मैंने सुना है,
अकबर निकलता था एक रास्ते से; और एक आदमी ने
अपने छप्पर पर खड़े होकर उसे गालियां देनी शुरू कर दीं। आदमी पकड़ लिया गया, जेलखाने में डाल दिया गया। दूसरे दिन अकबर के सामने लाया गया। अकबर ने
पूछा, कि क्या हुआ? क्यों तू गालियां
बक रहा था? और किसलिए तूने यह उपद्रव किया?उस आदमी ने कहा, कि क्षमा करें; मैंने गाली बकी ही नहीं। अकबर ने कहा, मैं खुद मौजूद
था, किसी गवाह की कोई जरूरत नहीं। तू गाली बक रहा था।
उस ने कहा, मैं फिर आप से कहता हूं, गाली आपने सुनी होगी, किसी ने बकी होगी, लेकिन मैंने नहीं बकी, क्योंकि मैं शराब पीए था, मुझे होश ही न था।
क्या करोगे इस आदमी को? अकबर ने कहा, अगर होश ही न था तो छोड़ दो। आगे से थोड़ा होश रखने का खयाल रख।
गाली देने के लिए जिम्मेवारी खत्म हो गई। होश ही न हो. . .छोटे बच्चों को अदालत भी दंड नहीं देती क्योंकि उन्हें होश नहीं है। शराबी को अदालत भी छोड़ देती है, क्योंकि क्या करोगे? पागल को कोई अदालत दंड नहीं देती। वह हत्या भी कर दे, तो भी उसको क्या दंड दिया जा सकता है? उसे पता ही नहीं, वह क्या कर रहा है।
तुमने जन्मों-जन्मों में जो किया है, उसका तुम्हें पता है? या तो तुम बच्चे हो, या शराब में हो, या पागल हो। नींद में तुमने किया है। सपना था तुम्हारा अतीत। उसी सपने को हम माया कहते हैं। माया का अर्थ ही यह है, कि जिसमें तुमने जो भी किया है, वह सपने के बराबर है। उसका कोई मूल्य नहीं है।
तब तक जागे नहीं हो, तब तक मूल्य है। रात सपना
देखते हो; जब तक जागे नहीं, तब तक सपने
में मूल्य है। तुमने एक आदमी की हत्या कर दी है और तुम घबड़ा गए और भाग रहे हो और
बच रहे और छिप रहे हो पहाड़ों में और तब सपना टूट गया! अब तुम क्या करोगे? छिपोगे, डरोगे, कि पुलिस कहीं
पकड़ न ले? तुम सिर्फ हंसोगे; तुम कहोगे,
सपना टूट गया। सपने में हत्या की थी, सपने में
ही भाग रहा था।
माया का केवल अर्थ इतना है कि सोए हुए तुमने सारे कृत्य किए हैं। सोए हुए ही तुम उनसे बचने की कोशिश कर रहे हो। और सारी साधना का सूत्र एक है कि तुम जाग जाओ। जागते ही, सोए हुए तुमने जो किया है, वह व्यर्थ हो जाता है। वह सपने से ज्यादा नहीं है।
लेकिन तुम्हारी तरकीबें हैं। तुम कहते हो कि जब तक अनंत जन्मों के पाप न कटेंगे, तब तक कैसे ज्ञान होगा? ज्ञान कहीं तत्क्षण हो सकता है?
और मैं तुमसे कहता हूं, ज्ञान जब भी होता है, तत्क्षण होता है। ज्ञान कोई क्रमिक प्रक्रिया नहीं है कि धीरे-धीरे, धीरे-धीरे, धीरे-धीरे होता है। तुम जब सुबह जागते हो तो धीरे-धीरे जागते हो? एक क्षण पहले नींद थी और एक क्षण बाद होश है। दोनों के बीच में कोई ऐसी जगह होती है, जब तुम कह सको कि आधा होश है, आधा होश नहीं है? क्योंकि अगर आधा होश भी है तो नींद टूट गई। अगर तुम कहो कि जरा सा होश है, बाकी नींद है; तो भी नींद टूट गई। क्योंकि जिसको इतना भी पता है, कि जरा सा होश है, वह जाग गया।
ऐसी ही घटना घटती है अंतस के लोक में। तुम जाग जाते हो क्षण में।
लेकिन तुम कहते हो--असंभव, कठिन, मुश्किल! तुम कहते हो मैं पापी; मुझसे कैसे होगा? मैंने बड़े बुरे कर्म किए हैं, मैं कैसे परमात्मा को पा सकता हूं?सभी ने कर्म किए हैं और सभी ने बुरे कर्म किए हैं। क्योंकि बेहोशी में कोई अच्छे कर्म कर ही कैसे सकता है? पाप से परमात्मा को पाने में कोई बाधा नहीं है। जब तक तुमने परमात्मा को नहीं पाया है, तब तक पाप जारी रहेगा। परमात्मा से पाप में बाधा पड़ती है, पाप से परमात्मा में बाधा नहीं पड़ती। और अगर पाप से परमात्मा में बाधा पड़ जाए तो पाप बड़ा हो गया है, परमात्मा छोटा हो गया। पाने-योग्य भी न रहा । दो कौड़ी का हो गया। फेंक दो उसे कचरे-घर में।
जब प्रकाश आता है, तो अंधेरे में बाधा पड़ती है। अंधेरे से प्रकाश में बाधा नहीं पड़ती। दीया जला, अंधेरे में बाधा पड़ जाती है। लेकिन क्या तुम अंधेरा ला सकते हो बाहर से टोकरियों में भरकर और दीये पर पटक सकते हो, कि दीया बुझ जाए अंधेरे से? तुम अंधेरा कैसे टोकरियों में लाओगे? तुम दीये के पास अंधेरे को न ला सकोगे। कोई उपाय नहीं है।
मेरा मुझ में कुछ नहीं
ओशो
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