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Friday, May 5, 2017

कर्मबंध



मैं आपको देख रहा हूं, प्रभाव, एक प्रतिबिंब मेरे भीतर छूटा। कल जब मैं आपको दुबारा देखूंगा तो मैं आपको नहीं देखूंगा, उस प्रतिबिंब के माध्यम से आपको देखूंगा। वह प्रतिबिंब मेरे बीच में आ जाएगा कि कल भी देखा था, यह वही है और उसके माध्यम से मैं आपको देखूंगा। हो सकता है, रात्रि आपको बिलकुल बदल गयी हो। हो सकता है आप बिलकुल दूसरे आदमी हो गए हों। हो सकता है आप क्रोध में आए हों, अब प्रेम में आए हों। लेकिन मेरा जो कल का ज्ञान है वह आज खड़ा होगा, वह मेरी स्मृति होगी। उसके माध्यम से मैं आपको जानूंगा। हम असल में चौबीस घंटे जो भी जान रहे हैं, जो वास्तविक है, उसको हम जान रहे हैं, जो स्मृति का संकलन है, उसके माध्यम से उसकी व्याख्या कर रहे हैं। 

इस स्मृति के माध्यम से हम उसकी व्याख्या कर रहे हैं, जो ज्ञेय है। इसलिए हम ज्ञेय को भी नहीं जान रहे हैं, बीच में स्मृति का पर्दा है। अगर आप कल मुझे गाली दे गए और आज फिर मिलने आए तो मैं जानता हूं, यह दुष्ट कहां से आ गया! हो सकता है, आप क्षमा मांगने आए हों। हो सकता है आप कहने आए हों कि भूल हो गई है। हो सकता है आप कहने आए हों कि मैं होश में नहीं था, बेहोश था, शराब पीए था। लेकिन मैं यह सोच रहा हूं कि ये सज्जन कहां से आ गए। और बीच में वह कल का पर्दा आपका खड़ा हो जाएगा। मैं आपके चेहरे को नहीं देखूंगा जो अभी मौजूद है। मैं उस चेहरे को बीच में पहले देखूंगा जो कल मौजूद था। 

स्मृति ज्ञेय के और ज्ञाता के बीच में हमेशा खड़ी है। इसलिए हम ज्ञेय को भी नहीं जान पाते। और स्मृति का जो संकलन है उसी को हम ज्ञाता समझ लेते हैं तो भ्रम होता है। ज्ञेय को हम नहीं जान पाते हैं, स्मृति बीच में आ जाती है। और स्मृति का जो संकलन, एकुलमेशन है मेमोरी का, हम समझ लेते हैं, यही मैं जानने वाला हूं।

जैसे अगर कोई आपसे पूछे, आप कौन हैं? तो आप क्या बताइएगा? आप कुछ स्मृतियां बताइएगा। मैं फलां का लड़का हूं, यह एक स्मृति है। तीस साल मैंने यह अनुभव लिए, उनमें से कुछ बताएंगे, यहां पढ़ा हूं, यहां नौकरी करता हूं, यहां यह हूं, यहां वह हूं। यह सारी आपकी मेमोरी है बीस वर्ष की। इनका एकुमिलेशन आप हैं। 

इसलिए कभी-कभी यह होता है कि किसी चोट से अगर स्मृति विलीन हो जाती है और उससे पूछिए कि आप क्या हैं तो वह खड़ा रह जाता है। उसको याद ही नहीं पड़ता कि कोई स्मृति हो। थोड़ी दूर आप कल्पना करिए कि आपकी स्मृति पोंछ दी जाए तो आपसे फिर पूछा जाए कि आप क्या है तो आप खड़े रह जाएंगे। आपको कुछ उत्तर नहीं सूझेगा कि मैं क्या कहूं। क्योंकि आप जो भी उत्तर देते हैं, वह स्मृति से है। 

स्मृति का जो संग्रह है, उसी को हम समझ लेते हैं, मैं हूं स्मृति ज्ञेय को भी नहीं जानने देती। स्मृति का संग्रह ज्ञाता को भी नहीं जानने देगा। स्मृति के पीछे ज्ञाता छिपा हुआ है और स्मृति के आगे ज्ञेय बैठा हुआ है। बीच में स्मृति की धारा है। उस तरफ ज्ञेय है, इस तरफ ज्ञाता है, बीच में मेमोरी है। मेमोरी न ज्ञेय को जानने देती है न ज्ञाता को जानने देती है। अगर मेमोरी का, स्मृति विसर्जन हो जाए तो मैं ज्ञेय को पहली दफा देखूंगा। और पहली दफा इंस्टीटीनियस--अलग-अलग घटना नहीं घटेगी यह क्योंकि ज्ञाता और ज्ञेय साथ ही जाने जाएंगे।

जिस क्षण मैं ज्ञेय को देखूंगा उसी क्षण ज्ञाता को भी। ये अलग नहीं जाने जाएंगे। दोनों एक साथ, दोनों एक साथ अनुभव होंगे। और वह साथ होना इतना गहरा होगा कि मुझे नहीं मालूम होगा कि ज्ञेय अलग, आता ज्ञाता अलग। मुझे असल में ज्ञान का अनुभव होगा। मुझे कांसेसनेस का अनुभव होगा। अगर मेमोरी विसर्जित हो जाए तो केवल ज्ञान का अनुभव होगा। जब हम कहते हैं, महावीर ने, या किन्हीं और ने अपने समस्त पुराने कर्मों से अपना छुटकारा पा लिया तो मैं पाता हूं, कर्म असल में सिवाय स्मृति के और कुछ भी नहीं है।

कर्मबंध का अर्थ स्मृतिबंध है। कर्मबंध का अर्थ है मेमोरी। वह जो हम कहते हैं कर्म चिपक जाते हैं, कर्म नहीं चिपकता है, केवल स्मृति चिपक जाती है। किए हुए की स्मृति चिपक जाती है। किए हुए का संस्कार चिपक जाता है। जिसको महावीर निर्जरा कह रहे हैं, असल में डी-मेमोराइड है। 

अमृत द्वार 

ओशो

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