Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Friday, May 5, 2017

भगवान, मैं आपको कब समझूंगा? समझने में बाधाएं क्या हैं; उपाय क्या है?





चंद्रकांत!

समझने की बात ही गलत है। यहां समझने को क्या? ध्यान समझने की बात नहीं है। और मेरा तो शब्द-शब्द ध्यान में डुबोया हुआ है, भिगोया हुआ है। पीयो!

ये समझने इत्यादि की बातें बचकानी हैं। समझ तो मन की होती है, पीना हृदय का होता है। पीओगे तो भर पाओगे। समझ-समझ कर तो कचरा ही जुड़ता जाएगा।

समझने को यहां कुछ भी नहीं, डूबने को है। यह शराब है--खालिस शराब! अंगूर की नहीं, आत्मा की। यह मंदिर नहीं, मयकदा है।

यहां जो मेरे पास आ बैठे हैं, इनको तुम साधारण धार्मिक लोग मत समझो। जिनको तुम मंदिर और मस्जिद में पाते हो, ये वे नहीं हैं। ये रिंद हैं। ये पियक्कड़ हैं। ये पीने को आ जुटे हैं। यहां कुछ और रंग है, कुछ और ढंग है। तुम समझने की बात उठाओगे, तो चूक जाओगे। समझना होता है तर्क से; पीना होता है प्रेम से।

समझ कर कौन समझ पाया है? हां, जिसने प्रेम किया, वह समझ भी गया। समझ अपने-आप चली आती है प्रेम के पीछे, जैसे तुम्हारे पीछे छाया चली आती है।

प्रेम ही समझ सकता है। और जिन लोगों ने कहा है, प्रेम अंधा है, वे पागल हैं। वासना अंधी होती है, मोह अंधा होता है। प्रेम तो आंख है--अंतर्तम की। प्रेम को अंधा मत कहो।

वासना निश्चित अंधी होती है; वह देह की है। राग भी अंधा होता है; वह मन का है। और प्रेम तो आत्मा का होता है। वहां कहां अंधापन! वहां कहां अंधियारा? वहां तो बस आंख ही आंख है। वहां तो दृष्टि ही दृष्टि है। इसलिए जो उसे पा लेता है, उसे हम द्रष्टा कहते हैं, आंख वाला कहते हैं।

तुम पूछते हो; मैं आपको कब समझूंगा?

अरे, अभी समझो! कब? कल का क्या पता है? मैं रहूं, तुम न रहो। तुम रहो, मैं न रहूं। मैं भी रहूं तुम भी रहो, लेकिन साथ छूट जाए। किस मोड़ पर हम बिछुड़ जाएं, कहां राह अलग-अलग हो जाए, किस पल-कौन जाने! भविष्य तो अज्ञात है। कब की मत पूछो, अब की पूछो।

इस देश के समस्त महान सूत्र-ग्रंथ अब से शुरू होते हैं। ब्रह्मसूत्र शुरू होता है: अथातो ब्रह्म जिज्ञासा--अब ब्रह्म की जिज्ञासा। नारद का भक्ति-सूत्र शुरू होता है: अथातो भक्ति जिज्ञासा--अब भक्ति की जिज्ञासा। अब--कब नहीं। अथातो! उस एक शब्द में बड़ा सार है। अब!

यूं ही बहुत समय बीत गया कब-कब करते, कितना गंवाया है! जन्म-जन्म से तो पूछ रहे हो--कब। छोड़ो कब। अब भाषा सीखो अब की।


ज्यूं था त्यूं ठहराया

ओशो 



No comments:

Post a Comment

Popular Posts