मुल्ला नसरुद्दीन कल मुझसे कह रहा था: चंद्रलोक
से उतरी एक अनोखी चीज मैंने आज शाम अपनी खिड़की से देखी। नीला और नारंगी रंग, धीमी चाल और उसके अंदर ढेरों
छोटे-छोटे आदमी!
मैंने मुल्ला नसरुद्दीन से कहा कि बड़े मियां, सरे-शाम इतनी मत पी लिया
करो। वह स्कूल के बच्चों की बस थी जिसे तुमने देखा है। वह कोई चांद से उतरी हुई चीज
नहीं थी, कोई उड़नतश्करी नहीं थी। और वे जो छोटे-छोटे आदमी
तुमने देखे, वे स्कूल के बच्चे थे।
लेकिन आदमी नशे में हो तो कुछ का कुछ दिखाई पड़ता
है। आदमी नशे में हो तो वही नहीं दिखाई पड़ता जैसा है। और गाली तुम शराब को दोगे! या
कि तुमने पी? शराब अपने आप तुम्हारे कंठ में नहीं उतर जाती। कोई जबरदस्ती शराब तुम्हारे
कंठ में नहीं उतर जाती। शराब तुमसे कहती नहीं कि आओ और मुझे पीओ। तुम पीते हो,
तो बेहोश होते हो।
मुल्ला नसरुद्दीन एक रात पीकर लौटा है। एक बिजली
के खंभे के नीचे खड़े होकर खंभे को बजा रहा है। एक सिपाही देख रहा है। थोड़ी देर बाद
उसे दया आई और उसने कहा कि बड़े मियां,
यह क्या कर रहे हो?
मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा, देखते नहीं क्या कर रहा हूं?
अपने घर के दरवाजे पर दस्तक कर रहा हूं। पत्नी उठ आए, शायद सो गई हो, तो दरवाजा खोले।
सिपाही हंसा, उसने कहा कि बड़े मियां, यह घर नहीं है, जरा गौर से तो देखो!
तो उसने कहा, तुम किसी और को बनाना। गौर से देख रहा हूं,
ऊपर अभी मंजिल का दीया जल रहा है। पत्नी सो भला गई हो, मगर अभी दीया जला हुआ है।
एक और रात घर लौटा, ज्यादा पीए हुए। चाबी ताले
में डालना चाहता है, मगर हाथ कंप रहे हैं, चाबी ताले में जाती नहीं। राहगीर कोई देखा, पास
आया और कहा, बड़े मियां, लाओ चाबी
मुझे दो, मैं खोल दूं।
मुल्ला ने कहा कि चाबी तो मैं ही डाल दूंगा, तुम जरा इतना करो,
यह कंपते हुए मकान को सम्हाल लो।
बेहोश आदमी की एक अलग दुनिया है। और हम सब बेहोश
हैं तब तक जब तक ध्यान का दीया न जले।
प्रेम पंथ ऐसो कठिन
ओशो
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