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Wednesday, September 20, 2017

हर आदमी हां करना चाहता है

राजा भोज के दरबार में एक ज्योतिषी आया। उसने राजा भोज का हाथ देखा और कहा कि तू अत्यंत अभागा व्यक्ति है। अपने लड़के को अरथी पर तू ही चढ़ाएगा। अपनी पत्नी को भी अरथी पर तू ही चढ़ाएगा। तेरे सारे लड़के, तेरी सारी लड़कियां - तू ही उनको मरघट तक पहुंचाएगा। उस भोज ने क्रोध से उस ज्योतिषी को हथकड़ियां डलवा दीं और कहा, इसको जाकर जेलखाने में बंद कर दो। कैसे बोलना चाहिए, यह भी इसे पता नहीं है। यह क्या बोल रहा है पागल!

कालिदास बैठ कर यह सारी बात सुनते थे। जब वह ज्योतिषी चला गया तो कालिदास ने कहा कि उस ज्योतिषी को पुरस्कार देकर विदा कर दें। 

राजा ने कहा, उसे पुरस्कार दूं? सुनते हो तुम उसने क्या कहा था!

कालिदास ने कहा कि क्या मैं भी आपका हाथ देखूं? कालिदास ने हाथ देखा और कहा कि आप बहुत धन्यभागी हैं। आप सौ वर्ष के पार तक जीएंगे। आप बहुत लंबी उम्र उपलब्ध किए हैं। आप इतने धन्यभागी हैं कि आपके पुत्र भी आपकी उम्र नहीं पा सकेंगे, पीछे छूट जाएंगे। 

राजा ने कहा, क्या यही वह कहता था

कालिदास ने कहा, यही वह कह रहा था, लेकिन उसके कहने का ढंग बिलकुल ही गड़बड़ था। 

भोज ने उसे एक लाख रुपये देकर ईनाम दिया, और उसे विदा किया सम्मान से। और उससे जाते वक्त कहा, मेरे मित्र, अगर यही तुझे कहना था तो ऐसे ही तूने क्यों न कहा? तूने कहने का ढंग कौन सा चुना था!

जोसुआ लिएबमेन करके एक यहूदी विचारक और पुरोहित था। उसने संस्मरण लिखा है कि जब मैं युवा था और पहली दफा गुरु के आश्रम में शिक्षा लेने गया, तो मेरा एक मित्र भी मेरे साथ था। हम दोनों को सिगरेट पीने की आदत थी। हम दोनों ही परेशान थे कि क्या करें, क्या न करें? सिर्फ एक घंटा मोनेस्ट्री के बाहर ईश्वर-चिंतन के लिए बगिया में जाने को मिलता था, उसी वक्त पी सकते थे सिगरेट, और तो कोई मौका नहीं था। लेकिन फिर भी यह सोचा कि पीने के पहले गुरु को पूछ लेना उचित है। तो मैं और मेरा मित्र दोनों पूछने गए। जब मैं पूछ कर वापस लौटा तो मैं बहुत क्रोध में था, क्योंकि गुरु ने मुझे मना कर दिया था। और जब मैं बगीचे में आया तो मेरा क्रोध और भी बढ़ गया, मेरा मित्र तो आकर बेंच पर बैठा हुआ सिगरेट पी रहा था। मालूम होता है गुरु ने उसे हां भर दी है। यह तो हद अन्याय हो गया था। मैंने जाकर उस मित्र को कहा कि मुझे तो मना कर दिया है उन्होंने, क्या तुम्हें हां भर दी है? या कि तुम बिना उनकी हां किए ही सिगरेट पी रहे हो

उस मित्र ने कहा कि तुमने क्या पूछा था

लिएबमेन ने कहा, मैंने पूछा था कि क्या हम ईश्वर-चिंतन करते समय सिगरेट पी सकते हैं? उन्होंने कहा कि नहीं, बिलकुल नहीं। तुमने क्या पूछा था

उसने कहा, मैंने पूछा था कि क्या हम सिगरेट पीते समय ईश्वर-चिंतन कर सकते हैं? उन्होंने कहा, हां, बिलकुल कर सकते हो। 

ये दोनों बातें बिलकुल एक थीं: ईश्वर-चिंतन करते समय सिगरेट पीएं या सिगरेट पीते समय ईश्वर-चिंतन करें। लेकिन दोनों बातें बिलकुल अलग हो गईं। एक बात के उत्तर में उसी आदमी ने इनकार कर दिया, दूसरी बात के उत्तर में उसी आदमी ने हां भर दिया। निश्चित ही कौन स्वीकार करेगा कि ईश्वर-चिंतन करते समय सिगरेट पीएं? कौन अस्वीकार करेगा कि सिगरेट पीते समय ईश्वर-चिंतन करें या न करें? कोई भी कहेगा कि अच्छा ही है। अगर सिगरेट पीते समय भी ईश्वर-चिंतन करते हो तो बुरा क्या है, ठीक है।

उस दूसरे युवक ने कहा कि पहले मेरे मन में भी वही पूछने का खयाल आया था, क्योंकि सीधी बात वही थी। लेकिन फिर तत्क्षण मुझे खयाल आया कि भूल हो जाएगी। अगर मैं पूछता हूं कि ईश्वर-चिंतन करते समय सिगरेट पी सकता हूं, तो मैंने पहले ही जान लिया था कि उत्तर नहीं में मिलने वाला है। 

लिएबमेन ने लिखा है कि फिर मैंने जिंदगी में बहुत बार इसका प्रयोग किया। और तब तो धीरे-धीरे मुझे समझ में आया कि दूसरे आदमी से हां या न निकलवा लेना उस आदमी के हाथ में नहीं, तुम्हारे हाथ में है। वह दूसरे आदमी को पता भी नहीं चलता कि तुमने कब उससे हां निकलवा ली है या कब तुमने न निकलवा ली है। और अगर दूसरा आदमी न करता है, तो सोच लेना कि हमसे कहीं कोई भूल हो गई है। हो सकता है हमारे भाव बिलकुल सही हों, हमारा खयाल सही हो, सिर्फ हमारा मौजूद करने का ढंग गलत हो गया होगा। अन्यथा इस दुनिया में कोई भी आदमी न करने को तैयार नहीं है। हर आदमी हां करना चाहता है। लेकिन हां कहलवाने वाले लोग, उनकी तैयारी, उनकी समझ, उनकी सूझ, उस सब पर निर्भर करता है कि हम कैसे मौजूद करते हैं। 

अनंत की पुकार 

ओशो

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