इसलिए शुभ ही है
कि शांडिल्य अपने इस अपूर्व सूत्र ग्रंथ का
उदघाटन ओम से
करते हैं।
ठीक ही
है, क्योंकि भक्ति जीवन में
संगीत पैदा करने
की विधि
है। जिस
दिन तुम
संगीतपूर्ण हो जाओगे; जिस
दिन
तुम्हारे भीतर एक
भी स्वर
ऐसा न
रहेगा जो व्याघात उत्पन्न करता है; जिस
दिन तुम
बेसुरे न रहोगे, उसी
दिन प्रभु मिलन हो गया।
प्रभु कहीं और
थोड़े ही
है छंदबद्धता में है, लयबद्धता मे है। जिस
दिन नृत्य पूरा हो उठेगा, गान
मुखरित होगा, तुम्हारे भीतर का छंद
जिस क्षण
स्वच्छंद होगा, उसी
क्षण परमात्मा से मिलन हो
गया।
अथातो भक्ति जिज्ञासा
ओशो
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