बुद्धि की जो समझ में नहीं आता, बुद्धि उससे झुंझलाती है।
बुद्धि कहती है: ऐसे काम में मत पड़ो, जो मेरी समझ में नहीं
आता। नासमझी के काम में मत पड़ो!
लेकिन,
बुद्धि के ऊपर भी एक समझ है हृदय की। और जब हृदय की समझ खुलनी शुरू
होती है, कौन सुनता है बुद्धि की! जो सुने, वह अभागा है। इसलिए दोनों बातें होंगी आनंद भी होगा, झुंझलाहट भी होगी। झुंझलाहट होगी सिर में; आनंद
होगा हृदय में, धड़कन में। श्वास-श्वास में आनंद भर जाएगा और
विचार-विचार में झुंझलाहट हो जाएगी।
विचार की मत सुनना। विचार व्यर्थ के साथ जुड़ा
है। विचार सीमित के साथ जुड़ा है। विचार क्षुद्र के साथ बंधा है। उसकी क्षुद्र से सगाई
हुई। वह धन-पैसा, पद-प्रतिष्ठा, इनकी दुनिया में कुशल है;
प्रेम और परमात्मा और समाधि, इस दुनिया में
उसकी कोई गति नहीं है। वह जमीन पर सरकने के लिए ठीक है, आकाश
में उड़ने की उसकी क्षमता नहीं है। आकाश में उड़ना हो तो हृदय के पंखों पर सवार होना
होगा।
आनंद की सुनना!
तुम्हारे भीतर जो विधायक है, उसमें ही डूबो; और जो नकारात्मक है, उसकी उपेक्षा करो,
ताकि धीरे-धीरे विधेय ही तुम्हारा जीवन हो जाए। नकार अपने आप गिर
जाएगा; सूखेगा, कुम्हलाएगा। पानी
मत दो अब नकार को। अब झुंझलाहट को पानी मत देना। होती हो, होने देना; तुम तो पानी देते जाना आनंद के भाव
को।
पद घूँघरु बांध
ओशो
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