जो हम सोचते हैं, अनुभव करते हैं, उसे सही-सही
शब्दों में नहीं लिख सकते हैं। इसलिए जो कहा है, गीता में
शास्त्रों में, तो इससे लगता है कि इससे ज्यादा और शब्द
नहीं हैं अपने पास कहने के लिए।
असल में तुम्हारे पास अनुभव हो तो तुम्हारा
कमजोर से कमजोर शब्द भी ज्यादा बलवान होगा, बजाय उधार
शब्द के। जैसे एक आम आदमी किसी को प्रेम करता है और प्रेम पत्र लिखता है। वह कोई
टूटे-फूटे अक्षरों में अपनी बात लिख दे रहा है तो भी वह पत्र ज्यादा प्यारा होगा, बजाय इसके कि वह किताब में से छपा हुआ पत्र उतार कर भेज दे।
वह छपा हुआ किताब में से लिया गया ज्यादा ठीक होगा, व्यवस्थित
होगा, लेकिन निष्प्राण होगा। उसमें प्राण नहीं होंगे। तो अपना
अनुभव अगर टूटे-फूटे शब्दों में भी प्रकट हो तो जीवंत होता है क्योंकि तुम्हारा
है। और असली सवाल उसके जीवंत हो जाने का है, असली सवाल
उसके अच्छे शब्दों का नहीं है।
तो जहां तक बन सके, उधार शब्दों से बचना ही चाहिए। और उधार शब्दों को तुम पकड़ते
ही इसीलिए हो कि तुम्हारे पास अपना कोई अनुभव नहीं है। अनुभव हो तो नहीं पकड़ोगे।
अनुभव अपना रास्ता खोज लेता है प्रकट होने का। जब जरूरत होती है तब रास्ता खोज
लेता है। तुम्हें पता भी नहीं चलता है कि उसने रास्ता खोज लिया। वह तुम्हारे भीतर
एक तीव्र पीड़ा बन जाता है। वह इतनी पीड़ा बन जाता है, जैसे प्रकट
होने के लिए बादल आकाश में घिरता है, उसमें अगर
पानी है, अगर वह कोरा और खाली बादल नहीं है तो वह
बरसेगा ही। बरसने का रास्ता अपना खोज लेगा। फूल में अगर प्राण है तो वह खिलेगा और
सुगंध फेंकने का रास्ता खोज लेना। तुम्हारे भीतर जिस दिन अनुभव होगा उस दिन
अभिव्यक्ति का मार्ग भी खोजना शुरू कर देगा। वह खोज ही लेगा। नहीं है अनुभव, तो फिर तुम उधार शब्दों को पकड़े बैठे रहोगे और उनको दोहराते
रहोगे और धोखा अपने को यह दोगे कि चूंकि शब्द हमें नहीं मिलते इसलिए हम इन शब्दों
का उपयोग कर रहे हैं। टूटा-फूटा शब्द भी बहुत मूल्यवान है--तुम्हारा होना चाहिए।
तो तुम पाओगे, उसमें एक इनटेंसिटी होगी, एक तीव्रता होगी, एक बल होगा।
और इसलिए अक्सर यह बड़े मजे की बात है कि
दुनिया में जितने लोगों ने बहुत बलशाली शब्द बोले हैं, वे अक्सर गैर पढ़े लोग हैं। मोहम्मद के पास कोई पढ़ाई-लिखाई
नहीं थी, जीसस के पास कोई पढ़ाई-लिखाई नहीं थी।
रामकृष्ण के पास कोई पढ़ाई-लिखाई न थी। इतने बलशाली शब्द वाले हैं जीसस ने, जिसका कोई हिसाब नहीं। वैसे शब्द हैं, जैसे कि जानवर चराने वाले आदमी होते हैं। लेकिन उनमें बल और
ताजगी भी उतनी है, लकड़ी की चोट पर हैं वे शब्द। मोहम्मद के
शब्दों में कोई बहुत पढ़े-लिखे आदमी का कुछ भी नहीं है। वह पढ़ा-लिखा आदमी नहीं है।
वह वही है जैसा कि एक ऊंटों को चराने और काफिलों को ढोने वाले आदमी के शब्द होते
हैं। लेकिन बड़ी ताजगी बड़ा बल है, बड़ी चोट है, उसमें। वह सीधा आ रहा है। उसमें कोई उधार बीच में नहीं है।
तो दुनिया में यह जान कर तुम्हें हैरानी
होगी कि पंडितों ने कभी बलशाली शब्द नहीं बोले हैं। अब तक दुनिया के श्रेष्ठतम
बोले गए शब्द करीब-करीब अधिकतम मात्रा में पंडितों के बोले हुए शब्द नहीं है
क्योंकि न तो आत्मा की ताकत होती है पीछे, न वह दृढ़ता
होती है जो अनुभव से आती है, न वह तीव्रता
होती है। वह कुछ भी नहीं होता। मैं किसी को प्रेम करता हूं और हृदय से लगाता हूं
इसकी तीव्रता बिलकुल और है और मैं किसी किताब में पढ़ता हूं कि प्रेम करने में किसी
को हृदय से लगाना और इसीलिए किसी को हृदय से लगाता हूं, इन दोनों की तीव्रता में फर्क पड़ेगा। दूसरा केवल एक अभिनय
होगा कि किताब में लिखा है इसलिए लगा कर देखना चाहिए कि क्या होता है? उसमें न कोई तीव्रता है, न कोई छटपटाहट
है।
अमृत द्वार
ओशो
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