श्रद्धा भी बुद्धि है। श्रद्धा बौद्धिक होती है। हम बड़ी मुश्किल में हैं दुनिया में। हम समझते हैं अश्रद्धा बौद्धिक होती है और श्रद्धा बौद्धिक नहीं होती। अश्रद्धा भी बौद्धिक होती है, श्रद्धा भी बौद्धिक होती है। किससे श्रद्धा करते हैं? जो मानता है कि मैं ईश्वर को मानता हूं, वह किस चीज से मान रहा है ईश्वर को? बुद्धि से मान रहा है। जो कहता है, मैं ईश्वर को नहीं मानता, वह किससे नहीं मान रहा है? वह भी बुद्धि से नहीं मान रहा है। धार्मिक लोगों ने एक उलझाव पैदा कर दिया है। वे यह सोचते हैं कि श्रद्धा तो बौद्धिक नहीं है और अश्रद्धा बौद्धिक है। अश्रद्धा भी बौद्धिक है, श्रद्धा भी बौद्धिक है। अगर आपकी बुद्धि पूरी असफल हो जाए, आप भगवान को उपलब्ध हो जाएंगे। बुद्धि ही बाधा है। अगर आपकी बुद्धि बिलकुल असफल हो जाए खोजने में और यह कह दे कि मेरी बुद्धि कुछ भी नहीं खोजती, तो न वह बुद्धि श्रद्धा करेगी, न अश्रद्धा; क्योंकि श्रद्धा भी खोज है, अश्रद्धा भी खोज है।
जो यह कह रहा है, ईश्वर नहीं है, उसने भी कुछ खोज लिया। जो यह कह रहा है, ईश्वर है,
उसने भी कुछ खोज लिया। दोनों की बुद्धि सफल हो गई।
अगर बुद्धि टोटल फेल्योर हो जाए तो आप सत्य को उपलब्ध हो जाएंगे। अगर बुद्धि यह कह दे कि मैं कुछ भी नहीं खोज पा रही, और बुद्धि पर से आस्था उठ जाए, और बुद्धि से आप बिलकुल निराश हो जाएं, तो आपके भीतर प्रज्ञा का जागरण हो जाएगा। जब तक बुद्धि को आस्था बनी है--चाहे श्रद्धा में, चाहे अश्रद्धा में, तब तक प्रज्ञा का, तब तक इंट्यूशन का जागरण नहीं होगा। इंटेलिजेंस बिलकुल असफल हो जाए और आपकी आस्था उस तरफ से बिलकुल उठ जाए कि बुद्धि से कुछ भी न होगा, तो आपके भीतर एक नया द्वार खुल जाएगा जिसको इंट्यूशन कहते हैं, जिसको प्रज्ञा कहते हैं।
बुद्धि की असफलता बड़ा सौभाग्य है। बुद्धि असफल हो जाए, इससे बड़ी और कोई बात नहीं है।
जीवन अलोक
ओशो
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