इस संबंध में जो पहली बात आपसे कहना चाहता हूं, वह यह कि इस पृथ्वी पर सभी
कुछ नया है, पुराना क्या है? पुराना एक
क्षण नहीं बचता, नया प्रतिक्षण जन्म लेता है। पुराने का जो
भ्रम पैदा होता है, इसलिए पैदा होता है, कि हम दो के बीच जो अंतर है, उसे नहीं देख पाते।
कल सुबह भी सूरज ऊगा था,
कल सुबह भी आकाश में बादल छाए थे, कल सुबह भी
हवाएं चली थीं। और आज भी सूरज ऊगा और बादल छाए और हवाएं चली थीं। और हम कहते हैं,
वही है! लेकिन जरा भी वही नहीं है।
जैसे बादल कल सुबह बने थे,
वैसे अब कभी भी इस पृथ्वी पर दुबारा नहीं बनेंगे। और जैसी हवाएं कल
संध्या बही थीं, वैसी हवाएं आज नहीं बह रही हैं। कल सांझ आप
आए थे, सोचते होंगे वही आज आप फिर आ गए हैं? न तो मैं वही हूं, न तो आप वही हैं। चौबीस घंटे में
गंगा का बहुत पानी बह चुका है।
प्रतिपल सब कुछ नया है। पुराने को परमात्मा बर्दाश्त ही नहीं
करता है। एक क्षण बर्दाश्त नहीं करता। जीवन का अर्थ ही यही है। जीवन का अर्थ है, जो नित नया होता चला जाता
है। लेकिन मनुष्य ने ऐसी कोशिश करने की जरूर हिम्मत की है कि पुराने को बचाने की
चेष्टा में भी, उस दिशा में भी उसने काम किया है।
परमात्मा तो पुराने को बचाता ही नहीं, लेकिन आदमी जरूर पुराने को
बचाने की कोशिश करते हैं। और इसीलिए आदमी का समाज जिंदा समाज नहीं है, एक मरा हुआ समाज है। और जो देश पुराने को बचाने की जितनी कोशिश करता है,
वह उतना ही मरा हुआ देश होता है। यह हमारा देश मरे हुए देशों में से
एक है।
हम बहुत गौरव करते हैं इस बात का, कि बेबीलोन न रहा, सीरिया
न रहा, मिश्र न रहा--लेकिन हम हैं। लेकिन कोई गौर से देखेगा
तो पाएगा, कि वे इसलिए न रहे, कि वे
बदल गए, नये हो गए और हम इसलिए हैं, क्योंकि
हम बदले नहीं और पुराने होने की हमने भरसक चेष्टा की है। अगर हम बदले भी हैं,
तो हम परमात्मा की जोर-जबर्दस्ती से! अपनी कोशिश तो यही रही,
कि हम बदल न जाएं। वही बना रहे जो था।
बैलगाड़ी अगर छूट रही है,
तो कोई हमारे कारण नहीं। हम तो छाती से पूरी ताकत लगा कर, सारे महात्मा और सारे सज्जन और सब नेता मिल कर बैलगाड़ी को बचाने की कोशिश
करते हैं। लेकिन भगवान नहीं मानता और जेट, ट्रेन पैदा किए
चला जाता है। और हम घसिटते चले जा रहे हैं नये की तरफ। नये की तरफ जाना हमारी जैसे
मजबूरी है। सारी दुनिया में उलटा है, सारी दुनिया में पुराने
के साथ रहना मजबूरी है। हमारे साथ नये की तरफ जाना मजबूरी है।
सारी दुनिया में नये को लाने का आमंत्रण है। हम नये को स्वीकार
करते हैं ऐसे, जैसे
वह पराजय हो! इसीलिए पांच हजार वर्ष पुरानी संस्कृति तीन सौ वर्ष, पचास वर्ष पुरानी संस्कृतियों के साथ हाथ जोड़ कर भीख मांगती है, और हमें कोई शर्म भी नहीं मालूम होती है।
पांच हजार वर्ष से तो कम से कम हम हैं, ज्यादा ही वर्षों से हैं,
लेकिन ज्ञात इतिहास कम से कम पांच हजार वर्षों का है। हम पांच हजार
वर्षों में इस योग्य भी न हो सके, कि गेहूं पूरा हो सके,
कि मकान पूरे हो सकें, कि कपड़ा पूरा हो सके।
अमरीका की कुल उम्र तीन सौ वर्ष है। तीन सौ वर्ष में अमरीका इस
योग्य हो गया है कि सारी दुनिया के पेट को भरे। और रूस की उम्र तो केवल पचास वर्ष
ही है। पचास वर्ष में रूस गरीब मुल्कों की कतार से हट कर अमीर मुल्कों की आखिरी
कतार में खड़ा हो गया है। पचास वर्ष पहले जिसके बच्चे भूखे थे, आज उसके बच्चे चांदत्तारों
पर जाने की योजनाएं बनाने लगे हैं। पचास सालों में क्या हो गया है? कोई जादू सीख गए हैं वे! जादू नहीं सीख गए हैं, उन्होंने
एक राज सीख लिया कि पुराने से चिपके रहने वाली कौम धीरे-धीरे मरती है, सड़ती है, गलती है।
नये का निमंत्रण,
नये का आमंत्रण, नये का बुलावा, नये की चुनौती और जितनी जल्दी हो सके, नये को लाओ,
पुराने को विदा करो। इस सीक्रेट को, इस राज को
वे सीख गए। इसका परिणाम यह हुआ है, कि वे जीवंत हैं। हम?
हम करीब-करीब मरे-मरे मुर्दा हो गए हैं।
जीवन संगीत (साधना शिविर)
ओशो
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