संसार का
स्वभाव। स्वप्न का स्वभाव। स्वप्न यथार्थ नहीं है। इसलिए स्वप्न में कोई सहलता
नहीं हो सकती।
तुम ऐसा
प्रश्न पूछ रहे हो, जैसे कोई आदमी कागज पर लिखे हुए भोजन को "भोजन' समझ ले; पाकशास्त्र की किताब से पन्ने फाड़ ले और चबा
जाये, और कहे कि पाकशास्त्र में तो सभी तरह के भोजन लिखें
हैं, फिर पाकशास्त्र के पन्ने चबाने से तृप्ति क्यों नहीं
होती?
कागज पर
लिखा हुआ "भोजन' भोजन नहीं है। सपने में मिला हुआ धन धन नहीं है। संसार में जो भी मिलता है,
मिलता नहीं, बस मिलता मालूम पड़ता है। क्योंकि
तुम सोये हुए हो--तुम्हारे सोये हुए होने का नाम संसार है।
संसार का
क्या अर्थ है? ये
वृक्ष, ये चांद, ये तारे, ये सूरज, ये लोग--यह संसार है? तो तुम गलत समझ गये। संसार का मतलब है तुम्हारी आकांक्षाओं का जोड़;
तुम्हारे सपनों का जोड़। संसार तुम्हारे भीतर है, बाहर नहीं। तुम्हारी निद्रा, तुम्हारी घनीभूत
मूर्च्छा का नाम संसार है। मूर्च्छा में तुम जो भी कर रहे हो उससे कोई तृप्ति नहीं
होगी। मूर्च्छा में तुम्हें होश ही नहीं कि तुम क्या कर रहे हो। तुम बेहोशी में
चले जा रहे हो। तुम्हारी हालत एक शराबी जैसी है।
मुल्ला
नसरुद्दीन एक रात ज्यादा पीकर घर आया। रास्ते में कई जगह गिरा, बिजली के खंभे से टकरा गया,
चेहरे पर कई जगह चोप आ गयी, खरोंच लग गयी। आधी
रात घर पहुंचा, सोचा पत्नी सुबह परेशान करेगी, कि तुम ज्यादा पीये। और प्रमाण साफ है, कि चोटें लगी
हैं, खरोंचें लगी हैं चेहरे पर, चमड़ी
छिल गई है। तो उसने सोचा कि कुछ इंतजाम कर लें। तो वह गया बाथरूम में, बेलाडोना की पट्टी उसने लगाई सब चेहरे पर कि सुबह तक कुछ तो राहत हो
जायेगी। और इतना तो मैं सिद्ध कर ही सकूंगा कि अगर पीये होता तो बेलाडोना लगाने की
याद रहती? गिर पड़ा था रास्ते पर, पैर
फिसल गया छिलके पर। घर आकर मैंने मलहम पट्टी कर ली।
बड़ा
प्रसन्न सोया। सुबह पत्नी ने कहा कि यह हालत चेहरे की कैसे हुई? उसने कहा: मैं गिर गया था,
एक केले के छिलके पर पैर फिसल गया। और देख ख्याल रखना, मैं कोई ज्यादा वगैरह नहीं पिया था। प्रमाण है साफ कि मैंने सारे चेहरे की
मलहम-पट्टी की।
उसने कहा, हां, प्रमाण
है, आओ मेरे साथ। आईने पर की थी उसने मलहम पट्टी। चेहरा तो
आईने में दिखाई पड़ रहा था। प्रमाण हैं--उसकी पत्नी ने कहा--कि मलहम-पट्टी तुमने
जरूर की है, पूरा आईना खराब कर दिया है। अब दिन-भर मुझे सफाई
में लगेगा।
बेहोश
आदमी जो करेगा, उसका
क्या भरोसा! कुछ न कुछ भूल होगी ही।
संसार
तुम्हारी बेहोशी का नाम है। और इसलिए अनिवार्य है असफलता।
एक और रात
मुल्ला नसरुद्दीन ज्यादा पी कर आ गया। जो-जो ज्यादा पीकर आते हैं, उनको बेचारों को घर आकर कुछ
इंतजाम करना पड़ता है। सरकता हुआ किसी तरह कमरे में घुस गया। आवाज न हो, लेकिन फिर भी आवाज हो गई। पत्नी ने पूछा, क्या कर
रहे हो? उसने कहा, कुरान पढ़ रहा हूं।
अब ऐसी अच्छी बात कोई कर रहा हो, आधी रात में भी करे तो रोक
तो नहीं सकते। धार्मिक कृत्य तो रोका ही नहीं जा सका। पत्नी उठी और उसने सोचा कि
कुरान और आधी रात, और कभी कुरान इसे पढ़ता देखा नहीं! जाकर
देखी, सिर हिला रहा है और सामने सूटकेस खोल रखे हैं।
"कुरान कहां है?'
उसने कहा, सामने रखी है।
आदमी
बेहोशी में जो भी करेगा, गलत होगा।
तुम पूछते
हो, संसार में
असफलता अनिवार्य क्यों है?
क्योंकि
संसार तुम्हारी बेहोशी का नाम है। फिर बेहोशियां कई तरह की हैं। कोई शराब की ही
बेहोशी नहीं होती। शराब की बेहोशी तो सबसे कम बेहोशी है। असली बेहोशियां तो बड़ी
गहरी हैं। जैसे पद की बेहोशी होती है,
पद की शराब होती है--पद-मद। जो आदमी पद बैठ जाता है, उसका देखो उसके पैर फिर जमीन पर नहीं लगते। कोई हो गया प्रधान मंत्री,
कोई हो गया राष्ट्रपति, फिर वह जमीन पर नहीं
चलता, उसको पंख लग जाते हैं। पद-मद! किसी को धन मिल गया तो
धन का मद। ये असली शराबें हैं। शराब तो कुछ भी नहीं इनके मुकाबले। पियोगे, घड़ी-दो घड़ी में उतर जाएगा नशा। ये नशे ऐसे हैं कि टिकते हैं, जिंदगी-भर पीछा करते हैं। चढ़े ही रहते हैं।
बहुत नशे
हैं। और जिसे जागना हो उसे प्रत्येक नशे से सावधान होना पड़ता है। जागने के दो ही
उपास हैं--या तो ध्यान की तलवार लेकर अपने सारे नशों की जड़ें काट दो; या परमात्मा के प्रेम से
अपनी आंखें भर लो। शेष नशे अपने-आप भाग जायेंगे। उसकी मौजूदगी में नहीं टिकते हैं।
या तो परमात्मा के बार प्रेम से भर जाओ, आत्मा के ध्यान से
भर जाओ। ये दो ही उपाय है। संसार के जाने के ये दो ही द्वार हैं। तुम्हें रुच जाये।
तुम पूछते
हो: संसार में असफलता अनिवार्य क्यों है?
संसार का
स्वभाव ऐसा।
हरी बोलो हरी बोल
ओशो
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