सुना है मैंने, एक आदमी भूला-भटका स्वर्ग
पहुंच गया। थका-मांदा था, एक वृक्ष के नीचे विश्राम करने को
लेट गया। उसे पता न था कि यह कल्पवृक्ष है; इसके नीचे लेटो
और बैठो और जो भी कामना करो, पूरी हो जाती है! कहानी मधुर
है। भूखा था। मन में खयाल उठा कि काश, इस वक्त कहीं से भोजन
मिल जाता, बड़ी भूख लगी है!
ऐसा उठना था विचार का कि तत्क्षण सुस्वादु भोजनों
से भरे हुए स्वर्ण-थाल प्रकट हो गए। वह इतना भूखा था, इतना थका था, कि उसने सोचा भी नहीं कि ये कहां से आए! कौन लाया! भूखा आदमी क्या सोचे?
ये सब भरे पेट की बातें हैं। उसने तो जल्दी से भोजन किया।
पेट भर गया, तो सोचा कि कहीं से कुछ पीने को मिल जाए,
कोकाकोला! फेंटा! नहीं तो लिमका ही सही! और देख कर हैरान हुआ कि कोकाकोला,
फेंटा, लिमका, सब
चले आ रहे हैं! थोड़ा चौंका भी कि कोकाकोला तो बंद हो गया था! मगर तस्करों की कृपा से
सभी कुछ उपलब्ध होता है। तस्करी जो न कर दे थोड़ा! असंभव को संभव बना देती है। फिर किसको
फिक्र पड़ी थी! अभी तो बहुत थका था; कोकाकोला पीकर लेटने लगा।
लेटने लगा तो सोचा कि पेट तो भर गया, मगर कंकड़-पत्थर हैं,
जमीन साफ-सुथरी नहीं। ऐसे समय में तो कोई गद्दी होनी थी। सुंदर सेज
होती, तो आज जैसी गहरी नींद आती, जैसा घोड़े बेच कर आज सोता, ऐसा कभी नहीं सोया था।
अचानक देख कर हैरान हुआ कि एक पलंग चला आ रहा
है! थोड़ा सकुचाया भी कि क्या-क्या हो रहा है! मगर नींद इतनी गहरी आ रही थी कि उसने
अभी कहा कि बाद में देखेंगे। यह विचार वगैरह सब बाद में कर लेंगे। सो गया पलंग पर।
बड़ा चकित हुआ कि डनलप की गद्दियां! मगर उसने कहा कि पीछे जग कर देखेंगे।
जब जगा, तब थोड़ा सा चिंतित हुआ, कि इस निर्जन स्थान में, इस वृक्ष के नीचे,
वृक्ष के आस-पास न तो कहीं कोई रेफ्रिजरेटर दिखाई पड़ता है;
न कोई आदम जात दिखाई पड़ता है। कोकाकोला प्रकट हुए! भोजन आया! यही
नहीं, बिस्तर भी प्रकट हुआ! टटोल कर बिस्तर ठीक से देखा कि
है भी कि मैं कोई कल्पना कर रहा हूं? लेकिन है। थोड़ा डरा कि
कहीं कोई भूत-प्रेत तो नहीं हैं इस वृक्ष में!
बस,
जैसे ही उसने सोचा कि कहीं कोई भूत-प्रेत तो नहीं! कहीं कोई भूत-प्रेत
तो नहीं छिपे हैं! मैं किन्हीं भूत-प्रेतों के चक्कर में तो नहीं पड़ गया हूं! कि तत्क्षण
चारों तरफ भूत-प्रेत एकदम, जैसे आनंदमार्गी तांडव नृत्य करते
हैं, ऐसा आदमियों की खोपड़ियां लेकर एकदम नृत्य करने लगे। उसने
कहा, मारे गए! और मारा गया।
क्योंकि कल्पवृक्ष के नीचे तो जो कहोगे, वही हो जाएगा। वह कोकाकोला
बहुत मंहगा पड़ा! मगर अब तो बहुत देर हो चुकी थी। जब कह ही चुका कि मारे गए,
तो वे सब आनंदमार्गी पटक कर खोपड़ियां वगैरह, उसकी गर्दन तोड़ दी उन्होंने। इसी तरह तो खोपड़ियां इकट्ठी करते हैं,
नहीं तो फिर खोपड़ियां इकट्ठी कहां से करो? यही जो कल्पवृक्षों के नीचे फंस जाते हैं, इन्हीं
की खोपड़ियां फिर तांडव नृत्य के काम में आती हैं!
न तो कहीं कोई स्वर्ग है, न कहीं कोई नर्क है। न तो
डरो नर्क की अग्नि से, न कामना करो स्वर्ग के सुखों की। सब
तुम्हारे मन के जाल हैं।
अनहद में बिसराम
ओशो
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