जीवन है ऊर्जा : ऊर्जा का सागर। समय के किनारे पर अथक, अंतहीन ऊर्जा की लहरें टकराती रहती हैं: न कोई प्रारंभ है, न कोई अंत; बस मध्य है, बीच
है। मनुष्य भी उसमें एक छोटी तरंग है; एक छोटा बीज है, अनंत संभावनाओं का।
तरंग की आकांक्षा स्वाभाविक है कि सागर हो जाए और बीज की आकांक्षा
स्वाभाविक है कि वृक्ष हो जाए। बीज जब तक फूलों में खिले न, तब तक तृप्ति संभव नहीं है।
मनुष्य कामना है परमात्मा होने की। उससे पहले पड़ाव बहुत हैं, मंजिल नहीं है। रात्रि-विश्राम हो सकता है। राह में बहुत जगहें मिल जाएंगी,
लेकिन कहीं घर मत बना लेना। घर तो परमात्मा ही हो सकता है।
परमात्मा का अर्थ है: तुम जो हो सकते हो, उसकी पूर्णता।
परमात्मा कोई व्यक्ति नहीं है; कहीं आकाश में बैठा
कोई रूप नहीं है; कोई नाम नहीं है। परमात्मा है तुम्हारी
आत्यंतिक संभावना -आखिरी संभावना, जिसके आगे फिर कोई जाना
नहीं है; जहां पहुंचकर तृप्ति हो जाती है, परितोष हो जाता है।
प्रत्येक मनुष्य तब तक पीड़ित रहेगा। तब तक तुम चाहे कितना ही धन कमा
लो, कितना ही वैभव जुटा लो, कहीं कोई पीड़ा का कीड़ा
तुम्हें भीतर काटता ही रहेगा; कोई बेचैनी सालती ही रहेगी;
कोई कांटा चुभता ही रहेगा। लाख करो भुलाने के उपाय -- बहुत तरह की
शराबें हैं विस्मरण के लिए लेकिन भुला न पाओगे। और अच्छा है कि भुला न पाओगे;
क्योंकि काश, तुम भुलाने में सफल हो जाओ तो
फिर बीज बीज ही रह जाएगा, फूल न बनेगा -- और जब तक फूल न बने
और जब तक मुक्त आकाश को गंध फूल की न मिल जाए, तब तक अगर तुम
भूल गये तो आत्मघात होगा, तब तक अगर तुमने अपने को भुलाने
में सफलता पा ली तो उससे बड़ी और कोई विफलता नहीं हो सकती।
अभागे हैं वे जिन्होंने समझ लिया कि सफल हो गये। धन्यभागी हैं वे, जो जानते हैं कि कुछ भी करो, असफलता हाथ लगती है।
क्योंकि ये ही वे लोग हैं जो किसी-न-किसी दिन, कभी-न-कभी
परमात्मा तक पहुंच जाएंगे।
जहां सफलता मिली वहीं घर बन जाता है। जहां असफलता मिली वहीं से पैर
आगे चलने को तत्पर हो जाते हैं।
परमात्मा तक पहुंचे बिना कोई तृप्ति संभव नहीं है।
कहा मैंने, जीवन ऊर्जा है।
ऊर्जा के तीन रूप हैं। एक तो बीजरूप है: कुछ भी प्रगट नहीं है। फिर
वृक्षरूप है: सब कुछ प्रगट हो गया है, लेकिन प्राण अप्रकट
हैं। फिर फूलरूप है: फिर प्राण भी प्रगट हुआ; फिर वह अनूठी
अपूर्व गंध भी आ गयी, पंखुड़ियां खिल गयीं और खुले आकाश के
साथ मिलन हो गया, अनंत के साथ एकता हो गयी!
साधारणतः: बीज का अर्थ है: कामना। वृक्ष का अर्थ है: प्रेम। फूल का
अर्थ है: भक्ति। जब तक तुम बीज में हो, तब तक कामवासना में
रहोगे। जब तुम वृक्ष बनोगे तब तुम्हारे जीवन में प्रेम का अवतरण होगा। और जब तुम
फूल बनोगे, तब भक्ति।
भक्ति परम शिखर है। वह आखिरी बात है।
भक्ति सूत्र
ओशो
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