Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Thursday, February 28, 2019

रामकृष्ण परमहंस अपने संन्यासियों को कामिनी और कांचन से दूर रहने के लिए सतत चेताते रहते थे। आप अपने संन्यासियों को संसार को प्रगाढ़ता से भोगने को कहते हैं। इस फर्क का कारण क्या है?

रामकृष्ण जो कहते हैं "कामिनी-कांचन से सावधान', वही मैं भी कहता हूं। लेकिन रामकृष्ण योग की भाषा बोलते हैं; मैं तंत्र की भाषा बोलता हूं। मैं कहता हूं, रामकृष्ण जैसा ही कहता हूं कि पार तो जाना है; लेकिन काटकर नहीं, जीकर, अनुभव से। निचोड़ना है जीवन से परमात्मा को। परमात्मा यहां छिपा है। जैसे सोना पड़ा है खादान में, मिट्टी में मिला। मिट्टी को निकालकर अलग कर देना है, सोने को बचा लेना है।

कामवासना से जीवन पैदा होता है, यह तो तुम देखते ही हो। कामवासना से सिर्फ संसार के बंधन ही पैदा होते हैं, इतनी ही बात देखते हो? यह दूसरी बात नहीं देखते कि कामवासना से तुम पैदा हुए? सारा जीवन कामवासना से पैदा होता है। तो कामवासना से दो चीजें पैदा हो रही हैं--दो पहलू हैं: एक तरफ संसार पैदा हो रहा है और एक तरफ जीवन का आविर्भाव हो रहा है। ये फूल सब कामवासना के खिले हैं। ये पक्षी जो गुनगुनाहट कर रहे हैं, यह सब कामवासना की है। यह पुकार चल रही है प्रेम की। यह अपनी प्रेयसी और प्रेमी की तलाश चल रही है। वह जो मोर पंख फैलाकर नाचता है, वह क्या तुम सोचते हो भजन कर रहा है? या कोयल जो कुहू-कुहू की पुकार करती है, क्या तुम सोचते हो पागल हो गयी है? वह सब प्रेम की ही गुहार। वे काम के ही रूप हैं।


अगर तुम गौर से देखो तो सारे जगत में तुम्हें काम ही दिखायी देगा। वैज्ञानिक कहते हैं कि फूलों से जो गंध उठती है, वह भी काम है। गंध के माध्यम से फूल अपने वीर्याणुओं को भेज रहे हैं--दूसरे फूलों के पास--जहां मिलकर नए जवीन की शुरुआत हो जाएगी।


यह सारा जगत अगर तुम देखोगे तो काम का विस्तार है। इसमें जो भी जीवंत है, वह काम है। इतने जीवन का जहां से स्रोत है, उसी स्रोत में कहीं परमात्मा को खोजना होगा।

तो मैं तुमसे कहता हूं: जो भी जीवन लाए, घबड़ाओ मत, होशपूर्वक जाओ। बस इतना ही खयाल रखो कि होश कायम रहे और जाओ। होश जरूर कायम रहे, ताकि तुम देख सको: क्या क्या है! कहां क्या है! और अनुभव निचोड़ सको। जिस दिन तुम्हारे जीवन में सारे अनुभव हो जाएंगे, तुम उनके पार भी हो जाओगे।


पार तो निश्चित होना है--कामिनी-कांचन के पार जाना है। लेकिन पार जाने का रास्ता कामिनी-कांचन से होकर गुजरता है। बचकर जाने का कोई रास्ता नहीं है। बाजार से अगर मुक्त होना हो तो बाजार से ही गुजरकर जाता है रास्ता। ऐसे बाजार के बाहर से भागने की कोशिश मत करना, अन्यथा तुम गैर-अनुभवी रह जाओगे। पहाड़ पर बैठ जाओगे, लेकिन बाजार तुम्हारे भीतर गूंजता रहेगा। जिसका तुम्हें अनुभव नहीं हुआ, उससे कभी छुटकारा नहीं होता। अनुभव मुक्ति लाता है।


देखने देखने की बात है। कल मैं एक कविता पढ़ रहा था:

रास्ते में कुछ मिला

एक ने कहा: ओह, यह कला है।

दूसरे ने कह: ऊफ, यह बला है।

तीसरे ने ध्यान से देखा और कहा: छीः, यह तो जूते का तला है:


तुम जीवन को गौर से देखो। वहां जो-जो व्यर्थ है, वह दिख जाएगा। जैसे ही दिख जाएगा, वैसे ही छूट जाओगे। पहले शरीर में सौंदर्य दिखाई पड़ता है; जब तुम गौर से देखोगे तो कहोग:"छीः, यह तो जूते का तला है।' फिर मन में सौंदर्य दिखायी पड़ेगा। एक दिन तुम वहां भी पाओगे, यहां भी कुछ नहीं है। फिर आत्मा में सौंदर्य दिखायी पड़ने लगेगा। तुम गहरे होने लगे। फिर एक दिन तुम पाओगे यहां भी कुछ नहीं। तब परमात्मा का सौंदर्य दिखायी पड़ता है। परमात्मा का सौंदर्य आखिरी गहराई है--अतल गहराई है। लेकिन चलना तो धीरे-धीरे ही पड़ता है--उथले से गहरे की तरफ।

अनुभव के अतिरिक्त कोई मुक्ति नहीं है। और जब अनुभव पूरा हो जाता है तो अपूर्व घटना घटती है।

अजहुँ चेत गँवार 

ओशो 


No comments:

Post a Comment

Popular Posts