Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Wednesday, September 20, 2017

भक्ति करैं निहकाम



तुम्हारी परमात्मा की धारणा यह है कि मिल जाए तो उससे यह मांग लूं, वह मांग लूं। सोचो कभी, अगर परमात्मा मिल जाए, तो क्या करोगे? एकदम मांगों ही मांगों की कतार बन जाएगी। फेहरिश्त पर लिखो एक दिन बैठकर, कि क्या-क्या मांगोगे, अगर परमात्मा मिल जाए। तो तुम चकित हो जाओगे कि क्या-क्या छोटी-छोटी बातें मांगने का मन में विचार आ रहा है! कि धन मांग लूं; पद मांग लूं; कि शाश्वत जीवन मांग लूं; कि कभी मरूं न। यह मांग लूंगा, वह मांग लूंगा। ऐसा धन मांग लूंगा कि चुके ही नहीं। ऐसा पद मांग लूंगा, जो छिने ही नहीं। ऐसा यौवन मांग लूंगा, जो मिटे ही नहीं।

और छोटे बच्चों का ही नहीं, बड़े से बड़े बूढ़ों का भी भक्ति के नाम पर वासना का ही खेल चलता रहता है! छोटा बच्चा भी जब अपने पिता के पास आकर डैडी डैडी करने लगता है, तो पिता जानता है कि अब यह पैसे मांगेगा--कि आज सिनेमा जाना है, कि गांव में प्रदर्शनी आई है; कि मदारी तमाशा दिखा रहा है; कि मिठाई खरीदनी है; कि वह आईसक्रीम बिक रही है! यह कुछ मांगेगा।

पति जानते हैं कि अगर घर आएं और पत्नी पैर से जूता निकाल कर रख दे और पानी से पैर धोने लगे, तो समझ लो कि फंसे! कि साड़ी खरीदवाएगी। कुछ इरादे खतरनाक दिखते हैं! पति घर आए, और फूल ले आए, और आइसक्रीम ले आए, और मिठाई की टोकरी ले आए, तो पत्नी भी जानती है कि इरादे क्या हैं। वह भी समझती है कि कुछ मांग भीतर है। कि आज मेरी देह मांगेगा। वह पहले ही से देख कर यह रंग-ढंग, बातें करने लगेगी कि मेरे सिर में दिन भर से दर्द है; कि मेरी कमर टूटी जा रही है। कि आज नौकरानी नहीं आई। बच्चे के दांत निकल रहे हैं। चूल्हा नहीं जल रहा है। लकड़ी गीली है। मुझे बुखार चढ़ रहा है। वह भी रास्ते खोजने लगेगी!

इस जगत में तो हम सारे संबंध ही वासना के बनाते हैं।

मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी बोल रही थी कि पता नहीं कहां मेरी अंगूठी खो गई। सौ रुपए की थी। नसरुद्दीन ने कहा, बिलकुल फिक्र न कर। मेरे भी सौ रुपए खो गए हैं। मैं बिलकुल फिक्र नहीं कर रहा।

पत्नी बोली, तुम्हारे कहां खो गए हैं?

उसने कहा, कहां! कहां खोते हैं? मगर मैं फिक्र नहीं कर रहा हूं, क्योंकि मुझे अंगूठी मिल गई है एक सौ रुपए की!

पत्नी ने कहा, तुम्हें अंगूठी कहां मिली जी?

कहां, वहीं, जहां खोए मेरे रुपए। खीसे में मेरे रुपए थे। सौ रुपए तो नदारद हो गए हैं, लेकिन अंगूठी खीसे में मिल गई है!

ये पत्नियां पहले पतियों के खीसे टटोलती हैं। पहला काम!

नसरुद्दीन एक दिन अपने बेटे फजलू को मार रहा था कि तूने पांच रुपए क्यों निकाले? रख रुपए।
उसकी पत्नी ने कहा कि क्यों मार रहे हो जी उसको! तुम्हारे पास कोई सबूत है कि इसने पांच रुपए निकाले?

उसने कहा, है सबूत। घर में तीन ही आदमी हैं। एक मैं हूं। मैंने निकाले नहीं। मेरे ही रुपए--मैं क्यों निकालूंगा? और निकालूंगा ही, तो फिर परेशानी क्या है, चिंता क्या है! दूसरी तू है। तूने निकाले नहीं, यह पक्का है।

पत्नी ने कहा, यह तुम कैसे कह सकते हो कि मैंने नहीं निकाले?

उसने कहा, नहीं निकाले तूने; क्योंकि डेढ़ सौ रुपए में से पांच निकालेगी तू! डेढ़ सौ ही जाते। यह इसी हरामजादे की शरारत है। पांच रुपए गए--ये फजलू ने निकाले हैं। तू निकालती, डेढ़ सौ निकालती। मैं निकालता--झगड़े का कोई सवाल उठता नहीं। मुझे पता ही होता कि मैंने निकाले हैं। घर में तीन आदमी हैं। रख दे फजलू पांच रुपए।

इस जगत मैं नाते-रिश्ते सब ऐसे हैं। मगर जगत के ही होते तो भी ठीक था; तुम परमात्मा के मंदिर में भी जाते हो, तो कुछ मांगने ही। मस्जिदों में दुआओं के लिए हाथ फैलाते हो; मगर मांग! गिरजाघरों में, मजारों पर--तुम जहां जाओगे, तुम्हारी वासना तुम्हारा पीछा करती है। सत्य-नारायण की कथा करवाओगे; हरिकथा करवाओगे; रामायण करवाओगे। किसी पंडित को पकड़ लाओगे। ये रामचरितमानस मर्मज्ञ--पंडित रामकिंकर शास्त्री! इनसे करवाओ! मगर पीछे प्रयोजन है।

न तुम्हारी हरिकथा हरिकथा है; न तुम्हारा हरिभजन हरिभजन। क्योंकि तुम सदा कामना से भरे हो। सहजो का यह सूत्र समझो। इस सूत्र में सारी बात आ गई। जैसे पूरा धर्म आ गया। कुछ बचा नहीं। सारा निचोड़ आ गया--योग का, भक्ति का, ज्ञान का।

भक्ति करैं निहकाम। एक ऐसी भी भक्ति है, जो बिना वासना के होती है।

जो बोले सो हरिकथा 

ओशो

No comments:

Post a Comment

Popular Posts