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Wednesday, December 12, 2018

पूछा है कि जन्म-जन्मांतरों से कर्मों के फलस्वरूप ही मनुष्य का कर्म-जीवन बंधा हुआ है। तो फिर इस जन्म में मनुष्य के अधिकार में क्या है? पूछा है कि अतीत के जीवन और अतीत के कर्म और अतीत में किए हुए जो भी जीवन के संस्कार हैं, यदि हम उनसे ही परिचालित होते हैं, तो अब हम क्या कर सकते हैं?


यह बहुत ही ठीक पूछा है। अगर यह बात सच हो कि मनुष्य बिलकुल अतीत के कर्मों से बंधा है, तो उसके हाथ में वर्तमान में करने को क्या रह जाएगा? और अगर यह सच हो कि मनुष्य अतीत के कर्मों से बिलकुल नहीं बंधा है, तो करने का फायदा क्या रह जाएगा? क्योंकि अगर अतीत के कर्मों से नहीं बंधा है, तो अभी जो करेगा, कल उनसे बंधा नहीं रह जाएगा। तो अगर आज शुभ करेगा, तो कल उसे शुभ के मिलने की संभावना नहीं होनी चाहिए। अगर अतीत के कर्मों से बंधा हो पूरी तरह, तो करने में कोई अर्थ नहीं होगा। क्योंकि कर ही नहीं सकता कुछ, पूरी तरह बंधा है। और अगर पूरी तरह स्वतंत्र हो, तो करने में कोई अर्थ नहीं होगा। क्योंकि वह कर लेगा और कल उससे मुक्त हो जाएगा, उसके साथ उसका किया हुआ नहीं होगा। इसलिए मनुष्य न तो पूरी तरह बंधा हुआ है और न पूरी तरह मुक्त है। उसका एक पैर बंधा है और एक खुला है।


एक दफा हजरत अली से किसी ने पूछा, ठीक यही बात पूछी। हजरत अली से किसी ने पूछा कि 'मनुष्य स्वतंत्र है या परतंत्र है अपने कर्मों में?' अली ने कहा, 'अपना एक पैर ऊपर उठाओ!' अली ने कहा, अपना एक पैर ऊपर उठाओ। वह आदमी स्वतंत्र था, बायां उठाए या दायां उठाए। उसने अपना बायां पैर ऊपर उठाया। अली ने कहा, 'अब दूसरा भी उठा लो।' वह बोला, 'आप पागल हैं! दूसरा अब नहीं उठा सकता हूं!' अली ने कहा, 'क्यों?' उसने कहा, 'एक उठाने को स्वतंत्र था।' अली ने कहा, 'ऐसा ही मनुष्य का जीवन है। उसमें हमेशा दो पैर हैं आपके पास, और एक उठाने को आप हमेशा स्वतंत्र हैं, एक हमेशा बंधा हुआ है।


इसलिए संभावना है कि जो बंधा है उसे मुक्त कर सकें उसके द्वारा जो कि अभी उठने को स्वतंत्र है। और यह भी संभावना है कि उसे भी बांध सकें उसके द्वारा जो कि बंधा है।


अतीत में आपने जो किया है, वह आपने किया है। आप स्वतंत्र थे करने को; आपने किया है। आपका एक हिस्सा जड़ हो गया है और परतंत्र हो गया है। लेकिन आपका एक हिस्सा अभी भी स्वतंत्र है, उसके विपरीत करने को आप मुक्त हैं। उसके विपरीत करके आप उसको खंडित कर सकते हैं। उससे भिन्न को करके आप उसे विनष्ट कर सकते हैं। उससे श्रेष्ठ को करके आप उसको विसर्जित कर सकते हैं। मनुष्य के हाथ में है कि वह अतीत-संस्कारों को भी धो डाले।


आपने कल तक क्रोध किया था, तो क्रोध करने को आप स्वतंत्र थे। निश्चित ही, जो आदमी बीस वर्षों से रोज क्रोध करता रहा है, वह क्रोध से बंध जाएगा। बंध जाने का मतलब यह है कि एक आदमी, जिसने बीस साल से क्रोध किया है निरंतर, वह एक दिन सुबह सोकर उठता है और अपने बिस्तर के पास अपनी चप्पलें नहीं पाता, एक यह आदमी है; और एक वह आदमी है जिसने बीस सालों से क्रोध नहीं किया, वह भी सुबह उठता है और बिस्तर के पास अपनी चप्पलें नहीं पाता; किस में इस बात से क्रोध के पैदा होने की संभावना अधिक है?


उस आदमी में, जिसने बीस साल से क्रोध किया, क्रोध पैदा होगा। इस अर्थों में वह बंधा है, क्योंकि बीस साल की आदत तत्क्षण उसमें क्रोध पैदा कर देगी कि जो उसने चाहा था, वह नहीं हुआ। इस अर्थों में वह बंधा है कि बीस साल का एक संस्कार उसे आज भी वैसे ही काम करने को प्रेरित करेगा कि करो, जो तुमने निरंतर किया है। लेकिन क्या वह इतना बंधा है कि क्रोधित न हो, यह उसकी संभावना नहीं है?


इतना कोई कभी नहीं बंधा है। अगर वह इसी वक्त सचेत हो जाए, तो रुक सकता है। और क्रोध को न आने दे, यह उसकी संभावना है। आए हुए क्रोध को परिणत कर ले, यह उसकी संभावना है। और अगर वह यह करता है, तो बीस साल की आदत थोड़ी दिक्कत तो देगी, लेकिन पूरी तरह नहीं रोक सकती है। क्योंकि जिसने आदत बनायी थी, अगर वह खिलाफ चला गया है, तो वह तोड़ने के लिए स्वतंत्र है। दस-पांच दफे के प्रयोग करके वह उससे मुक्त हो सकता है।


कर्म बांधते हैं, लेकिन बांध ही नहीं लेते। कर्म जकड़ते हैं, लेकिन जकड़ ही नहीं लेते। उनकी जंजीरें हैं, लेकिन सब जंजीरें टूट जाती हैं। ऐसी कोई जंजीर नहीं है, जो न टूटे। और जो न टूटे, उसको जंजीर भी नहीं कह सकेंगे। जंजीर बांधती है, लेकिन सब जंजीरें खुलने की क्षमता रखती हैं। अगर ऐसी कोई जंजीर हो, जो फिर खुल ही न सके, तो उसको जंजीर भी नहीं कह सकिएगा। जंजीर वही है, जो बांध भी सके और खोल भी सके। कर्म बंधन है, इसी अर्थों में, कि निर्बंधन भी हो सकता है। और हमारी चेतना हमेशा स्वतंत्र है। हमने जो कदम उठाए हैं, हम जिस रास्ते पर चलकर आए हैं, उस पर लौटने को हम हमेशा स्वतंत्र हैं।

ध्यान सूत्र 

ओशो

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