आदमी जब गिरता है तो पशु से बदतर हो जाता है। और अगर आदमी उठे तो
परमात्मा से उपर हो सका है। बुद्धत्व का अर्थ है: उठना पशुत्व का अर्थ है
गिरना। और मनुष्य मध्य में है। इस लिए दोनों तरफ की यात्रा बराबर दूरी पर है।
जितनी मेहनत करने से आदमी परमात्मा होता है। उतनी ही मेहनत करने से पशु भी हो
जाता है। तुम यह मत सोचना कि एडोल्फ हिटलर कोई मेहनत नहीं करता है। मेहनत तो बड़ी
करता है तब हो पाता है। यह मेहनत उतनी ही है जितनी मेहनत बुद्ध ने की भगवान होने
के लिए,उतनी ही
मेहनत से सह पशु हो जाता है।
जितने श्रम से तुम आपने को गंवा दोगे। तुम पर निर्भर है, तुम ठीक मध्य में खड़े हो।
उतने कदम उठाकर तुम पशु के पार पहुंच जाओगे।
बुद्ध ने कहा: पुरूष श्रेष्ठ दुर्लभ है,
वह सर्वत्र उत्पन्न नहीं होता। वह मध्यदेश में ही उत्पन्न होता
है और जन्म से महाधन वान होता है।
तो मनुष्य की महिमा भी अपार है। क्योंकि यहीं से द्वार खुलता
है। और मनुष्य का खतरा भी बहुत बड़ा है। क्योंकि यहीं से कोई गिरता है। तो सम्हलकर
कदम रखना, एक-एक
कदम फूंक-फूंक कर रखना। क्योंकि सीढ़ी यहीं है नीचे भी जाती है, जरा चूके कि चले जाओगे।
सदा ख्याल रखना,
गिरना सुगम मालूम पड़ता है। क्योंकि गिरने में लगता है कुछ नहीं
करना पड़ता, उठना कठिन मालूम पड़ता है। क्योंकि गिरना कभी
सुगम नहीं है। उसमे भी बड़ी कठिनाई है, बड़ी चिंता, बड़ा दुःख बड़ी पीड़ा। लेकिन साधारण: ऐसा लगता है गिरने में आसानी है।
उतार है—चढ़ाव पर कठिनाई मालूम पड़ती है। लेकिन चढ़ाव का मजा
भी है। क्योंकि शिखर करीब आने लगता है आनंद का, आनंद की
हवाएँ बहने लगती है। सुगंध भरने लगती है। रोशनी की दुनिया खुलने लगती है।
तो चढ़ाव की कठिनाई है,
चढ़ाव का मजा है। उतार की सरलता है, उतार की
अड़चन है। मगर हिसाब अगर पूरा करोगे तो मैं तुमसे यह कहना चाहता हूं कि बराबर आता
है। बुरे होने में जितना श्रम करना पड़ता है। उतना ही श्रम भले होने में पड़ता है।
इसलिए वे नासमझ है, जो बुरे होने में श्रम लगा रहे है। उतने
में ही तो फूल खिल जाते है। जितने श्रम से तुम दूसरों को मार रहे हो, उतने श्रम में तो अपना पुनर्जन्म हो जाता।
एस धम्मो सनंतनो
ओशो
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