एक जेन फकीर अपने बगीचे में गड्ढा खोद रहा है। बगीचे में कुछ
पौधे लगा रहा है। कोई पूछने आया है उससे। उससे कोई पूछता है कि मुझे शांत होना है, मैं क्या करूं? तो वह फकीर गड्ढा खोदता है और वह कहता है कि जो करते हो, वही करो। वह कहता है कि शायद आप काम में हैं इसलिए आप बेमन से कुछ जवाब
दिए दे रहे हैं। तो फकीर कहता है कि अगर समझ में न आया हो तो बैठ कर देखो कि मैं क्या
कर रहा हूं। तो वह आदमी थोड़ी देर बैठ जाता है।
वह गड्ढा खोद रहा है,
खोद रहा है, खोद रहा है, पसीना बहा रहा है, धूप है, वह
गड्ढा खोद रहा है। वह आदमी कहता कि काफी देर हो गई देखते-देखते आप गड्ढा खोद रहे
हैं। लेकिन मैं कुछ और पूछने आया हूं, मैं पूछने आया हूं कि
मैं शांत कैसे हो जाऊं? तो वह फकीर कहता है कि मैं सिर्फ
गड्ढा ही खोद रहा हूं और बिलकुल शांत हूं। अगर मैं गड्ढा भी खोदूं और कुछ और भी
करूं तो अशांत हो जाऊंगा। मैं सिर्फ गड्ढा ही खोद रहा हूं। और अशांति का कोई उपाय
नहीं है। मैं सिर्फ गड्ढा खोद रहा हूं और मैं कुछ नहीं कर रहा हूं। तो तुम भी जो
करते हो वह करो।
वह आदमी कहता है कि कुछ जीवनचर्या बता दें कि आप, ताकि जैसा आप कहें वैसा मैं
करूं? तो वह फकीर कहता है कि जब मुझे नींद आती है तो मैं सो
जाता हूं। अपनी तरफ से मैं कभी नहीं सोया। जब नींद आती है, सो
जाता हूं। और जब नींद खुल जाती है, उठ आता हूं, अपनी तरफ से मैं कभी नहीं उठा। और जब भूख लगती है तो मैं मंागने चला जाता
हूं, अपनी तरफ से मैंने कभी नहीं खाया। जब भूख नहीं लगती है
तो मैं नहीं खाता। और सांस भीतर आती है तो भीतर आने देता हूं, बाहर जाती है तो बाहर जाने देता हूं। और मेरी कोई चर्या नहीं है और मैं
बड़ा शांत हूं। और तुम्हें भी शांत होना है तो तुम भी ऐसा ही करो।
वह आदमी कहता है कि ये तो हम भी सब करते हैं, जब सोते हैं, सो जाते हैं, जब खाते हैं खा लेते हैं। इसमें आप कौन
सी नई बात कर रहे हैं? तो फिर उसने कहा कि तुम जाओ और जरा
गौर से देखना कि जब तुम सोते हो तो तब तुम सोते ही हो, कि और
भी बहुत कुछ करते हो। और गौर से देखना कि जब तुम खाते हो तो सिर्फ खाते ही हो या
और भी बहुत कुछ भी करते हो। क्योंकि फकीर ने कहा कि मैंने तो ऐसा आदमी ही नहीं
देखा जो सिर्फ खाता हो, तो सिर्फ खाता ही हो। आदमी खाता और
कहीं और कुछ भी करता रहता है। और उस फकीर ने जाते वक्त कहा कि हमने इतना ही जाना कि
हम जो हैं, वहीं हैं। जहां हैं, वहीं
है। जैसे थे वहीं हैं। और हमें न कहीं जाना है, और न कहीं
हमें पहुंचना है।
मेरी दृष्टि में परम साधना का यही अर्थ है। और परम शांति का यही
अर्थ है कि हम जहां हैं, वहीं रहें । उसमें हम पूरे राजी हो जाएं, न आगे जाएं,
न पीछे जाएं। क्योंकि पीछे जाएंगे तो भी मतलब नहीं, आगे जाएंगे तो भी मतलब नहीं। क्योंकि पीछे और आगे हम जाएंगे, तो किससे पीछे जाएंगे, किससे आगे जाएंगे। अपनी ही
जगह से हटते रहेंगे न। अपनी ही जगह से हटते रहेंगे।
नानक दुखिया सब संसार
ओशो
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