जो सुन सकते हैं वे आज
भी यमुना के तट पर कृष्ण की बांसुरी सुन सकते हैं। जो सुन सकते हैं वे आज भी बंसीवट
में राधा का गीत सुन सकते हैं। आंख चाहिए! कान चाहिए! कान और आंख के पीछे जुड़ा हुआ
हृदय चाहिए! आंख प्रेम से देखे,
कान प्रेम से सुने--तो बुद्ध मौजूद
हैं, कृष्ण मौजूद हैं, जीसस मौजूद हैं, मोहम्मद मौजूद हैं। ये सदा ही मौजूद हैं।
सदगुरु मिटता ही नहीं।
जो मिट जाए वह क्या सदगुरु है!
महर्षि रमण का अंतिम
क्षण, और किसी ने पूछा, महर्षि, अब देह छूट जाएगी, आप कहां जाएंगे? महर्षि ने कहा, कहां जाऊंगा! जाने को कहीं कोई जगह और है? जो हूं वही रहूंगा, जहां हूं वहीं रहूंगा। जाने को कहां है? एक ही तो अस्तित्व है, दूसरा कोई अस्तित्व नहीं है।
बड़ी अदभुत बात कही: जाऊंगा
कहां? एक ही अस्तित्व है, यहीं रहूंगा! जैसा हूं
वैसा ही रहूंगा।
देह के गिर जाने से आत्मा
तो नहीं गिर जाती। और घड़े के फूट जाने से जल तो नहीं फूट जाता। और घाटों के छूट जाने
से नदी तो नहीं मर जाती--सागर हो जाती है। प्रीति चाहिए! प्रीति एक देखने का और ही
ढंग है। भाव देखने की एक नयी ही आंख है। जो अदृश्य को भी दिखा देती है, ऐसी आंख! जो अगोचर को गोचर बना देती है, ऐसी आंख!
और तुम पूछते हो:
"संग का रंग लगता ही है या कि यह केवल संयोग मात्र है?'
संयोग मात्र ही नहीं
है और अनिवार्यता भी नहीं है। तुम पर निर्भर है। स्वतंत्रता है। तुम चाहो तो लगेगा, तुम न चाहो तो नहीं लगेगा।
सत्य थोपा नहीं जा सकता।
स्वीकार कर लोगे तो तुम्हारा है,
अस्वीकार कर दोगे तो तुम्हारा नहीं
है। जबरदस्ती ओढ़ाया नहीं जा सकता। सत्य कोई जंजीर नहीं है जो तुम्हारे हाथों में पहना
दी जाए। और सत्य कोई कारागृह नहीं है जिसमें तुम्हें आबद्ध कर दिया जाए। सत्य मुक्ति
है।
तुमने यह खयाल किया, बंधन जबरदस्ती लादे जा सकते हैं, मुक्ति जबरदस्ती नहीं लादी
जा सकती। किसी के हाथों में जंजीरें और पैरों में बेड़ियां जबरदस्ती डाली जा सकती हैं, जबरदस्ती
ही डाली जाती हैं, नहीं तो कौन डलवाने को राजी होगा! लेकिन अगर किसी
को मुक्त करना हो, जंजीरें काटनी हों, तो जबरदस्ती नहीं की जा सकती। तुम तोड़ भी दोगे तो वह फिर डाल लेगा।
उत्सव आमार जाति आनंद आमार गोत्र
ओशो
No comments:
Post a Comment