एक सम्राट की सवारी निकलती थी एक रास्ते पर। एक आदमी चौराहे पर खड़ा
होकर पत्थर फेंकने लगा और अपशब्द बोलने लगा और गालियां बकने लगा। सम्राट की बड़ी शोभायात्रा
थी। उस आदमी को तत्काल सैनिकों ने पकड़ लिया और कारागृह में डाल दिया। लेकिन जब वह गालियां
बकता था और अपशब्द बोलता था, तो सम्राट हंस रहा था। उसके सैनिक हैरान हुए, उसके वजीरों
ने कहा, आप हंसते क्यों हैं? उस सम्राट
ने कहा, जहां तक मैं समझता हूं, उस आदमी
को पता नहीं है कि वह क्या कर रहा है। जहां तक मैं समझता हूं वह आदमी नशे में है। खैर,
कल सुबह उसे मेरे सामने ले आएं। कल सुबह वह आदमी सम्राट के सामने लाकर
खड़ा कर दिया गया। सम्राट उससे पूछने लगा, कल तुम मुझे गालियां
देते थे, अपशब्द बोलते थे, क्या था कारण
उसका? उस आदमी ने कहा, मैँ! मैं और अपशब्द
बोलता था! नहीं महाराज, मैं नहीं रहा होऊंगा, इसलिए अपशब्द बोले गए होंगे। मैं शराब में था, मैं बेहोश
था, मुझे कुछ पता नहीं कि मैंने क्या बोला,
मैं नहीं था।
हम भी नहीं हैं। नींद में हम चल रहे हैं, बोल रहे हैं, बात कर रहे हैं, प्रेम कर रहे हैं, घृणा कर रहे हैं, युद्ध कर रहे हैं। अगर कोई दूर के तारे
से देखे मनुष्य जाति को, तो वह यही समझेगा
कि सारी मनुष्य जाति इस भांति व्यवहार कर रही है जिस तरह नींद
में, बेहोशी में कोई व्यवहार करता हो। तीन हजार वर्षों में मनुष्य जाति ने पंद्रह हजार युद्ध किए हैं। यह जागे हुए मनुष्य का लक्षण नहीं है।
जन्म से लेकर मृत्यु तक की सारी कथा, चिंता की, दुख की, पीड़ा की कथा है। आनंद का एक क्षण भी उपलब्ध नहीं
होता। आनंद का एक कण भी नहीं मिलता है जीवन में। खबर भी नहीं मिलती कि आनंद क्या है।
जीवन बीत जाता है और आनंद की झलक भी नहीं मिलती। यह आदमी होश में नहीं कहा जा सकता
है। दुख, चिंता, पीड़ा, उदासी और पागलपन सारे जन्म से लेकर मृत्यु तक की कथा
है।
लेकिन शायद हमें पता नहीं चलता, क्योंकि हमारे चारों तरफ भी हमारे जैसे ही सोए हुए
लोग हैं। और कभी अगर एकाध जागा हुआ आदमी पैदा हो जाता है, तो
हम सोए हुए लोगों को इतना क्रोध आता है उस जागे हुए आदमी पर कि हम बहुत जल्दी ही उस
आदमी की हत्या कर देते हैं। हम ज्यादा देर उसे बर्दाश्त नहीं करते।
मैं मृत्यु सिखाता हूँ
ओशो
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