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Saturday, October 14, 2017

महानिर्वाण को उपलब्ध हो जाने के बाद भी, ज्ञानी और गुरुजन समष्टि में मिलकर किस प्रकार हमारी सहायता करते हैं? इसे अधिक स्पष्ट करें।

सहायता करते हैं, ऐसा कहना ठीक नहीं। सहायता होती है। करने वाला तो बचता नहीं। नदी तुम्हारी प्यास बुझाती है, ऐसा कहना ठीक नहीं, नदी तो बहती है। तुम अगर पी लो जल, प्यास बुझ जाती है। अगर नदी का होना प्यास बुझाता होता, तब तो तुम्हें पीने की भी जरूरत न थी, नदी ही चेष्टा करती। नदी तो निष्क्रिय बही चली जाती है। नदी तो अपने तई हुई चली जाती है; तुम किनारे खड़े रहो जन्मों-जन्मों तक, तो भी प्यास न बुझेगी। झुको, भरो अंजुली में, पीयो, प्यास बुझ जाएगी।
ज्ञानीजन समष्टि में लीन हो जाने के बाद ही या समष्टि में लीन होने के पहले तुम्हारी सहायता नहीं करते। क्योंकि कर्ता का भाव ही जब खो जाता है तभी तो ज्ञान का जन्म होता है। जब तक कर्ता का भाव है, तब तक तो कोई ज्ञानी नहीं, अज्ञानी है।

मैं तुम्हारी कोई सहायता नहीं कर रहा हूं, और न तुम्हारी कोई सेवा कर रहा हूं। कर नहीं सकता हूं। मैं सिर्फ यहां हूं। तुम अपनी अंजुलि भर लो। तुम्हारी झोली में जगह हो, तो भर लो। तुम्हारे हृदय में जगह हो, तो रख लो। तुम्हारा कंठ प्यासा हो, तो पी लो। 

ज्ञानी की सिर्फ मौजूदगी, निष्क्रिय मौजूदगी पर्याप्त है। करने का ऊहापोह वहां नहीं है, न करने की आपाधापी है। 

जीते जी, या शरीर के छूट जाने पर ज्ञान एक निष्क्रिय मौजूदगी है।

पीव पीव लागी प्यास 

ओशो

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