बुद्ध का धर्म
बुद्धि का धर्म
कहा गया
है। बुद्धि पर उसका आदि
तो है, अंत नहीं। शुरुआत बुद्धि से है।
प्रारंभ बुद्धि से
है। क्योंकि मनुष्य वहा खड़ा
है। लेकिन अंत,
अंत उसका
बुद्धि में नहीं
है। अंत
तो परम
अतिक्रमण है, जहां
सब विचार खो जाते हैं, सब
बुद्धिमत्ता विसर्जित हो
जाती है; जहां केवल साक्षी, मात्र
साक्षी शेष रह
जाता है।
लेकिन बुद्ध का
प्रभाव उन लोगों में तत्क्षण
अनुभव होता है
जो सोच-विचार में
कुशल हैं।
बुद्ध के साथ
मनुष्य-जाति का
एक नया
अध्याय शुरू हुआ।
पच्चीस सौ वर्ष
पहले बुद्ध ने वह कहा
जो आज
भी सार्थक' मालूम
पड़ेगा, और जो
आने वाली
सदियों तक सार्थक रहेगा। बुद्ध ने
विश्लेषण दिया, एनालिसिस दी। और जैसा
सूक्ष्म विश्लेषण उन्होंने किया,
कभी किसी
ने न
किया था, और फिर दुबारा कोई न कर
पाया। उन्होंने जीवन
की समस्या के उत्तर शास्त्र से नहीं दिए, विश्लेषण
की प्रक्रिया से दिए।
बुद्ध धर्म के
पहले वैज्ञानिक हैं। उनके साथ
श्रद्धा और आस्था की जरूरत नहीं
है। उनके
साथ तो
समझ पर्याप्त है। अगर तुम
समझने को राजी
हो, तो
तुम बुद्ध की नौका में
सवार हो
जाओगे। अगर श्रद्धा भी आएगी, तो
समझ की
छाया होगी। लेकिन समझ के
पहले श्रद्धा की मांग बुद्ध की नहीं है।
बुद्ध यह नहीं
कहते कि
जो मैं
कहता हूं, भरोसा
कर लो।
बुद्ध कहते हैं, सोचो, विचारों,
विश्लेषण करो, खोजो, पाओ अपने अनुभव से,
तो भरोसा कर लेना।
दुनिया के सारे
धर्मों ने भरोसे को पहले रखा
है, सिर्फ बुद्ध को छोड़कर। दुनिया के सारे
धर्मों में श्रद्धा प्राथमिक है, फिर
ही कदम
उठेगा। बुद्ध ने
कहा, अनुभव प्राथमिक है,
श्रद्धा आनुसांगिक है। अनुभव होगा, तो
श्रद्धा होगी। अनुभव होगा,
तो आस्था होगी।
इसलिए बुद्ध कहते
हैं, आस्था की
कोई जरूरत नहीं है; अनुभव के साथ
अपने से
आ जाएगी, तुम्हें
लानी नहीं
है। और
तुम्हारी लायी हुई
आस्था का मूल्य भी क्या हो
सकता है? तुम्हारी लायी आस्था के पीछे भी
छिपे होंगे तुम्हारे संदेह।
तुम आरोपित भी
कर लोगे
विश्वास को, तो
भी विश्वास के पीछे अविश्वास खड़ा होगा। तुम
कितनी ही दृढता से भरोसा करना
चाहो, लेकिन तुम्हारी दृढ़ता कंपती रहेगी और तुम जानते रहोगे कि जो
तुम्हारे अनुभव में
नहीं उतरा
है, उसे
तुम चाहो
भी तो
भी कैसे
मान सकते
हो? मान
भी लो, तो भी कैसे
मान सकते
हो? तुम्हारा ईश्वर कोरा शब्दजाल होगा,
जब तक
अनुभव की किरण
न उतरी
हो। तुम्हारे मोक्ष की धारणा मात्र शाब्दिक होगी, जब
तक मुक्ति का थोड़ा स्वाद तुम्हें न लगा
हो।
बुद्ध ने कहा
: मुझ पर भरोसा मत करना। मैं
जो कहता
हूं उस
पर इसलिए भरोसा मत करना
कि मैं
कहता हूं।
सोचना, विचारना, जीना। तुम्हारे अनुभव की
कसौटी पर सही
हो जाए, तो
ही सही
है। मेरे
कहने से
क्या सही
होगा!
एस धम्मो सनंतनो
ओशो
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