जिसको हम जन्म कहते हैं, वह है क्या? वह हमारा यही जीवन बिलकुल प्राथमिक। इस जीवन में, जब कि गंगा पूरी फैल गई है, कोई आनंद नहीं है,
तो जन्म में क्या आनंद हो सकता है? सिर्फ
जन्म जाना कोई आनंद हो सकता है?
नहीं लेकिन हम झुठलाने में कुशल हैं। जीवन में
दुख है, तो हम
झूठे सुख कल्पित करते हैं कि जन्म में बड़ा सुख है, जन्मदिन
में बड़ा सुख है! अगर हम कहें, जीवन में बड़ा सुख है,
तो हमारी आंखें कह देंगी कि कहां है? अगर
हम कहें, जीवन में बड़ा आनंद है, तो
हमारे पैर बता देंगे कि नृत्य कहां है? अगर हम कहें,
जीवन ही खुशी है, तो हमारे हृदय की धड़कनें
कह देंगी कि कहां है? तो हम कहते हैं, नहीं, जन्म बड़ा खुशी का दिन है। अब कोई जन्म तो
आज नहीं है, कभी था। उसको पकड़ा भी नहीं जा सकता, जांच। भी नहीं जा सकता, पहचाना भी नहीं जा सकता।
फिर हम सब एक—दूसरे को भी धोखा देने में सहयोगी
होते हैं। यह जो हमारी दुनिया है झूठ की,
यह बहुत म्युचुअल अंडरस्टैंडिंग पर, या म्युचुअल
मिस अंडरस्टैंडिंग पर खड़ी हुई है। इसमें हम एक—दूसरे को सहारा देते हैं। इसमें हम सब
एक—दूसरे के जन्म पर इकट्ठे होकर उत्सव मना लेते हैं। फिर वे ही लोग हमारे जन्म के
उत्सव पर भी आ जाएंगे। हमने उन्हें धोखा दिया, वे हमें भी
दे जाएंगे। और ऐसे हम जीते हैं! इधर जन्म खुशी हो जाती है, तो मृत्यु दुख हो जाता है। वह उसी की कोरोलरी है, वह उसी तर्क का दूसरा हिस्सा है। जिसकी दुनिया में भी जन्म सुख है,
उसकी दुनिया में मृत्यु दुख होगी। और ध्यान रखें, जन्म तो हो चुका, मृत्यु होने को है। इसलिए जन्म
की खुशी तो ना—कुछ है, मृत्यु का दुख भारी है। शायद यह भी
कारण है कि हम मृत्यु के दुख को भुलाने के लिए जन्म के उत्सव मनाए चले जाते हैं।
ऐसे प्रत्येक जन्मदिन जन्म की कम याद दिलाता
है, आने वाली
मौत का ज्यादा स्मरण कराता है। लेकिन हम पीछे की तरफ देखते हैं, हम आगे की तरफ नहीं देखते। हर जन्मदिन का मतलब सिर्फ यह है कि एक वर्ष और
आदमी मरा, एक वर्ष मरने की और पूरी हुई, जिंदगी से एक वर्ष और रिक्त हुआ और चुका और समाप्त हुआ। लेकिन हम पीछे देखते
हैं। और पीछे देख कर हम आगे देखने से बच तो नहीं रहे हैं? यह कोई शुतुरमुर्ग का उपाय तो नहीं है कि रेत में सिर गपा कर खड़े हो गए
हैं, ताकि आगे दिखाई न पड़े?
लेकिन हम कितनी ही जन्मों की बातें करें, मौत चली आती है। हर जन्म
के ऊपर पैर रख कर मौत चली आती है। हर जन्म को सीडी बना कर मौत चली आती है। हर जन्म
के पीछे मौत की छाया खड़ी है। इसलिए जो जन्म में खुश है, वह
ध्यान रखे कि वह मौत में दुखी होगा। असल में, वह मौत के दुख
को भुलाने के लिए जन्म की खुशी मनाए चला जा रहा है।
यह आत्मवचना है। लेकिन यह जीवन इतना दुखी है
कि इसमें हम कहीं कोई ओएसिस, इस मरुस्थल में कहीं कोई मरूद्यान खोज लेना चाहते हैं, झूठा ही सही, सपना ही सही, कहीं तो हम अपने सुख, कहीं अपनी खुशी को अटका लें!
लेकिन अटकाई हुई खुशियां काम नहीं पड़ सकतीं। इसलिए मैंने उचित समझा कि आपको कहूं कि
जब तक जीवन का पता न चल जाए..... और जीवन का पता चल सकता है, क्योंकि जीवित हम हैं। अगर कुछ भी हमारे निकटतम है, तो वह जीवन है। अगर कुछ भी हमारे ठीक हाथ में है, तो वह जीवन है। अगर कुछ भी इस वक्त धड़क रहा है, तो वह जीवन है। अगर कुछ भी इस वक्त बोल रहा है, सुन रहा है, तो वह जीवन है। श्वास भीतर आ रही है,
बाहर जा रही है, वह जीवन है। जीवन निकटतम
है, हम जीवन हैं। लेकिन उससे हमारा कोई परिचय नहीं,
उससे हमारी कोई पहचान नहीं। और हम न मालूम किन—किन बातों में इस मौके
को गंवाते चले जाते हैं, इस परिचित होने के मौके को गंवाते
चले जाते हैं।
नहीं,
पीछे लौट कर देखने का कोई प्रयोजन नहीं है। जन्म के दिन से कुछ अर्थ
नहीं है। अर्थ है तो अभी जो है, उससे अर्थ है। अगर कुछ भी
जानने—पाने जैसा है, तो वह जो अभी है, वही जानने—पाने जैसा है।
जीवन रहस्य
ओशो
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