Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Friday, June 9, 2017

चित्त की सरलता



महावीर को हुए ढाई हजार वर्ष हुए, क्राइस्ट को हुए दो हजार वर्ष हुए, बुद्ध को हुए ढाई हजार वर्ष हुए; राम को और भी ज्यादा हुआ; कृष्ण को बहुत समय हुआ। उनके बाद हमने आदर्श पकड़ लिए हैं। बुद्ध के बाद ढाई हजार वर्ष से उनके पीछे चलने वाला बुद्ध होने की कोशिश में लगा है। कोई दूसरा आदमी बुद्ध हुआ? ढाई हजार वर्षों में नहीं हुआ। कोई दूसरा आदमी महावीर हुआ? ढाई हजार वर्षों में नहीं हुआ। कोई दूसरा आदमी क्राइस्ट हुआ? दो हजार वर्षों का अनुभव तो इनकार करता है कि नहीं हुआ। फिर भी लाखों लोग क्राइस्ट होने की चेष्टा में लगे हैं, लाखों लोग बुद्ध होने की, लाखों लोग महावीर होने की। जरूर इसमें कोई बुनियादी गलती है। 

जो आदमी भी किसी दूसरे आदमी के जैसा होने की चेष्टा में लगता है, वह जटिल हो जाएगा। स्वभावतः जटिल हो जाएगा। वह अपने को इनकार करने लगेगा और दूसरे को अपने ऊपर थोपने लगेगा। वह अपनी वास्तविकता को निषेध करने लगेगा और दूसरे की आदर्शवत्ता को ओढ़ने लगेगा। वह आदमी कठिन हो जाएगा, जटिल हो जाएगा। उसका चित्त खंड-खंड हो जाएगा। वह टूट जाएगा अपने भीतर। उसके भीतर द्वंद्व उत्पन्न हो जाएगा। और बड़ी मुश्किल तो यही है कि महावीर होने के लिए सरल होना जरूरी है; बुद्ध होने के लिए सरल होना जरूरी है; क्राइस्ट होने के लिए सरल होना जरूरी है; और जो उनका अनुगमन करते हैं, अनुगमन करने के कारण जटिल हो जाते हैं। 

यह स्थिति आपको दिखनी चाहिए। कोई किसी का अनुगमन करके कभी सरल नहीं हो सकता। अनुगमन का अर्थ ही हुआ कि मैंने दूसरे मनुष्य जैसे होने की चेष्टा शुरू कर दी, बिना उस मनुष्य को समझे हुए, जो मैं था, जो मैं हूं। मैं जो हूं, इसे समझे बिना मैंने दूसरा मनुष्य होने की चेष्टा शुरू कर दी। मैं जो रहूंगा, वह रहा आऊंगा, और दूसरे मनुष्य का आवरण, अभिनय, पाखंड अपने ऊपर थोप लूंगा। 

इसीलिए धार्मिक मुल्क अत्यंत पाखंडग्रस्त हो जाते हैं। हमारा मुल्क है। इससे ज्यादा पाखंडी मुल्क जमीन पर खोजना कठिन है। इससे ज्यादा जटिल मुल्क, जटिल कौम, जटिल जाति खोजनी बिलकुल मुश्किल है। जितना पाखंड हममें घना और गहरा है, इतना जमीन पर किसी कौम में नहीं हो सकता। और उसका कारण कुल यह है कि हम सब अनुकरण, आदर्श, हम कुछ होने के पागलपन में लगे हैं, उस मनुष्य को समझे बिना, जो हम हैं। जब कि जीवन की कोई भी वास्तविक क्रांति, जो हम हैं, उसके समझने से शुरू होती है। जो मैं वस्तुतः हूं, उसे समझने से शुरू होती है।

अमृत की दशा 

ओशो

No comments:

Post a Comment

Popular Posts