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Wednesday, December 12, 2018

तादात्म्य का मिटा देना मोक्ष है, मुक्ति है।


नाम तुम्हारे मां-बाप ने तुम्हें बचपन में दे दिया, अब तुम उसको मानकर बैठ गए हो कि तुम्हारा नाम है। उस नाम में और लिंकन के नाम में और रावण के नाम में कोई बड़ा फर्क है? तुम्हें एक नाम दे दिया है। नाम तो कामचलाऊ है। और तुमने उससे तादात्म्य कर लिया है कि तुम वही हो। अब अगर उस नाम को लेकर कोई गाली दे दे तो जान लेने-देने को तुम उतारू हो जाते हो।

 और नाम में रखा क्या है? मां-बाप ने कुछ और नाम दिया होता तो तुम ऐसे ही निकल जाते। यह आदमी गाली देता रहता विष्णुप्रसाद को और तुम्हारा नाम विष्णुप्रसाद न होता; तुम्हारा नाम अल्लाहबख्श होता तो तुम निकल जाते। हालांकि मतलब दोनों का एक ही होता है। विष्णुप्रसाद का भी मतलब वही होता है, अल्लाहबख्श का भी मतलब वही होता है। मगर तुम निकल जाते। तुमसे कोई लेना-देना नहीं था। किसी हिंदू को गाली दे रहा है। तुम मुसलमान हो। तुम्हारा नाम अल्लाहबख्श है।

तुम्हें नाम तो कोई भी दिया जा सकता था, क्योंकि नाम तुम हो नहीं। अनाम पैदा होते हो, फिर नाम के जाले में फंस जाते हो। फिर जिंदगी भर नाम और नाम को ही ढोते रहते हो। उसी के लिए जीते हो, उसी के लिए मरते हो। लोग समझाते हैं, नाम का खयाल रखो। किस घर में पैदा हुए हो, किस बाप के बेटे हो। नाम को बचाओ। नाम की प्रतिष्ठा है। नाम का गुणगान है।

तो न तो नाम तुम हो, न रूप तुम हो। क्योंकि रूप कितना बदलता है! रोज बदलता है। तुम तो वही रहते हो, तुम कब बदले? जब तुम बच्चे थे तब भी तुम्हारे भीतर का तत्व वही था, जो अब है। कल जब तुम बूढ़े हो जाओगे, देह जरा-जीर्ण होगी, लोग अरथी बनाने की तैयारी करने लगेंगे, तब भी तुम तो भीतर वही रहोगे। मरते क्षण में भी तुम वही रहोगे, जो तुम जन्मते क्षण में थे। रत्ती भर भी भेद न पड़ेगा।

तो तुम्हारा रूप भी तुम नहीं हो। न तो नाम तुम हो, न रूप तुम हो। इसलिए हिंदू कहते हैं, जो नाम-रूप के ऊपर उठ गया, वह ज्ञान को उपलब्ध हो जाता है। नाम-रूप से जिसका तादात्म्य छूट गया, वह उसे जान लेता है, जो वह है।

"उत्तिष्ठ, जाग्रत, प्राप्यवरान्निबोधत"

उठो, जागो, उसे पा लो, जो पाया ही हुआ है।

जाग जाओ, बस! नींद क्या है?

तादात्म्य नींद है। वही तंद्रा है।


सारा धर्म इस एक छोटे से शब्द में समाया जा सकता है--तादात्म्य का तोड़ देना।

तादात्म्य का बनाना संसार है।

तादात्म्य का मिटा देना मोक्ष है, मुक्ति है।

तादात्म्य मन है और तादात्म्य के ऊपर उठ जाना, उन्मन अवस्था है--अमन; जिसको झेन फकीर "नो-माइंड" कहते हैं। उसको कबीर उन्मनी अवस्था कहते हैं।


कहै कबीर दीवाना 

ओशो



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