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Tuesday, December 11, 2018

ओशो! जब आपके सामने बैठे हुए हम आपके वचनों को सुनते हैं और आपकी उपस्थिति का अनुभव कर रहते हैं तो आपके द्वारा कहा गया सबकुछ संभव जैसा प्रतीत होता है। परंतु जैसे ही हम अपने दैनिक जीवन की परिस्थितियों में वापस लौटते हैं तो स्पष्टता और पारदर्शिता खो जाती है और हम स्वयं को आपसे दूर महसूस करने लगते हैं।


मेरे साथ होते हुए तुम मौन का अनुभव करते हो, क्योंकि मेरे पास तुम नगण्य हो जाते हो, शून्य हो जात हो। जब तुम मेरे साथ होते हो, मेरे साथ बैठते हो तो कुछ क्षणों के लिए तुम अहंकार शून्य हो जाते हो। उतने समय के लिए जैसे तुम वहां होते ही नहीं हो और तुम पूरी तरह से मेरे साथ हो जाते हो। अवरोध टूट जाता है, दीवार गिर जाती है। उस क्षण में मैं तुम्हारे अंदर प्रवाहित हो जाता हूं। तुम्हें प्रत्येक चीज़ संभव प्रतीत होती है। मुझसे दूर होने पर तुम फिर से दीवारें खड़ी कर लेते हो। तब चीज़े उतनी अधिक सुंदर नहीं होती हैं। इसलिए केवल यह समझने का प्रयास करो कि मेरे साथ रहते हुए तुम्हें क्या घटित हो रहा है? और जब तुम मेरे साथ नहीं हो, तब भी उस अनुभव को हर जगह साथ लेकर चलो। ऐसा क्या घटित होता है? जब सब संभव प्रतीत होता है, यहां तक कि बुद्धत्व की घटना भी संभव प्रतीत होती है तो आखिर ऐसा क्या घट रहा है? वास्तव में उस समय तुम वहां नहीं हो। तुम्हारे बिना... तुम्हारे अहंकार की अनुपस्थिति में सब कुछ संभव है। समस्या तुम ही हो।


मुझे सुनते हुए तुम बाकी सबकुछ भूल जाते हो। जब तुम भूल जाते हो तो तुम वहां नहीं हो क्योंकिं तुम्हारा अहंकार केवल एक मानसिक चीज़ है। तुम्हें प्रत्येक क्षण उसे सृजित करते रहना पड़ता है। यह लगातार किसी साइकिल के पैडल चलाने जैसा है। तुम्हें पैडल चलाते चले जाना है, यदि तुम एक क्षण के लिए भी रुकते हो तो साइकिल भी रूक जाती है। जब एक वेग होता है, थोड़ी गति होती है तो साइकिल कुछ दूर तक चलेगी पर बाद में वह रुक जाती है। इसलिए पैडल चलाना लगातार जारी रखना पड़ता है। यदि तुम चाहते हो कि साइकिल चलती रहे तो तुम्हें पैडल चलाए रखना पड़ता है। यह एक निरंतर चलनेवाली प्रक्रिया है, साइकिल का चलते रहना स्थाई नहीं है, उसकी गति प्रति क्षण सृजित करनी होती है। इसी तरह प्रत्येक क्षण अहंकार को भी पैडल मारकर गतिशील बनाए रखना पड़ता है और तुम पैडल चलाते रहते हो, अपने अहंकार को गतिशील करने के लिए।


जब तुम यहां मेरे पास होते हो तो यह पैडल चलना रुक जाता है। तुम पूरी तरह मेरे साथ हो जाते हो, मुझ में दिलचस्पी लेने लगते हो। तुम्हारा संपूर्ण ध्यान जो अहंकार के पैडल पर था, अब वह छिन्न-भिन्न होने लगता है। यह ठीक एक छोटे बच्चे के साइकिल चलाने जैसा है। वह प्रत्येक चीज़ के बाबत उत्सुक होता है। वह वृक्ष पर बैठे हुए अनेक तोतों को भी देखते हुए चलता है और साइकिल से गिर पड़ता है, क्योंकि उसका ध्यान कहीं और गतिशील हो गया। वह पैडल चलाना बंद कर देता है, वह भूल जाता है कि वह साइकिल पर है और उसे पैडल चलाना जारी रखना है।


केवल एक ही कारण से, प्रारंभ में छोटे बच्चे साइकिल चलाने में कठिनाई का अनुभव करते हैं, ंकि वे प्रत्येक चीज़ के बारे में बहुत उत्सुक होते हैं। कोई भी देश बच्चों को वाहन चलाने के लाइसेंस की अनुमति नहीं देता है और केवल इसलिए ही नहीं देता है क्योंकि वे हर दिशा में उत्सुक होते हैं। वे अचानक भूल जाएंगे, किसी भी क्षण उनका पूरा ध्यान कहीं और जा सकता है और वे भूल जाएंगे कि वे वाहन चला रहे हैं। वे भूल जाएंगे कि उनके उनके हाथों में एक खतरनाक उपकरण है और उनके तथा दूसरों के जीवन को खतरा हो सकता है। वे पूर्णतः केंद्रित नहीं होते हैं और उनकी चेतना प्रत्येक जगह प्रवाहित हो रही है।


जब तुम यहां होते हो, तुम्हारा मेरे साथ एक घनिष्ठ संबंध स्थापित हो जाता है। तुम मेरे साथ पूर्णता से संयुक्त हो जाते हो और तुम पैडल चलाना भूल जाते हो। कुछ विशिष्ट क्षणों के लिए जब तुम स्वयं को पूरी तरह भूल जाते हो तो तुम पर मौन उतरता है, एक परमानंद उतरता है और प्रत्येक चीज़ संभव प्रतीत होती है। तुम आलौकिक हो जाते हो, इसी कारण प्रत्येक चीज़ संभव प्रतीत होती है। केवल परमात्मा के लिए ही प्रत्येक चीज़ संभव है। परमात्मा के लिए कुछ भी असंभव नहीं है। उस क्षण में तुम परमात्मा के समान ही हो जाते हो।


और पुनः मुझसे दूर जाकर, तुम वापिस वैसे ही हो जाते हो, तुम्हारा मन सोचना शुरू कर देता है, तुम पैडल चलाना प्रारंभ कर देते हो। तुम अधिक पैडल मारते हो, क्योंकि कुछ देर तक तुमने पैडल नहीं चलाया था। अब उस कमी को पूरा करने के लिए तुम पहले से कहीं अधिक पैडल चलाते हो। सघन अहंकार वापस लौट आता है। तुम अपनी आत्मा के साथ संपर्क खो देते हो।


मेरे साथ होते हुए वास्तव में जो हो रहा है, वह यह है कि तुम्हारा अपनी आत्मा के साथ संपर्क घटित हो रहा है। तब वहां अहंकार नहीं है। तुम गहनता से स्वयं के साथ ही हो और तुम्हारा अंतर्स्रोत तुम्हें उपलब्ध है, वहां से ऊर्जा प्रवाहित हो रही है और वहां कोई भी अवरोध नहीं है।


मुझसे दूर होते ही, सारे अवरोध वापस लौट आते हैं और पुरानी आदतें भी वापस लौट आती हैं। तब सब चीज़ें उतनी अच्छी प्रतीत नहीं होतीं। तब मेरे साथ होने की पूरी घटना एक सपने के समान प्रतीत होती है। तुम उसका विश्वास ही नहीं कर पाते हो। वह एक चमत्कार के समान प्रतीत होता है। तुम सोचते हो कि हो सकता है शायद मैंने कुछ किया होगा। मैं कुछ भी नहीं करता हूं। कोई भी व्यक्ति तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं कर सकता है। ऐसा घटित होता है, क्योंकि तुम उसे घटित होने की अनुमति देते हो।


जब तुम मुझसे दूर जाओ तो भी उस अनुभूति को अपने साथ लिए हुए चलो। जो कुछ तुम यहां अनुभव कर रहे हो, उसे अपने साथ हमेशा लेकर चलो। तब मेरी कम से कम आवश्यकता पड़ेगी अन्यथा मैं एक नशीले पदार्थ की तरह बन सकता हूं, तब प्रत्येक सुबह जागते ही तुम मेरे लिए व्याकुल होना शुरू कर दोगे। तुम शीघ्र ही मेरे पास आने की तैयारी करोगे, भीतर एक गहन प्यास होगी... तब मैं एक नशे की दवा बन सकता हूं। तुम मुझ पर ही आश्रित होते जाओगे। यह सतोरी अथवा बुद्धत्व तक पहुंचने का सही मार्ग नहीं है। यह तरीका ठीक नहीं है। यदि तुम मुझ पर आश्रित हो जाते हो, जैसे कि मैं कोई नशीला पदार्थ हूं... तब मैं विध्वंसक हूं, विनाशकारी हूं। लेकिन यह तुम ही हो, जो मुझे एक नशीली दवा में बदल देते हो।


मेरे निकट, मेरे साथ और मेरी उपस्थिति में तुम जो कुछ भी अनुभव करते हो, उसे सदैव अपने साथ लिए हुए चलो। तुम्हें अनिवार्य रूप से एक ऐसी स्थिति में आना है, तुम्हें निश्चित ही उस बिंदु तक पंहुचना है, जहां मेरे साथ या मेरे बिना भी तुम एक जैसे ही बने रहो। तब मैं एक बंधन नहीं हूं और तब मैं एक सहायता बन सकता हूं। तब मैं तुम्हारे लिए एक स्वतंत्रता हूं और मुझे तुम्हारे लिए एक स्वतंत्रता ही बनना चाहिए। जब मैं कहता हूं कि मुझे तुम्हारे लिए एक स्वतंत्रता ही बनना चाहिए तो इसका अर्थ है कि तुम्हें अनिवार्य रूप से उस स्थिति तक आना है, जहां तुम मुझसे भी मुक्त हो जाओ। यदि मेरे प्रति निरंतर एक निर्भरता बनी रहती है तो तुम मुक्त नहीं हो, इससे कोई सहायता प्राप्त नहीं होगी तथा यह चीज़ों को स्थगित किए जाने जैसा होगा।

सफ़ेद बादलों का मार्ग 

ओशो

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