिति नहीं है, सारी स्थितियों से जाग जाने का नाम है। जो जाग गया और जिसने जान लिया कि
मैं अरूप, निराकार, जिसने जान लिया कि
न मेरा कोई रूप, न मेरा कोई आकार, न
मेरी कोई देह।
बुद्ध ने ठीक ही कहा कि न मैं देव हूं न मैं गंधर्व हूं न मैं
यक्ष हूं न मैं मनुष्य हूं न मैं पशु,
न मैं पौधा, न मैं पत्थर—मैं बुद्ध हूं।
बुद्धत्व सबकी संभावना है,
क्योंकि जो सोया है, वह जाग सकता है। सोने में
ही यह बात छिपी है। तुम सोए हो, इसमें ही यह संभावना छिपी है
कि तुम चाहो तो जाग भी सकते हो। जो सो सकता है, वह जाग क्यों
नहीं सकता? जरा प्रयास की जरूरत होगी। जरा चेष्टा करनी होगी।
एस धम्मो सनंतनो
ओशो
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