वे शास्त्र और किताब के फर्क को नहीं समझ पाए। किताबों के विरोध
में मैं नहीं हूं। गीता एक किताब हो,
तो ठीक। कुरान एक किताब हो, तो ठीक। जिस दिन
कोई किताब शास्त्र बनती है, उसी दिन से खतरा शुरू होता है।
शास्त्र और किताब में फर्क क्या है?
जब कोई किताब आथारिटी बन जाती है, आप्त बन जाती है--जब कोई किताब यह दावा करती है
कि ईश्वरीय है, होली है, पवित्र है--जब
कोई किताब यह दावा करती है कि इसमें जो लिखा है, वह त्रिकाल
में सत्य है--जब कोई किताब यह दावा करती है कि इससे अन्यथा जो है, वह सब गलत है--जब कोई किताब यह कहती है कि मेरी पूजा करो--जब कोई किताब
पूजा पाने लगती है, आप्त बन जाती है, दावे
करने लगती है कि जो कुछ है मैं हूं, यही सत्य है, इस पर श्रद्धा लाने से ही ज्ञान उपलब्ध होगा--तब किताब, किताब नहीं रह जाती, शास्त्र बन जाती है। और शास्त्र
खतरनाक सिद्ध होते हैं--किताबें--किताबें तो बहुत निर्दोष हैं। उनमें कोई खतरा
नहीं है।
तो ये जो मेरी किताबें हैं, जब तक किताबें हैं, तब तक
कोई खतरा नहीं है। लेकिन अगर कुछ नासमझ यहां इकट्ठे हो गए, और
इनमें से किसी किताब को उन्होंने शास्त्र कह दिया, तो खतरा
शुरू हो जाएगा। उस दिन इनको जला देना, इनको एक क्षण बचने मत
देना--जिस दिन भी कोई इनको शास्त्र कहे। क्योंकि तब यह मनुष्य को बांधने वाली हो
जाती हैं।
एक खलीफा सिकंदरिया पहुंचा था। और सिकंदरिया के बहुत बड़े विराट
पुस्तकालय में उसने आग लगवा दी थी। उस पुस्तकालय में, कहा जाता है संभवतः दुनिया
की सर्वाधिक किताबें संगृहीत थीं। एक बड़ी संपदा थी वह। इतनी पुस्तकें थीं वहां कि
आग लगाने पर छह महीने तक आग बुझ नहीं सकी। छह महीने तक पुस्तकालय जलता रहा।
जिस खलीफा ने वहां आग लगाई थी, वह अपने हाथ में एक शास्त्र लेकर पहुंचा था,
वह कुरान लेकर पहुंचा था। अगर कुरान भी एक किताब होती तो उस
लाइब्रेरी में आग लगाने की कोई जरूरत न थी। वहां और किताबें थीं, कुरान भी एक किताब थी। यह भी उन किताबों में सम्मिलित हो सकती थी।
लेकिन कुरान था एक शास्त्र। लाइब्रेरी में कोई शास्त्र नहीं था।
क्योंकि एक शास्त्र, दूसरे शास्त्र को नहीं मानता; दूसरे शास्त्र के
प्रति बड़ार् ईष्यालु होता है, क्योंकि शास्त्र हो सकता है एक,
पच्चीस दावे सही नहीं हो सकते। एक ही दावा सही हो सकता है।
उस खलीफा ने जाकर उस पुस्तकालय के अध्यक्ष को कहा था--एक हाथ
में कुरान लेकर और एक हाथ में मशाल--उससे कहा था कि मैं यह पूछने आया हूं कि कुरान
में जो कुछ लिखा है, तुम्हारे इस पुस्तकालय में जो किताब हैं, क्या उनमें
भी वही लिखा है जो कुरान में लिखा है? अगर वही लिखा है तो
इतनी किताबों की कोई जरूरत नहीं, कुरान काफी है, कुरान पर्याप्त है। अगर वही बातें लिखी हैं तो इतना यहां...इतना उपद्रव
मचाने की क्या जरूरत है? और अगर तुम्हारी इन किताबों में ऐसी
बातें भी लिखी हैं जो कुरान में नहीं हैं, तब तो इस
पुस्तकालय को एक क्षण बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। क्योंकि कुरान के अतिरिक्त जो
कुछ भी है, सब गलत है। सत्य तो कुरान है।
तो उस खलीफा ने कहा,
दोनों हालत में--तुम्हारा उत्तर चाहे कुछ भी हो, मैं आग लगाने आया हूं। चाहे तुम कहो कि इनमें भी वही बातें लिखी हैं जो
कुरान में हैं, तब मैं कहूंगा कि फिजूल हैं ये किताबें। और
अगर तुम कहो कि इनमें ऐसी बातें भी हैं जो कुरान में नहीं, तो
मैं कहूंगा खतरनाक हैं ये किताबें। इनको इसी वक्त जला देना जरूरी है।
उसने एक हाथ में...कुरान को नमस्कार करके और उस पुस्तकालय में
आग लगा दी।
यह कुरान शास्त्र था,
अगर किताब होती तो इस पुस्तकालय में आग नहीं लग सकती थी।
मैंने किताबों के विरोध में कुछ भी नहीं कहा है। जो कहा है
शास्त्र के विरोध में कहा है। शास्त्र किताब नहीं है--पागल हो गई किताब है।
असंभव क्रांति
ओशो
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