पूछा है कृष्ण कुमार जाबाली ने।
तुम तो अभी संन्यासी भी नहीं हो। तुम्हें
क्या चिंता!
फिर तुम कब तक यहां रहने का इरादा रखते हो? सदा! भविष्य में जो झंझटें
आएंगी, उनको तुम्हें हल करना है! तुम अपनी झंझट हल कर लो,
इतना काफी है। भविष्य को भविष्य पर छोड़ो! आखिरी भविष्य के लप्तेगें
को भी तो कुछ झंझटें हल करने को छोड़ोगे कि नहीं! कि तुम्हारा इरादा तुम्हारे साथ
ही सृष्टि का अंत कर देने का है! लोग बड़ी व्यर्थ के ऊहापोह में पड़ जाते हैं।
लेकिन ये सब तरकीबें हैं मन की। और इन
तरकीबों का तुम उपयोग नहीं करते हो जहा तुम बचना चाहते हो। एक भी आदमी ने मुझसे अब
तक नहीं पूछा, मैंने
लाखों लोगों के सवालों के जवाब दिये हैं, एक भी आदमी ने
मुझसे नहीं पूछा कि हम मरेंगे, तो हम बच्चे को पैदा करें कि
नहीं, क्योंकि फिर इसको भी करना पड़ेगा। एक आदमी ने नहीं पूछा
यह! लोग बच्चे पैदा किये चले जाते हैं। कोई नहीं पूछता यह कि इसको भी झंझटें आएंगी
जो हमको आयीं, तो झंझटें हल ही क्यों न कर दें, इसको पैदा ही न करें। कोई भी नहीं पूछता कि जब मृत्यु होने ही वाली है,
आगे, क्या आगे भी मृत्यु होती ही रहेगी?
अगर आगे भी मृत्यु होती रहेगी तो बच्चे को पैदा क्यों करना, क्योंकि यह मरेगा। नहीं, बच्चे तुम्हें पैदा करने
हैं, तुम यह प्रश्न नहीं पूछते। लेकिन संन्यास लेने में
तुम्हें डर है। ड़र को छिपाने के लिए नये—नये बहाने खड़े करते
हो।
अब यह भी खूब अदभुत प्रश्न है! यह प्रश्न यह
है कि आपके चल जाने के बाद... अभी मैं यहां हूं! कोई मैंने ठेका लिया है दुनिया का
मेरे चले जाने के बाद! कि दुनिया में कोई समस्या नहीं बचने देंगे। समस्याएं उठती
रहेंगी। जन्म के साथ मृत्यु आती रहेगी। और जब भी धर्म की कोई नयी अवधारणा पैदा
होगी, संगठन
पैदा होंगे, चर्च बनेगा, संप्रदाय
बनेगा और सब रोग आएंगे जो सदा आते रहते हैं। लेकिन इस कारण धर्म की अवधारणा नहीं
रोकी जा सकती। जितनों को लाभ हो जाए, उतने को सही। मेरी
मौजूदगी में जितनों को लाभ हो जाएगा हो जाएगा और फिर भी जो समझदार हैं पीछे,
उनको पीछे भी लाभ होता रहेगा। और जो नासमझ हैं, तुम जैसे, उनका अभी भी लाभ नहीं हो रहा है। तो मेरे
होने न होने से क्या फर्क पड़ता है? नासमझों को भी लाभ नहीं
हो रहा, समझदारों को फिर भी होता रहेगा। नासमझों को अभी भी
लाभ नहीं हो रहा है, नासमझों को तब भी नहीं होगा।
कृष्ण कुमार! तुम्हें अपनी चिंता है या सारे
जगत की चिंता है? इतनी बड़ी चिंता मत लो। छोटी—सी चिंताएं तो हल नहीं
हो रही हैं। क्रोध तो हल नहीं होता, दुख तो हल ही होता,
चिंता तो हल नहीं होती, अहंकार तो हल नहीं
होता, तुम इतनी बड़ी चिंताएं मत लो। लेकिन अक्सर ऐसा हो जाता
है, आदमी अपनी छोटी चिंताओं को छिपाने के लिए बड़ी—बड़ी चिंताएं ले लेता है—मनुष्यता का क्या होगा?
तीसरा महायुद्ध होगा तो फिर क्या होगा? अभी
तुम हल नहीं कर पाए अपनी पत्नी से जो रोज युद्ध होता है वह हल नहीं होता, तीसरा महायुद्ध होगा फिर क्या होगा? यह तुम अपने मन
को भरमा रहे हो। यह तुम अपने मन को नये—नये उपाय दे रहे हो।
ताकि तुम्हें यह झंझट न सोचनी पड़े कि घर जानना है और पत्नी तैयार हो रही होगी। और
फिर तुम्हें धूल चटाकी। उस छोटी—सी चिंता को हल नहीं कर पाते
हो तो बड़ी चिंताएं खड़ी कर लेते हो।
अथातो भक्ति जिज्ञासा
ओशो
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