कबीर ने कहा है: गुरु गोविंद दोइ खड़े, काके लागू पांव! किसके पैर पहले लगूं? गुरु, गोविंद इनके बीच चुनाव कबीर को करना पड़ रहा है! क्यों? क्योंकि गुरु ने ही गोविंद जन्माया। गुरु ने आंखें दीं, जिनसे रोशनी दिखाई पड़ी। रोशनी तो रही होगी पहले भी, मगर उसके होने न होने से क्या फर्क पड़ता था! गोविंद तो रहे होंगे पहले भी, लेकिन जब तक गुरु सेतु न बना तब तक गोविंद से कोई संबंध नहीं था। तो कृपा किसकी है?
मात रिसाई पिता रिसाई, रिसाये बटोहिया लोग। साथी संगी सब नाराज हो गए। मां नाराज हो गयी, पिता नाराज हो गए।
अकसर ऐसा होता है। होगा ही। किसी स्वाभाविक नियम के अनुसार होता है। जब भी तुम गुरु को चुनोगे, पिता निश्चित नाराज होगा, मां निश्चित नाराज होगी। अगर न हो मां और पिता नाराज, तो तुम धन्यभागी हो। मगर ऐसे बिरले अवसर होंगे। अगर पिता और मां को भी गुरु से कुछ जोड़ बना हो, कभी जीवन में स्वाद लगा हो, तभी यह हो सकता है, नहीं तो नहीं, नाराज होंगे ही। क्यों? मां से तुम्हारा पहला जन्म हुआ देह का। और गुरु से तुम्हारा दूसरा जन्म होगा। गुरु से मां की प्रतिस्पर्धा हो जाती है। और निश्चित ही गुरु तुम्हारी मां से बड़ी मां है। क्योंकि मां से तो केवल देह मिली, गुरु से आत्मा मिलेगी। मां से तो बाहर का जीवन मिला, गुरु से भीतर का जीवन मिलेगा। तो मां को स्पर्धा हो ही जाएगी, जलन हो ही जाएगी। मां गुरु को बर्दाश्त नहीं कर सकेगी। पिता भी बर्दाश्त नहीं कर सकेगा, क्योंकि पिता का अब तक तुम पर कब्जा था। अब किसी का तुम पर इतना कब्जा हो गया कि अगर गुरु कहे कि पिता की काट लाओ गरदन, तो तुम काट कर ले आओगे। यह खतरनाक बात है।
जीसस के बड़े प्रसिद्ध वचन हैं और बड़े कठोर भी कि ''जब तक तुम अपने माता—पिता को इनकार न करोगे,
मेरे पीछे न चल सकोगे। अनलैस यू डिनाय..... जब तक तुम इनकार न करोगे अपने माता पिता को, मेरे पीछे न चल सकोगे।'' ईसाइयों को बड़ी कठिनाई रही है इन वचनों को ठीक ठीक समझाने की। उनको पता नहीं है कुछ। ये वचन जीसस के पास किसी बुद्ध परंपरा से आए होंगे। बुद्ध के वचन और भी खतरनाक हैं। बुद्ध ने कहा : जब तक तुम अपने मां बाप को मार ही न डालोगे,
मेरे पीछे न चल सकोगे।
का सौवे दिन रैन
ओशो
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