एक
बादशाह ने
अपने दरबारी
मसखरे को खुश
होकर
पुरस्कार में एक
घोड़ा दिया।
घोड़ा बड़ा
मरियल और
कमजोर था। चल
भी सकेगा, यह भी
संदिग्ध था।
मसखरा तो
मसखरा ठहरा, उसने सम्राट
से तो कुछ न
कहा, छलांग
मारकर घोड़े पर
सवार हो गया
और एक ओर चलने
की कोशिश करने
लगा या घोडे
को चलाने की
कोशिश करने
लगा। बादशाह
ने आवाज देकर
पूछा, बड़े
मियां, कहां
चल दिये? उसने
कहा, हुजूर,
जुम्मे की
नमाज पढ़ने जा
रहा हूं। पर
सम्राट ने कहा,
आज तो
सोमवार है।
उसने कहा, यह
घोड़ा जुम्मे
तक भी पहुंच
जाए मस्जिद तो
बहुत है! अभी
से चले तो ही
पहुंच पाएंगे।
और मस्जिद दो
कदम पर है।
घोड़ों घोड़ों
की बात है।
कौन
पहुंचा, नहीं पहुंचा,
इसकी फिकिर
छोड़ो। घोड़ों
घोड़ों की बात
है। मस्जिद दो
कदम पर थी, मैं
तुमसे कहता हूं, दो कदम पर भी
नहीं है।
अष्टावक्र कह
रहे हैं कि
तुम्हारे
भीतर है। और
कल पहुंचोगे
ऐसा भी नहीं
है, घडी भर
बाद पहुंचोगे
ऐसा भी नहीं
है, तत्क्षण,
इसी क्षण, जैसे बिजली
कौंध जाए ऐसे
क्रांति होती
है। आंख बंद
करके तुम अगर
भीतर देखो तो
अभी पहुंच गये,
इसी क्षण
पहुंच गये। कल
पर टालने का
प्रश्न ही
नहीं है। जनक
को हुआ, तुम्हें
हो सकता है, क्योंकि जनक
से रत्ती भर
भी तुममें कमी
नहीं है। मुझे
हुआ, तुम्हें
हो सकता है, क्योंकि
मुझसे रत्ती
भर भी तुममें
कमी नहीं है।
और अगर नहीं
हो रहा है, तो
याद रखना, तुमने
कहीं गहरे में
निर्णय कर रखा
है कि अभी होने
नहीं देना है।
शायद न होने
में तुम्हारा
कुछ न्यस्त
स्वार्थ है।
शायद न होने
में तुम अभी
सोचते हो, थोड़ा
और रस ले लें, थोड़ा और
टटोल लें, शायद
संसार में कुछ
हो, यह तो
फिर कभी भी कर
लेंगे।लोग
मेरे पास आते
हैं, कहते
हैं, अभी
तो जिंदगी पडी
है।
ध्यान
करना जरूर है,
लेकिन आखिर
में कर लेंगे।
अभी के थोड़े
ही हो गये, जब
बूढे हो
जाएंगे तब कर
लेंगे। और का
आदमी कभी बूढ़ा
नहीं होता।
बूढ़े से —बूढे
को पूछो, तो
वह भी अभी सोच
रहा है कि अभी
तो दिन पड़े
हैं। मरते दम
तक आदमी सोचता
है, अभी तो
दिन हैं, अभी
कर लेंगे।
परमात्मा को
टालता जाता है,
और सब कर
लेता है। जो न
करने जैसा है,
कर लेता है,
जो करने
जैसा है, उसे
टालता जाता है।
यह तुम्हारा
निर्णय है।
तुम मालिक हो।
पाना चाहो तो
अभी पा सकते
हो, न पाना
चाहो तो
तुम्हें कोई
देनेवाला
नहीं है।
अष्टावक्र महागीता
ओशो
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