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Thursday, September 20, 2018

क्या आप कृपया हमें बताएंगे कि कृष्णमूर्ति विधियों के इतने विरोध में क्यों हैं, जब कि शिव तो बहुत सी विधियों के पक्ष में हैं?





विधियों के विरोध में होना भी एक विधि ही है। केवल कृष्णामूर्ति ही इस विधि का उपयोग नहीं कर रहे हैं, पहले भी कई बार इसका उपयोग किया गया। यह प्राचीनतम विधियों में से एक है इसमें कुछ नया नहीं है।


दो हजार वर्ष पहले बोधिधर्म ने इसका उपयोग किया। चान या झेन बुद्धिज्म के नाम से जिस धर्म को जाना जाता है, उसे वह चीन लेकर गया था। वह एक हिंदू भिक्षु था, भारत से था। वह अ-विधि में विश्वास करता था। झेन अ-विधि पर आधारित है। झेन गुरु कहते हैं कि यदि तुमने कुछ भी किया तो तुम चूक जाओगे, क्योंकि करेगा कौन? तुम! तुम्हीं तो रोग हो और तुमसे कुछ और पैदा नहीं हो सकता। प्रयास कौन करेगा? तुम्हारा मन! और तुम्हारा मन ही नष्ट होना है। और तुम मन की मदद से ही मन को नष्ट नहीं कर सकते। तुम जो भी करोगे, उससे तुम्हारा मन और मजबूत होगा।


तो झेन कहता है कि कोई विधि नहीं है, कोई उपाय नहीं है, कोई शास्त्र नहीं है और कोई गुरु नहीं हो सकता। लेकिन सौंदर्य यह है कि झेन ने महानतम गुरु पैदा किए हैं, और झेन गुरुओं ने संसार के सवोंत्तम शास्त्र लिखे हैं और झेन के माध्यम से हजारों-हजारों लोग निर्वाण को उपलब्ध हुए हैं; लेकिन वे कहते हैं कि कोई विधि नहीं है।


तो यह समझने जैसा है कि अ-विधि वास्तव में बुनियादी विधियों में से एक है। 'नकार' पर बल है ताकि तुम्हारे मन का निषेध हो जाए। मन के दो दृष्टिकोण हो सकते हैं, ही या न। यही दो संभावनाएं हैं, दो विकल्प हैं जैसे कि सब चीजों में होते हैं।' रुपए है और 'ही' पुरुष। तो तुम चाहो तो न की विधि प्रयोग में ला सकते हो, या ही की विधि प्रयोग में ला सकते हो। यदि तुम हा की विधि अपनाओ तो कई विधियां होंगी; लेकिन तुम्हें हा कहना होगा और हा कई हो सकते हैं। यदि तुम न को अपनाओ तो कई विधियां नहीं हैं, बस एक ही विधि है क्योंकि बहुत न नहीं हो सकते।

इस बात को देखो : संसार में इतने धर्म हैं, इतने तरह के आस्तिक हैं। अभी कम से कम तीन सौ धर्म हैं। तो आस्तिकता के तीन सौ मंदिर, चर्च और शास्त्र हैं। लेकिन नास्तिकता केवल एक ही तरह की है दो नास्तिकताएं नहीं हो सकतीं। नास्तिकों का कोई संप्रदाय नहीं है। जब तुम कहते हो कि कोई परमात्मा नहीं है तो बात समाप्त हो गई। तुम दो न में भेद नहीं कर सकते। लेकिन जब तुम कहते हो 'ही परमात्मा है', तो भेद की संभावना है। क्योंकि मेरी ही मेरा अपना परमात्मा पैदा करेगी और तुम्हारी हा तुम्हारा परमात्मा पैदा करेगी। तुम्हारी हा जीसस के लिए हो सकती है, मेरी ही कृष्ण के लिए हो सकती है; लेकिन जब तुम न कहते हो तो सभी न एक जैसी होती हैं।


यही कारण है कि पृथ्वी पर नास्तिकता के कोई संप्रदाय नहीं हैं। नास्तिक एक जैसे हैं। उनका कोई शास्त्र नहीं है उनका कोई चर्च नहीं है। जब उनका कोई विधायक दृष्टिकोण ही नहीं है तो असहमत होने के लिए कुछ बचता ही नहीं, एक साधारण सी न ही पर्याप्त है। ऐसा ही विधियों के साथ है : न की केवल एक विधि है हा की एक सौ बारह हैं या और भी बहुत सी संभव हैं। तुम नई-नई विधियां पैदा कर सकते हो।



किसी ने कहा है कि मैं जो विधि सिखाता हूं सक्रिय ध्यान, वह इन एक सौ बारह विधियों में नहीं है। वह इनमें नहीं है क्योंकि वह एक नया मिश्रण है, लेकिन जो कुछ भी उसमें है वह इन एक सौ बारह विधियों में है। कोई भाग किसी विधि में है, कोई भाग किसी दूसरी विधि में है। ये एक सौ बारह बुनियादी विधियां हैं। उनसे तुम हजारों विधियां बना ले सकते हो। उसका कोई अंत नहीं है। कितने ही जोड़ संभव है।



लेकिन जो कहते हैं कि कोई विधि नहीं है, उनकी बस एक ही विधि हो सकती है। निषेध से तुम कुछ बहुत अधिक पैदा नहीं कर सकते। तो बोधिधर्म लिंची, बोकोजू कृष्णमूर्ति की केवल एक ही विधि है। असल में कृष्णमूर्ति ठीक झेन गुरुओं की श्रृंखला में ही आते हैं। वह झेन बोल रहे हैं। उसमें कुछ भी नया नहीं है। लेकिन झेन सदा नया दिखाई पड़ता है। और कारण यह है कि झेन शास्त्रों में विश्वास नहीं करता, परंपरा में विश्वास नहीं करता, विधियों में विश्वास नहीं करता।


तो जब भी न उठता है तो वह ताजा और नया होता है।ही' परंपरा में शास्त्रों में, गुरुओं में विश्वास करता है। जब भी 'हा' होगा उसकी एक लंबी, आरंभहीन परंपरा होगी। जिन्होंने भी ही कहा है, कृष्ण हों कि महावीर, वे कहे चले जाते हैं कि वे कुछ नया नहीं कह रहे। महावीर कहते हैं, 'मुझसे पहले तेईस तीर्थंकरों ने यही सिखाया है।और कृष्ण कहते हैं 'मुझसे पहले एक ऋषि ने दूसरे ऋषि को संदेश दिया, दूसरे ऋषि ने तीसरे को दिया, और यह चलता चला आ रहा है। मैं कुछ भी नया नहीं कह रहा।


'
हा' सदा पुराना होगा, शाश्वत होगा।' सदा नया लगेगा, जैसे अचानक अस्तित्व में आ गया हो।' की कोई पारंपरिक जड़ें नहीं हो सकतीं। वह बिना जड़ों के है। इसीलिए कृष्णमूर्ति नए लगते हैं। नए वह हैं नहीं।


तंत्र सूत्र 

ओशो

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