मैं जीवन का सत्कार करता हूं। मेरे मन में जीवन और परमात्मा
पर्यायवाची हैं। और कोई परमात्मा नहीं है--जीवन को छोड़कर। जीवन को अहोभाव से
स्वीकार करो। और परमात्मा ने तुम्हें जहां,
जैसा बनाया है, वहीं जीओ। और वहीं जीते-जीते
शांत बनो, मौन बनो, शून्य बनो।
प्रीतम छवि नैनन बसी
ओशो
No comments:
Post a Comment