रंजन! इस कहानी पर ध्यान करना:
अकबर और बीरबल के बीच विवाद खड़ा हुआ। अकबर का
कहना था कि मुल्ला ही सबसे आदिम और चतुर लोग हैं। पंडित, पुजारी। जब कि बीरबल का कहना
था कि मारवाड़ी को चतुराई में कोई मात नहीं कर सकता। अकबर ने सबूत जानना चाहा। बीरबल
ने मुल्ला नसरुद्दीन को बुलाया और कहा कि बादशाह को आपकी दाढ़ी-मूंछ चाहिए। उसके बदले
में जो कीमत हो, वे चुका देंगे। मुल्ला से कहा गया कि वह यदि
दाढ़ी-मूंछ कटवाने से इनकार करेगा तो उसकी गर्दन उड़ा दी जाएगी।
मुल्ला ने पहले तो बड़ी दलीलें दीं और गिड़गिड़ाए
कि दाढ़ी-मूंछ न काटी जाए, महाराज। मैं मुल्ला हूं, धर्मगुरु हूं,
दाढ़ी-मूंछ कट गई तो मेरे धंधे को बड़ा नुकसान पहुंचेगा। अरे दाढ़ी-मूंछ
कट गई तो कौन मुझे मुल्ला समझेगा? इस पर ही तो मेरा सारा व्यवसाय
टिका है।
मगर बीरबल ने कहा कि फिर समझ ले, तैयार हो जा। अगर दाढ़ी-मूंछ
बचानी तो गर्दन कटेगी।
मुल्ला ने भी सोचा कि दाढ़ी-मूंछ की बजाय गर्दन
कटवाना तो महंगा सौदा है। इससे तो दाढ़ी-मूंछ ही कटवा लो, फिर उग आएगी। गर्दन थोड़े
ही दुबारा उगेगी। अरे दाढ़ी-मूंछ तो दो-चार-छह महीने की बात है, भग जाएंगे कहीं, छिप जाएंगे कहीं हिमालय की गुफा
में, चार-छह महीने में फिर उग आएगी।
सो धमकाने की वजह से वह राजी हो गया। घबड़ाहट
के मारे उसने कोई कीमत भी मांगना उचित नहीं समझा, कि जान बची लाखों पाए। जल्दी से दाढ़ी कटवाई और
भाग गया जंगल की तरफ।
बीरबल ने फिर धन्नालाल मारवाड़ी को बुलवाया। दाढ़ी-मूंछ
कटवाने की बात सुन कर पहले तो वह कांप उठा,
परंतु फिर सम्हल कर उसने कहा: हुजूर, हम
मारवाड़ी नमकहराम नहीं होते। आपके लिए दाढ़ी-मूंछ तो क्या, गर्दन
कटवा सकते हैं।
अकबर ने बीरबल की ओर मुस्कुरा कर देखा। बीरबल
ने भी आंखों से ही कहा कि जरा आगे देखिए,
क्या होता है! बीरबल ने पूछा: क्या कीमत लोगे? मारवाड़ी ने कहा: एक लाख अशर्फियां। सुनते ही अकबर तो मारे गुस्से के उबल
पड़ा। एक दाढ़ी-मूंछ की इतनी कीमत? मारवाड़ी ने कहा: हुजूर,
पिता की मृत्तयु पर पिंड दान और सारे गांव को भोजन करवाना पड़ा--दाढ़ी
के इन दो बालों की खातिर। मां के मरने पर काफी दान-पुण्य करना पड़ा--दाढ़ी के इन दो बालों
की खातिर। अरे दाढ़ी की इज्जत के लिए क्या नहीं किया! हुजूर, शादी करनी पड़ी--दाढ़ी के इन दो बालों की खातिर। नहीं तो लोग कहते थे कि अरे,
क्या नामर्द हो? सो मर्द सिद्ध करने के लिए
शादी तक करनी पड़ी। हुजूर, कैसे-कैसे कष्टों में पड़ा,
आपको क्या पता, क्या-क्या गिनाऊं! बच्चे
पैदा करने पड़े--दाढ़ी के इन दो बालों की खातिर। आज दर्जनों बच्चों की कतार लगी है,
उनका खाना-पीना, भोजन-खर्चा, हर तरह का उपद्रव सह रहा हूं--दाढ़ी के इन दो बालों की खातिर। फिर बच्चों की
शादी, पोते-पोती, इन पर खर्च करना
पड़ा--दाढ़ी के इन दो बालों की खातिर। और अभी परसों पत्नी की जिद्द के कारण हमारी शादी
की पचासवीं सालगिरह पर खर्च हुआ--सो दाढ़ी के इन दो बालों की खातिर।
अकबर कुछ कर न पाया और कीमत चुका दी। दूसरे दिन
अकबर ने नाई को मारवाड़ी के घर दाढ़ी-मूंछ कटवाने के लिए भेजा, तो मारवाड़ी ने उसे मना कर
दिया और कहा: खबरदार अगर बादशाह सलामत की दाढ़ी को हाथ लगाया! बादशाह अकबर की दाढ़ी में
हाथ डालते हुए शर्म नहीं आती? नाई को उसने खूब धमकाया और घर
से बाहर निकाल दिया। नाई ने आकर अकबर से शिकायत की तो अकबर का गुस्सा आसमान छूने लगा।
वह बीरबल पर भी बड़ा नाराज हुआ। तुरंत मारवाड़ी को बुलाया गया। बीरबल ने पूछा कि जब दाढ़ी
बिक चुकी है तो अब उसे कटवाने क्यों नहीं देता? मारवाड़ी ने
कहा: हुजूर, अब यह दाढ़ी-मूंछ मेरी कहां है? यह तो बादशाह सलामत की धरोहर है! इसको अब कोई नाई छूने की मजाल नहीं कर
सकता। अरे करे कोई मजाल, गर्दन उड़ा दूंगा। यह मेरी इज्जत का
सवाल नहीं, बादशाह की इज्जत का सवाल है। इसे मुंडवाना तो खुद
बादशाह की दाढ़ी-मूंछ मुंडवाने के बराबर होगा। यह मैं जीते-जी नहीं होने दूंगा। आप चाहे
मेरी गर्दन कटवा दें, पर इस कीमती धरोहर की रक्षा करना अब
मेरा और मेरे परिवार का फर्ज है।
अकबर हक्का-बक्का रह गया और बीरबल मुस्कुराता
रहा। महीने भर बाद अकबर के नाम मारवाड़ी का पत्र आया, जिसमें उसने दरखास्त की थी कि दाढ़ी-मूंछ की रक्षा
करने तथा इसकी साफ-सफाई रखने पर महीने में सौ अशर्फियां मिलती रहें।
रंजन,
तू पूछती है कि क्या मारवाड़ी सच ही ऐसे गजब के लोग हैं?
लगता है तेरा मारवाड़ियों से पाला नहीं पड़ा। भगवान
करे कभी पड़े भी नहीं!
रहिमन धागा प्रेम का
ओशो
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