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Saturday, August 13, 2016

भक्ति जीवन का परम स्वीकार है



इसलिए शुभ ही है कि शांडिल्य अपने इस अपूर्व सूत्र ग्रंथ का उदघाटन ओम से करते हैं। ठीक ही है, क्योंकि भक्ति जीवन में संगीत पैदा करने की विधि है। जिस दिन तुम संगीतपूर्ण हो जाओगे; जिस दिन तुम्हारे भीतर एक भी स्वर ऐसा रहेगा जो व्याघात उत्पन्न करता है; जिस दिन तुम बेसुरे रहोगे, उसी दिन प्रभु मिलन हो गया। प्रभु कहीं और थोड़े ही है छंदबद्धता में है, लयबद्धता मे है। जिस दिन नृत्य पूरा हो उठेगा, गान मुखरित होगा, तुम्हारे भीतर का छंद जिस क्षण स्वच्छंद होगा, उसी क्षण परमात्मा से मिलन हो गया।


इसलिए तो कहते हैं वेद कि ओम को जिन्होंने जान लिया, उन्हें जानने को कुछ शेष रहा। यह शास्त्र में लिखे हुए ओम की बात नहीं है, यह जीवन में अनुभव किए गए, अनुभूत छंद की बात है।

अथातो भक्ति जिज्ञासा 

ओशो  

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