एक और सज्जन ने भी ऐसा ही प्रश्न लिखा है कि मेरी पत्नी भी है, मगर मैं एक दूसरी लड़की के
"सच्चे प्रेम में पड़ गया हूं! आप ऐसा आशीर्वाद दें कि मेरा "सच्चा प्रेम',
मेरा हृदय से आया हुआ प्रेम, उसके हृदय में भी
मेरे प्रति प्रेम पैदा कर दे!
अब इन सज्जन को मैं क्या कहूं? कौन-सा आशीर्वाद दूं?
सच्चा प्रेम!--और एक लड़की से हो गया है! तो फिर सुंदरदास को जो
हुआ था, वह झूठा
प्रेम था? फिर रज्जब को जो हुआ, वह
झूठा प्रेम था? फिर मीरा को जो हुआ, वह
झूठा प्रेम था?
और इतना ही नहीं कि उन्हें सच्चा प्रेम हो गया है; अब उनके सच्चे प्रेम के बल
पर उस स्त्री को भी सच्चा प्रेम इनके प्रति होना चाहिए!
सत्याग्रह करो! जाकर उसके घर के सामने बिस्तर लगाकर लेट जाओ। और
गांव में तो लफंगे तो बहुत हैं ही,
वे आ जाएंगे। अखबारों में खबर भी छप जाएगी। ऐसी ही अखबारों में तो
खबरें छपती ही हैं। सत्याग्रह कर दो सच्चे प्रेम के लिए, कि
जब तक इस स्त्री का प्रेम मुझसे नहीं होगा, भोजन ग्रहण नहीं
करेंगे; जब तक यह स्त्री मुसंबी का रस लेकर खुद ही नहीं
आयेगी।...तो तुम्हारा नाम भी जग-जाहिर हो जायेगा, बड़े नेताओं
में भी गिनती हो जायेगी, और मौका लगा तो कभी कोई
प्रधानमंत्री भी हो सकते हो। ऐसे ही तो लोग प्रधानमंत्री हो जाते हैं। सत्याग्रह
करो, चुको मत।
ऐसा हुआ एक गांव में। हो चुका है, इसलिए कह रहा हूं। एक सज्जन को ऐसा ही सच्चा
प्रेम हो गया था जैसा तुम्हें हुआ है। ऐसे दुर्भाग्य कई का घटते हैं। ऐसी मुसीबतें
सभी को आती हैं। पहुंच गया किसी राजनैतिक नेता से सलाह लेने कि अब क्या करूं,
अब आप ही बताओ, कि आप तो हर चीज का उपाय निकाल
लेते हो। और राजनेता क्या जाने, उसने कहा, सत्याग्रह के सिवाय और कोई उपाय नहीं! और अगर प्रेम सच्चा है तो सत्याग्रह
करना ही चाहिये। तुम बिस्तर लगा दो उसके सामने, डटकर बैठ जाओ
और दस-पांच लोगों को इकट्ठा कर लो जो शोरगुल पीटें और गांव में खबर करें कि
सत्याग्रह हो रहा है। और जब तक वह स्त्री विवाह के लिए राजी नहीं होगी, सत्याग्रह जारी रखो। बदनामी से घबड़ायेगा बाप, मां,
और यह भी डर लगेगा कि अब यह सारे गांव में खबर हो गई, अब दूसरे किसी और से विवाह करना भी मुश्किल हो जायेगा। मुसीबत खड़ी कर दो।
और बिलकुल पड़ रहना आंखें बंद करके कि मर ही जाओगे।
उस आदमी ने यही किया। बाप घबड़ाया, भीड़-भाड़ इकट्ठी होनी लगी, और लोग नारे लगाने लगे सच्चे प्रेम की जीत होनी चाहिए!...जो सच्चा प्रेम
हो तो जीत होनी ही चाहिये। बेचारे बाप की कौन सुने! उस स्त्री की कौन सुने! यह
प्रेमी बिलकुल मर रहा है। जब भी कोई आदमी मरने लगे तो फिर लोग इसकी फिकर नहीं करते
कि क्या है सही, क्या है गलत--मरनेवाले की सुनते हैं। यही तो
सत्याग्रह की कुंजी है। मरनेवाले एकदम ठीक हो जाता है। जब दांव पर लगा रहा है अपनी
पूरी जिंदगी, तो इसकी बात ठीक होगी ही। देखो तो बेचारा! मजनू
और फरिहाद ने भी जो नहीं किया, यह आधुनिक मजनू कर रहा है।
मजनू, फरिहाद को सत्याग्रह का पता नहीं था। गांधी बाबा तब तक
हुए नहीं थे।
बाप बहुत घबड़ाया। उसने कहा, अब करना क्या है? अपने
मित्रों से पूछा, अब मैं करूं क्या? अखबारों
में खबर छपने लगी, दबाव पड़ने लगा, फोन
आने लगे और घर के चारों तरफ लोग घेरा डालने लगे, कि यह तो अब
सत्याग्रह तो पूरा करना ही पड़ेगा, आदमी की जान का सवाल है।
उसने पूछा कि इसको सलाह किसने दी है? पता चला, फलां राजनेता ने, तो उसने...उसके विरोधी के पास जाकर
सलाह ले लेनी चाहिए कि अब क्या करना? क्योंकि राजनेताओं को
पता होता है एक-दूसरे की तरकीबें। उसके विरोधी ने कहा, कुछ
फिकर मत कर। एक वेश्या को मैं जानता हूं। बस मरने के करीब ही है वह। मर भी गई तो
कुछ हर्जा नहीं। और वेश्या है, सड़ चुकी है। उसको ले आ,
दस-पांच रुपये का खर्चा है। उसका भी बिस्तर लगवा दे। और यह आदमी
पूछे कि भई, माई, तू यहां बिस्तर क्यों
लगा रही है, तो उससे कहना कि मुझे तुझसे सच्चा प्रेम हो गया
है। तू भी सत्याग्रह करवा दे, अब इसे सिवा कोई उपाय नहीं है।
यह आदमी भाग जायेगा रात में ही, क्योंकि अगर दो सत्याग्रह हो
जायें तो बड़ा मुश्किल हो जाता है।
यही हुआ। जब माई ने आकर बिस्तर लगा दिया, उस आदमी ने पूछा कि माई तू
यह क्या कर रही है? उसने कहा कि मुझे तुझसे प्रेम हो गया है।
तेरे सत्याग्रह की खबर मैंने क्या सुनी, सच्चा प्रेम मेरे
हृदय जग गया।
उसने कहा, तेरे में तो मैं प्रेम जगाना भी नहीं चाहता था। यह तो तीर कुछ गलत जगह लग
गया।
पर उस स्त्री ने कहा कि जब तक तुम मुसंबी का रस न पिलाओगे, तब तक मैं अब हटनेवाली नहीं,
चाहे मर ही न जाऊं। वह तो मरने के करीब थी। रात को बोरिया-बिस्तर
बांध कर वह युवक भाग गया। उस गांव से ही भाग गया, क्योंकि अब
वह सारा पासा पलट गया।
तुम पूछ रहे हो कि तुम्हारा सच्चा प्रेम किसी स्त्री से हो गया
है।...सत्याग्रह करो भाई! तुम्हें मेरी बात अच्छी नहीं लगेगी। तुम अपनी बीमारियों
से छूटना ही नहीं चाहते। तुम तो अपनी बीमारियों को अच्छे-अच्छे नाम देते हो।
तुम्हारा प्रेम कितना प्रेम है? तुम्हारे प्रेम की गहराई क्या, सच्चाई क्या? आज है, कल हवा हो
जाता है। कपूर की तरह उड़ जाता है। क्षणभंगुर है। पानी का बबूला है। बड़े-बड़े प्रेम
यहां मिट्टी में पड़े सड़ गये हैं। सच्चा ही प्रेम अगर हो तो प्रार्थना बनता है। और
कोई दूसरा उपाय नहीं।
हरि बोलो हरि बोल
ओशो
No comments:
Post a Comment