शून्य होकर किसी का स्मरण नहीं करना है। स्मरण विचार ही है। स्मरण तो हम चैबीस घंटे कर रहे हैं किसी न किसी का, इसलिए स्व का विस्मरण हो गया है। या तो हम धन का स्मरण कर रहे हैं, मित्रों का स्मरण कर रहे हैं। अगर मित्र और धन छूटे तो भगवान का स्मरण कर रहे हैं, लेकिन हम किसी न किसी के स्मरण से भरे हैं। इसलिए स्व का विस्मरण हो गया है। अगर समस्त पर का स्मरण छूट जाए तो स्व का स्मरण आ जाएगा। स्मरण किसी का करना नहीं है। स्मरण कर रहे हैं, यही दिक्कत है। स्मरण छोड़ देना है समस्त का।
सब्स्टीट्यूट नहीं करना है। दुकान का स्मरण करते थे तो उसे छोड़ा
तो अरिहंत-अरिहंत का स्मरण करने लगे। वह सब्स्टीट्यूट हो गया। पहले भी किसी पर का
स्मरण कर रहे थे, अब भी पर का स्मरण कर रहे हैं। समस्त पर के स्मरण के शून्य हो जाने पर स्व
का जो विस्मरण हो गया है उसका स्मरण हो जाता है। स्मरण करना नहीं होता, स्मरण हो जाता है। कुछ दोहराना नहीं होता, कुछ दिख
जाता है।
शून्य का अर्थ किसी का स्मरण नहीं, समस्त स्मरण का विसर्जन है। हमने अपने को खोया नहीं है, हमने केवल अपने को विस्मरण किया है। हम अपने को खो तो सकते ही नहीं। स्वरूप को खोया नहीं जा सकता, केवल विस्मरण किया है। और विस्मरण क्यों किया है? विस्मरण इसलिए किया है कि दूसरी बातों के स्मरण ने चित्त को भर दिया है। मैं दूसरी चीजों से भरा हुआ हूं। दूसरे शब्दों से, विचारों से भरा हुआ हूं। अगर वे सारे शब्द, सब विचार और सारा स्मरण विसर्जित हो जाए तो स्व का बोध उत्पन्न हो जाएगा। स्मरण नहीं करना है, विस्मरण करना है।
श्री रमण से किसी ने पूछा था आकर कि क्या सीखूं कि मुझे प्रभु उपलब्ध हो जाए? श्री रमण ने कहाः सीखना नहीं है, अनलर्न करना है। सीखना नहीं है, भूलना है। बहुत स्मरण है, बही बाधा है। समस्त स्मरण छूट जाए, स्व-स्मरण जाग्रत हो जाता है।
जीवन आलोक
ओशो
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