मैं और गरीबी के कल्याण का विरोधी भला कैसे हो सकता हूं? कोई भी क्यों होगा? लेकिन यह ध्यान रहे कि गरीबों का कल्याण करने की आवाज हजारों सालों से चलती है और न मालूम कितने गरीबों के कल्याण करने वाले पैदा हो गए; लेकिन कल्याण गरीबों का नहीं होता, सिर्फ गरीबों के कल्याण की आवाज पर वह जो कल्याण करने वाले हैं, अपना कल्याण कर लेते हैं। और गरीब अपनी जगह पड़ा रह जाता है। उस गरीब के कल्याण से उसका कोई संबंध नहीं होता। लेकिन गरीब साथ जरूर दे देता है। साथ दे देता है, यह आवाज सुन कर कि हमारे कल्याण के लिए यह सब हो रहा है, कुर्बान भी कर देता है, गोली भी खा लेता है, मर भी जाता है। समाजवाद के लिए जो शहीद होते हैं, वे और हैं समाजवाद की ताकत जिनके हाथ में आती है, वे और हैं। समाजवाद के लिए जो मरेगा, वह गरीब होगा। समाजवाद की जिसके हाथ में ताकत आएगी, वह गरीब नहीं है। वह फिर अमीरों का नया वर्ग होगा। असल में ताकत जिसके हाथ में आ जाएगी, वह तत्काल अमीर हो जाएगा।
आदमी आदमी में फर्क क्या है? आज जो गरीब की तरफदारी कर रहा है, जैसे ही वह कल शक्ति में पहुंचता है, उसके अपने न्यस्त स्वार्थ हो जाते हैं। अब उसे शक्ति में रहना जरूरी हो जाता है, तो वह जिनके ऊपर सीढ़ी बना कर आया था, उन सीढ़ियों को काटना शुरू कर देता है, क्योंकि उन्हीं सीढ़ियों से कल दूसरा भी कोई ऊपर आ सकता है। गरीब का कल्याण कभी भी नहीं हुआ। हां गरीब के कल्याण पर आंदोेलन बहुत हुए, क्रांतियां बहुत हुई, हत्याएं बहुत हुई। और गरीब का कल्याण नहीं हुआ। अभी गरीब के कल्याण से थोड़ा चैंकने की जरूरत है।
अब जब भी कोई आदमी कहे कि मैं गरीब का कल्याण चाहता हूं, तब जरा सम्हल जाने की जरूरत है कि कोई खतरनाक आदमी आया है। अब यह फिर गरीब की छाती पर पैर रखेगा और गरीब नासमझ है, नासमझ न होता तो गरीब न होता। नासमझ होने की वजह से गरीब है। इसलिए वह फिर नया मसीहा उसे मिल जाता है। नये पैगंबर मिल जाते हैं। नये नेता मिल जाते हैं। ए फिर उसकी छाती पर चढ़ जाते हैं। हिटलर भी गरीबों का कल्याण करके छाती पर चढ़ता है, मुसोलिनी भी गरीबों का कल्याण करने के लिए छाती पर चढ़ता है--माओ भी, स्टैलिन भी। सारी दुनिया में सब गरीबों का कल्याण करना चाहते हैं और गरीब का कोई कल्याण होता दिखाई नहीं पड़ता। नहीं, गरीब का कल्याण इन कल्याण करने वालों से नहीं होगा।
गरीब का कल्याण न होने का कारण क्या है? कारण सिर्फ एक है कि संपत्ति कम है और लोग ज्यादा हैं। गरीब का कल्याण ऐसे नहीं हो सकता। किसी को भी बिठा दोे सत्ता में। उसके बैठ जाने से कुछ भी नहीं होने वाला है। सवाल असली यह है कि संपत्ति कम है और लोग ज्यादा हैं। संपत्ति ज्यादा होनी चाहिए। संपत्ति लोगों से ज्यादा होनी चाहिए। उनकी जरूरत से ज्यादा होनी चाहिए। यह संपत्ति कैसे पैदा हो, यह सवाल है। लेकिन जो संपत्ति पैदा कर सकते हैं, गरीब उनके खिलाफ खड़ा हो जाता है। जो गरीब के लिए हितकर हो सकते हैं; गरीब उनके खिलाफ खड़ा हो जाता है। आदमी की यह आदत बहुत पुरानी है।
यह बहुत आश्चर्य है। गैलीलियो को फांसी पर लटका दिया और आज गैलीलियो की खोज से सारी दुनिया लाभान्वित हो रही है। जीसस को हमने सूली पर लटका दिया, लेकिन जीसस की खोज सारी दुनिया को मनुष्य बनाने का कारण बन रही है। सुकरात को हमने जहर पिला दिया, लेकिन सुकरात ने जो कहा, वह अनंतकाल तक मनुष्य की आत्मा के विकास के लिए अनिवार्य रास्ता है।
आदमी बहुत अजीब है। वह अपने कल्याण करने वालों को कभी नहीं पहचान पाता है कि कौन उसका कल्याण कर रहा है। असल में जो जितना शोरगुल मचाता है कल्याण करने का, वह उतना ही आगे दिखाई देने लगता है और जो कल्याण कर रहे हैं वे चुपचाप काम में लगे रहते हैं। उनका शोरगुल कुछ पता भी नहीं चलता कि कौन कल्याण कर रहा है। और हम तो प्रचार से प्रभावित होते हैं।
मैं आप से कहना चाहता हूं कि जिन लोगों ने कल्याण किया, वे लोग कुछ और हैं। कोई वैज्ञानिक जो अपनी लेबोरेटरी में बैठ कर खोज कर रहा है, वह कल्याण कर सकता है, लेकिन एक राजनीतिज्ञ नहीं--जो दिल्ली में बैठा है और तिकड़मबाजियां भिड़ा रहा है कि किसकी टांग खींचें, किसकी कुर्सी उलटाएं? इससे हित होने वाला नहीं है। एक लेबोरेटरी में अनजान आदमी जिसका गरीब कभी नाम भी नहीं जानेगा कि उसका बच्चा...किस पैनेसिलिन की खोज से बच रहा है? कौन उसकी टी.बी. के लिए इंतजाम कर रहा है? कौन उसकी कैंसर के लिए फिकर कर रहा है, कौन उसकी उम्र बढ़ा रहा है? उसका उसे पता भी नहीं चलेगा। कौन उसके घर बिजली को रोशनी जला रहा है? उसे पता भी नहीं चलेगा। लेकिन राजनीतिज्ञ ऐसा है जो कुछ भी नहीं कर रहा है, केवल झंडा पकड़ना जानता है और जोर से चिल्लाना जानता है। असल में कुछ लोगों को जोर से चिल्लाने में बहुत मजा आता है।
मनुष्य का कल्याण करने वाले कौन लोग हैं? वे चुपचाप अपने काम में संलग्न हैं। उनकी खोजें जिंदगी के अंधेरे कोनों में काम कर रही हैं। वे मर जाएंगे, आपके लिए। आपको पता भी नहीं चलेगा कि कौन वैज्ञानिक आपके लिए जहर चख कर मर गया, इसलिए कि वह जहर किसी की जिंदगी न ले ले। आपको पता न चलेगा कि कौन वैज्ञानिक बीमारियों के कीटाणु की परीक्षा करते-करते बीमार होकर मर गया कि वह कीटाणु किसी दूसरे को बीमार न कर सकें। आपको पता न चलेगा कि कौन वैज्ञानिक आटोमेटिक यंत्र खोज रहा है, जिससे किसी आदमी को श्रम करने की जरूरत न रह जाए। लेकिन राजनीतिज्ञ चिल्लाता रहेगा कि हम कल्याण करने वाले हैं, हम कल्याण कर रहे हैं। राजनीतिज्ञ से कल्याण नहीं होता, क्रांतियों से कल्याण नहीं हुआ। बड़े मजे की बात है कि क्रांतियों से कोई कल्याण नहीं हुआ, बलकि क्रांतियों ने कई अर्थों में हजार तरह की हानियां पहुंचाई हैं। मनुष्य के विकास में व्यवधान पैदा किए, बाधाएं खड़ी कीं। जो सहज गति से जीवन की धारा जाती थी, उसे बहुत जगह से तोड़ा और रोका।
अब ऐसी क्रांति की जरूरत है जो बाकी की क्रांतियों को भुला दे। अब एक ऐसी क्रांति की जरूरत है, जो कल्याण करनेवालों से कहे कि आप क्षमा करें। बहुत कल्याण हो चुका। पंाच हजार साल से जो हमारा कल्याण करते हैं, अभी तक नहीं कर पाए, अब आप चुप हो जाएं। अब आपकी कोई जरूरत नहीं है।
गरीब के कल्याण का मतलब है, संपत्ति का उत्पादन और गरीब के कल्याण का मतलब है, ऐसे यंत्रों का उत्पादन जो संपत्ति को हजार गुना रूप से पैदा करने लगे। गरीब के कल्याण का मतलब है, पृथ्वी को वर्ग-विद्वेष से विहीन करने का उपाय, वर्ग-विद्वेष नहीं। लेकिन सारे समाजवादी वर्ग-विद्वेष पर जीते हैं। उनका सारा जीना क्लास-कांफ्लिक्ट पर है। गरीब को अमीर के खिलाफ भड़काओ, कारखाना कम चले, कारखाने बंद हों, हड़ताल हो, बाजार बंद हों, मोर्चे हों--इनमें लगे रहें। गरीब को पता नहीं कि जितने मोर्चे होते हैं, जितनी हड़तालें होती हैं, जितना कारखाना बंद होता है--गरीब अपने हाथों से गरीब होने का उपाय कर रहा है; क्योंकि ऐसे देश की संपत्ति कम होगी।
कौन कर रहा है कल्याण? अगर कल्याण करना है तो जोर से लग जाओ संपत्ति पैदा करने में। जोर से कर्म में लगो, जोर से उत्पादन करो। वर्ग-विद्वेष की आग लगाकर उत्पादन की व्यवस्था को मत रोको; बल्कि वर्गों को निकट लाओ। लेकिन नेता वर्गों को निकट लाए तो नेता को कौन पूछे? नेता तभी पूछा जाता है जब वह किसी को लड़ाता है। बिना लड़ाए नेता का कोई अस्तित्व नहीं। इसलिए दुनिया में जब तक नेता रहेंगे, तब तक लड़ाई रहेगी। नेता को विदा करिए, लड़ाई विदा हो जाएगी। नेता लड़ाई निर्माण करता है। वे नेता का भोजन है--उसका आधार, उसका प्राण, उसकी आत्मा, उसका परमात्मा है।
नए भारत का जन्म
ओशो
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